आध्यात्मिकता विज्ञान से कई गुना आगे है। विज्ञान कितनी भी उन्नति कर ले परन्तु आध्यात्मिक रहस्यों को कभी सुलझा नही पायेगा। क्योकि विज्ञान भौतिकता के सहारे पर काम करता है जबकि आध्यात्मिकता लौकिकता के सहारे पर स्थिर है। जब भौतिकता की चाल कामयाब नही होती तो उसे अन्धविश्वास का नाम देकर पल्ला झाड़ना पड़ता है। संसार में जितनी शान्ति आध्यात्मिकता में मिलती है उतनी शान्ति विज्ञान की शरण में कभी नही मिलेगी। क्योकि आध्यात्मिकता प्राकृतिक है जबकि विज्ञान बनावटी। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि विज्ञान की चीजों को तो मानव ने बनाया है जबकि आध्यात्मिकता को बनाने वाला खुद परमात्मा है। यदि मानव और परमात्मा की रचना मे तुलना की जाए तो बेशक परमात्मा की जीत निश्चित है। विज्ञान भले ही आध्यात्मिकता को माने या न माने लेकिन यदि वैज्ञानिक माता-पिता को मानते है तो आध्यात्म के लिए कहां यह कम है? क्योकि आध्यात्म की शुरूआत तो माता-पिता के द्वारा दिये गये संस्कार से ही होती है। भारत में भले कुछ लोग नकली नास्तिक बनने का ढोंग करें लेकिन विश्व के कई देशों के लोग जीवन में शान्ति की खोज के लिए भारत के तीर्थो व धार्मिक स्थलों पर आकर आध्यात्म को आत्मसात करते है। विज्ञान भले ही कुछ समय के लिए जीवन मे सुख सुविधा देता है लेकिन परम सुख तो आध्यात्म को आत्मसात करने मे ही है। मानव जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष है न कि भौतिक सुख पाना है।