भदोही। भय भूख भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वादा कर सूबे में काबिज हुई भाजपा सरकार के बीते साढ़े चार सालों में क्या हुआ यह तो जनता के सामने है। किन्तु यदि कुछ नहीं हो पाया तो वह है भ्रष्टाचार पर अंकुश । जो पूर्व की भांति अभी भी निरंकुश अपनी मस्त चाल पर है। न शिकवा पर गौर न शिकायत का साहस। अनुशासन के नाम पर बंधे हैं हाथ पांव। बेबस हैं भाजपाई। चुप है विपक्ष। बस चलते जाना है की राह पर लाल फीताशाही। और सरकार सोचती है कि सब कुछ है दुरुस्त आत्ममुग्ध सरकार आज तक यह समझ ही नहीं पाई कि विकास के नाम पर होने वाले कार्यों के लिए स्वीकृत राशि 100% से अधिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है यानी जिस कार्य को मात्र ₹100 में किया जा सकता है उसी कार्य के लिए ढाई ₹100 के प्रस्ताव स्वीकृत होते हैं स्थित गांव के सामान्य गलियों के नाली खड़ंजा से लेकर बड़ी इमारत सड़क अथवा आज निर्माण कार्यों में है इस की परख भदोही जिले के एक गांव नगला में निजी रात से कराए गए इंटर लॉकिंग सड़क के निर्माण कार्य में आधी लागत से की जा सकती है हुआ यह कि नगवा निवासी दिनेश दुबे मुंबई रहते हैं पैसे से कारोबारी श्री दूबे सार्वजनिक जीवन में भाजपा से जुड़े हैं वर्तमान में महाराष्ट्र कल्याण जिला में भाजपा के जिला कोषाध्यक्ष हैं बीते नवंबर में उनकी बेटी की शादी थी और वे सपरिवार गांव में आए गांव में उनके घर के पास तक विभागीय स्तर सेंटर लॉकिंग सड़क बनी थी किंतु उनके घर तक नहीं पहुंच पाई थी श्री दुबे की लगा कि बाकी बचे रास्ते को निजी स्तर से इंटरलॉकिंग करा दी जाए उन्होंने शेष बचे रास्ते पर इंटरलॉकिंग करा दिया जो 65 मीटर लंबा है श्री दुबे बताते हैं कि उक्त निर्माण में कुल 125000 की लागत आई श्री दुबे द्वारा निजी तौर पर तैयार सड़क में खर्च धनराज के सापेक्ष सरकारी स्तर पर इतनी लंबी सड़क की इंटरलॉकिंग कराने पर खर्च होने वाले धन का मूल्यांकन हुआ तो पता चला कर दो वहीं सड़क विभागीय स्तर से होती तो उस में आने वाली लागत करीब ढाई लाख रुपए आती है यानी पूरे 100% से अधिक अब आप भी समझ ले कि कैसे वह ऐसे की जितनी चौड़ी सड़क इंटरलॉकिंग श्री दुबे ने कराई इतनी चौड़ी सड़क के लागत का माना कौशल सरकारी स्तर पर 4000 प्रति मीटर से अधिक है ऐसे में अधिक 65 मीटर की सरकारी दर निकाली जाए तो पूरी लागत 2000 40000 40000 होती है जबकि निजी तौर पर बनाई गई सड़क की लागत मात्र ₹125000 ही सरकारी लागत के आधे में ही सड़क बन गई या एक बानगी है सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार की जिस का संचालन लाल फीता शाही पर है जो अपनी चाहता से सरकार को भरोसा रखा है और सरकार भी इतना असंतुष्ट एवं आत्ममुग्ध है कि लालफीताशाही का अन्नदाता की हद तक विश्वास कर रही है अमूमन माना जाता है कि किसी भी सरकार की आंखें उसके दल अथवा पार्टी के नेता या कार्यकर्ता होते हैं किंतु उत्तर प्रदेश के भाजपा वाली योगी सरकार में सख्त हिदायत है कि प्रशासनिक कार्यों में कोई हंसते ना करें अधिकारियों को स्वतंत्र कार्य करने दें इससे भाजपा के लोग तो अनुशासन में बेबस है कुछ बोल नहीं पा रहे हैं विपक्ष भी चुप है इसका पूरा का पूरा फायदा लालफीताशाही अथवा प्रशासनिक अमला उठा रहा है नतीजतन भ्रष्टाचार पूर्व की भात नसीर कुंडली मारे बैठा है बल्कि और भी निरंकुश गति से मनमानी पर उतारू है