Home मुंबई पारडी वापी में सजी काव्यसृजन की विशेष महफ़िल

पारडी वापी में सजी काव्यसृजन की विशेष महफ़िल

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हमार पूर्वांचल
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मुंबई: साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था काव्यसृजन मुंबई की विशेष काव्यगोष्ठी गुजरात के पारडी वापी में दिनांक 8 नवम्बर 2018 गुरूवार को दीपावली एवं भाईदूज के पावन पर्व पर रखा गया। यह विशेष काव्यगोष्ठी भोलानाथ तिवारी उर्फ़ मूर्धन्य पूर्वांचली के आवास वापी में रखी गयी, जिसकी अध्यक्षता श्री विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी ने किया और बतौर मुख्य अतिथि के रूप में अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की अध्यक्षा श्रीमती अलका पांडे जी रही। काव्यगोष्ठी का संचालन हिन्दी साहित्य अकादमी महाराष्ट्र पुरस्कृत श्री पवन तिवारी कर रहे थे। इस महफ़िल में मुंबई, नवी मुंबई एवं ठाणे से शिरकत करने वालों में अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की अध्यक्षा श्रीमती अलका पांडे, श्री पवन तिवारी, श्री विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी, श्री अजय बनारसी, श्री भोलानाथ तिवारी मूर्धन्य, श्री शिवप्रकाश जौनपुरी एवं हरीश शर्मा यमदूत प्रमुख थे। महफ़िल में चार-चाँद तब लग गये जब भाई-बहन के रिश्ते ने भाईदूज पर अपना रंग प्रदर्शित कर एक दूजे को बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ मिलें, बहन अलका पांडे जी ने सभी के ललाटों पर तिलक लगाया और भाई-बहन के रिश्ते को अटूट बना दिया।काव्य-रसिकों के द्वारा वातावरण काव्यमय कैसे हुआ कुछ झलक इस तरह से था-

श्री शिवप्रकाश जौनपुरी-
आज सामाजिक प्राणी की मनोदशा कितनी जर्जर हो उठी है,जिसे देख कवि हृदय कह उठता है-
खुद तकलीफें पैदा कर,दोष मढें करतार पर ।
नियमों की अनदेखी कर,दोष मढें सरकार पर ।।

श्री विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी-
कवि की अंतरात्मा इस पर्व पर किस तरह दिखाई देता है वह अपनी व्यथा काव्य के माध्यम से करते हुए कहता है-
दीप ढेर से लाया हूँ पर,कैसे इन्हें सजाऊं।
अंधकार है फन फैलाये,कैसे मैं घर-घर जाऊं ।।

श्री मूर्धन्य पूर्वांचली-
कवि आज के माहौल की खिल्ली उड़ाने वालों पर सीधा निशाना ताना है-
चाटूकारिता की जिंदगी,होता स्वान समान ।
भले फायदा हो छणिक,पर अंत भये नुकसान ।।

श्री अजय शुक्ल बनारसी-
आज मानवीय वातावरण के सामाजिक निष्क्रियता पर कवि का भाव परिलक्षित होता है-

किसी ने बेवजह,छिनी थी उसकी खुशियाँ ।
आज वो खुश होकर भी,
खुशियाँ नहीं मनाता ।।

श्रीमती अलका पांडे-
कवियत्री का हृदय नयी कविता को जन्म तब देती है जब वह खुद एहसास करती है और कहती है-

यौवन जाकर कभी नहीं आता ।
पचपन में बचपन आता है याद रखो ।।

श्री पवन तिवारी-
ज़िंदा होने का सबूत है
मैं ज़िंदा रहना चाहता हूँ,
मेरे लिए लिखना एक नशा है
एक जिम्मेदारी भी है
जिन दिनों मैं
नहीं लिख रहा होता हूँ
तब मैं मर रहा होता हूँ
थोड़ा – थोड़ा घुट-घुट कर
मैं गूँगा नहीं हूँ
मैं बोल सकता हूँ
वो भी अंदर से
इसलिए भी लिखता हूँ ।।

अंत में काव्य गोष्ठी के आयोजक श्री मूर्धन्य पूर्वांचली जी ने आये हुए सभी कवियों, गीतकारों एवं गजलकारों को भाईदूज एवं दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए आभार प्रकट किया और संगोष्ठी का समापन किया ।

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