Home खास खबर मानव जीवन के लिये विनाश की ओर बढ़ रहे मुम्बई के कदम

मानव जीवन के लिये विनाश की ओर बढ़ रहे मुम्बई के कदम

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अभी तक देश की राजधानी दिल्ली के प्रदूषण की खबरें लोगों में डर पैदा करती थी, अब मुम्बई के लोगों को भी सावधान रहना होगा क्योंकि प्रदूषण का खतरा अब मुम्बई पर भी बढ़ने लगा है। साल 2018 में मुम्बई की आबोहवा पूरे 70 दिन खराब रही जो आगे ओर भी बढ़ने की संभावना हैं जिससे न केवल सांस संबंधित मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि पर्यावरण भी काफी हद तक प्रभावित हो रहा है।

सिस्टम ऑफ एयर क्वॉलिटी ऐंड वेदर फोरकास्टिंग ऐंड रिसर्च से (सफर) से मिले आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2017 से लेकर 31 नवंबर 2018 तक 70 दिन मुंबई की हवा खराब श्रेणी में रही। जिसका सीधा मतलब होता है कि हवा की इस गुणवत्ता के कारण लोगों को स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि मुंबई में दो महीने से अधिक समय तक यहां की हवा खराब रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले 1-2 सालों से मुंबई की हवा भी अक्सर खराब रहने लगी है। जिसके कारण अस्थमा और ब्रोंकाइटिस की समस्या से परेशान मरीजों को भयंकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

मुम्बई में कब कैसी रही हवा

आंकडों की मानें तो इस एक साल में 103 दिन तक मुंबई की हवा ठीक रही, जबकि 95-95 दिन तक यह स्थिति संतोषजनक रही। हालांकि अच्छी बात यह रही कि कभी भी यहां के हवा की स्थिति चिंताजनक श्रेणी में नहीं रही। हालांकि इस दौरान कई बार मुंबई के अंधेरी, बीकेसी, बोरीवली और वर्ली जैसे इलाकों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब की श्रेणी में भी रह चुकी हैं। हालांकि समूचे मुंबई की हवा केवल एक बार ही बेहद खराब की श्रेणी में रही।

पेड़ों की कटाई से पर्यावरण को नुकसान

मुंबई में काफी दिनों से लगातार कई जगह मेट्रों के काम हो रहे हैं। वहीं बिल्डिंग निर्मांण का कार्य भी यहां लगभग पूरे साल चलता रहता है। विशेषज्ञों के अनुसार कंस्ट्रक्शन कार्यों के कारण धूल, मिट्टी और सीमेंट के छोटे-छोटे कण वायुमंडल में घुल जाते हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मेट्रो कार्य के चलते मुंबई में अंधा-धुंध पेड़ो की कटाई हुई है। जिसका खामियाजा हवा की खराब गुणवत्ता के रूप में दिख रहा है। विकास के लिए डेवपलमेन्ट के कार्यों का होना जरूरी है, लेकिन इसके और पर्यावरण के बीच संतुलन होना भी बेहद जरूरी है। मुंबई में कोई इंडस्ट्रिज नहीं बावजूद इसके साल में 70 दिन हवा का स्तर खराब होना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि मुंबई का विकास विनाश की तरफ बढ़ रहा है।

सांस के मरीजों में बेतहाशा बढ़त

चिकित्सकों का कहना है कि खराब हवा की गुणवत्ता के कारण एलर्जी, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे रोग की समस्या बढ़ती है। दूषित हवा श्वसन क्रिया के माध्यम से हमारे फेफड़े तक पहुंचकर मुसीबतों को जन्म देता है। जिसके कारण अस्पतालों में श्वांस से संबंधित रोगियों की तादात 100 प्रतिशत बढ़ी है।

बच्चों के लिये बढ़ी समस्या

आंकड़ों के अनुसार 200 से अधिक एक्यूआई होने पर इसका सबसे अधिक असर इंसान के लंग्स पर पड़ता है। खराब हवा की गुणवत्ता सीधे उनके लंग्स को पहले अपने चपेट में लेती है। भारत में प्रदूषित हवा दूसरी सबसे बड़ी बीमारी की वजह है। देश में हर साल लगभग 20 लाख लोगों की जान प्रदूषित हवा के कारण जाती है। अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीज हर साल बढ़ रहे हैं। जिसका सबसे अधिक असर बच्चों में देखने को मिल रहा है। नए मरीजों में बच्चों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ रही है।

मुम्बई में विकास तेजी से हो रहे हैं। इंसानी जरूरतों के कारण विकास होने भी चाहिये किन्तु ​जब विकास विनाश का रास्ता दिखाना शुरू कर दे तो हमें सावधान भी हो जाना चाहिये। जिस तरह विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, उससे इंसानों को भौतिक सुविधायें तो मिल जायेंगी किन्तु विनाश कीे ओर कदम भी बढ़ रहा है।

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