भदोही। करीब दो दशक से भदोही में सपा को स्थिर बनाए रखने में मुख्य किरदार माने जाते रहे बाहुबली विधायक विजय मिश्र को पूर्वांचल में सपा अपना मुख्य ब्राह्मण चेहरा बनाएगी। उनसे गिले शिकवे को भुलाकर पूर्वांचल में परसुराम का प्रतीक बतायेगी। सपा का युवा नेतृत्व क्या एक बार फिर यह घोषणा दोहराने की हिम्मत कर सकेगा कि विजय मिश्र सिर्फ विधायक नहीं बल्कि सपा के नेता हैं। जैसा कि एक दशक पूर्व मुलायम सिंह यादव ने एक चुनावी सभा में तत्कालीन बसपा सरकार को चेतावनी दी थी कि विजय मिश्रा एक सामान्य विधायक नहीं बल्कि सपा के नेता हैं। सपा संस्थापक यही नहीं थमे बल्कि मंच से विजय मिश्रा का हाथ पकड़े हेलीपैड तक आये। अपने साथ उन्हें भी और बसपा सरकार द्वारा श्री मिश्र की गिरफ्तारी के लिए किये गये सारे इंतजामों पर तंज मुस्कान बिखेरते उड़ चले थे।
वक्त ने करवट बदला। अखिलेश यादव सपा प्रमुख बने। विजय मिश्र से उनकी दूरी बढ़ी और श्री मिश्र सपा से किनारे कर दिए गए। सपा से तिरस्कृत श्री मिश्र निषाद पार्टी से चुनाव लड़े। पुन: विधायक बने। मौजूदा दौर में पारिवारिक एवं गैंगरेप के विवादों में फंसे जेल में हैं। इस बीच 4 साढ़े चार सालों में सपा का सुरक्षित गढ़ भदोही ध्वस्त हो गया। जिले की 3 विधानसभाओं में भदोही औराई भाजपा और ज्ञानपुर स्वयं विजय मिश्र के कब्जे में है। जिला पंचायत भी सपा से बहुत दूर चली गई। सूबे में सत्ता और भदोही समेत पूर्वांचल में सपा की मजबूती के संघर्ष की उधेड़बुन में लगे सपा प्रमुख अखिलेश यादव की ब्राह्मण समर्थक रट ने इस सवाल को जुबान दे दिया है कि कहीं एक बार फिर विजय मिश्र सपा के सिपहसालारों की टीम में शामिल न कर दिए जाएं।
हालांकि ऐसा कहीं से कोई अधिकृत संकेत नहीं है किंतु यह सियासत है। इसमें बहुत कुछ अचानक ऐसा हो जाता है जिसकी दूर दूर तक संभावना ही नहीं रहती। इसी तरह यदि निकट भविष्य में विजय मिश्र के लिए सपा के द्वार खुल जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह तो वक्त बताएगा लेकिन इन दिनों में यहीं कहा जा रहा है कि दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। यदि बात सीधे न बनी तो चाचा के रास्ते भतीजे के द्वार पर बाहुबली की दस्तक लग जाएगी। इन कयासों में दम भी लगता है।
जग जाहिर है कि मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से विजय मिश्र की नजदीकी आत्मीयता की हद तक पहुंची थी। इस संबंधों के गुमान में ही श्री मिश्र ने सपा में किसी अन्य को कुछ समझा ही नहीं। बतौर मुख्यमंत्री भदोही की एक जनसभा में बैठे अखिलेश यादव की मौजूदगी में श्री मिश्र ने सपा के एक वरिष्ठ नेता को खरी-खोटी सुना दी थी। नेता का दोष सिर्फ इतना था कि वे मुख्यमंत्री से उस दौरान बातचीत कर रहे थे, जब श्री मिश्र मंच पर भाषण दे रहे थे। सपा प्रमुख का ताज जब अखिलेश यादव को बंधा तो चाचा शिवपाल यादव उनसे अलग हो नई पार्टी बना ली। शिवपाल से विजय मिश्र की नजदीकी को भांपते हुए अखिलेश यादव ने विजय मिश्र को सपा से टिकट ही नहीं दिया। विजय मिश्र सपा से बगावत कर निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और खुद तो जीते ही जिले की अन्य 2 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को जिताने और सपा से जिला मुक्त कराने में भी सहयोग दिया। इस बीच श्री मिश्र भाजपा के नजदीकी बढ़ाने के जुगत का हर संभव प्रयास किया, किंतु बात बन नहीं पाई। इसके पीछे उनकी बाहुबली वाली छवि और जिले के भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं से शुरू से चलती आई खुन्नस आड़े आई। इस बीच कुछ विवाद बढ़ा और श्री मिश्र जेल में हैं। अब जब सत्ता मोह ने बसपा समेत सपा को ब्राह्मण रिझाने के अभियान में एक दूसरे को पछाड़ने में लगा दिया है तो यह सवाल स्वत: ही कुलांचे मारने लगता है कि अपने बिखरे कुनबे को सजाने में लगी सपा के लिए विजय मिश्र प्रेम पूर्वांचल के ब्राह्मणों में मजबूती देगा। इसे श्रभ्सी मिश्र समर्थक बाहुबली के लिए बड़ा मौका मान रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष ऐसे लोग सक्रिय हो गए हैं जो विजय मिश्र को एक बार फिर सपा में जुड़ा देखना चाहते हैं। हालांकि जिले के सपाइयों का एक बड़ा तबका ऐसी किसी संभावना से इनकार कर रहा है लेकिन वह भी यह स्वीकारते हैं कि विजय मिश्र की वापसी सपा को मजबूती देगी।