Home मुंबई अंधकार से प्रकाश की ओर दीपावली से बढ़ेंगे कदम

अंधकार से प्रकाश की ओर दीपावली से बढ़ेंगे कदम

848
0

Report> Drupti Jha

कोरोना वायरस ने जबसे दुनिया में दस्तक दिया है, तब से देश का हर नागरिक खुद को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा हैं, अगर सरकार की बात की जाए तो सरकार भी आम जनता को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन समय के साथ देश के सारे सिस्टम पटरी पर आते दिख रहे हैं, ऐसे में अगर त्योहारों की बात की जाये तो दीवाली सामने है, बाज़ारों की खोई हुई रौनक फिर से लौटती दिख रही है।

अब फिर एक बार दिवाली के शुभ अवसर पर आदरणीय परम पूज्जनीय ममता की मां कल्याण कारनी माता लक्ष्मी सालो साल के एक बार आकर संसारिक मानवता जीवन के लिए आध्यात्मिकता कि कर्मो से जीवन जोत जगाने कि श्रेष्ठ सद ज्ञान देने आई है। लक्ष्मी तो तब मानव रूप में ही मृत्यु लोक मेे आई थी । जब सर्व शक्ति मान निराकार चैतन्य परमात्मा भगवान शिव मानव रूपी सृष्टि का कल्प वृक्ष लगाया था। और रचनाकार रचयिता भगवान शिव ही के द्वारा अदभुत क्षमता का विशाल काया कल्प का अथाह सुख शांति स्मुद्घि से संपन सुंदर संसार का रचनाकर श्री लक्ष्मी और श्री नारायण को संसार सहित समस्त सांसारिक प्राणियों का भार अर्थात बागडोर समर्पित कर दिया था।

जिस जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए लक्ष्मी नारायण के अधिकार क्षेत्र में आया हुआ संसार जिसमें किसी भी मानवता वादी विचार धाराएं मेे आसुरीयता अनेतिक्ता अपवित्रता ज्ञानता आदि का नामो निशान नहीं था। ना ही कोई असुर था , ना कोई दानव था, यदि वहा था तो सब के सब मानव के ही रूप में समस्त नारिया देवी, समस्त पुरुष देवता थे। जिन सभी का उपनाम देवी , देवता ही था। जिन सब के मन में सदा इशुरियता नैतिकता , पवित्रता , सद्ज्ञान ही था। किसी को कोई भी प्रकार के आचरण मेे अपवित्रता का नामो निशान नहीं रहता था। सभी मानवरूपी देवी देवता सर्व सदगून से संपन्न १६ कला से पहिप्रून आति पवित्र रहते थे। उन सभी का जीवन आध्यामिकता के संग जुड़ा हुआ सभी कर्म होता था। जिनसे सभी मानवरूपी देवी देवताय सुख शांति समृद्धि से सदा संपन्न रहते थे। किसी भी प्रकार के किसी भी मानव के भूल बस अनजाने में भी ईश्वरीय कूल मेे दाग़ ध्ब्बा कलंक नहीं लगाया जाता था। यही किसी देव आत्माएं का ज्ञान दीप कि ज्योती बुझने लगती थी तो उसे श्री लक्ष्मी और श्री नारायण उसके आत्मा मेे सद ज्ञान रूपी दीपक का धी डालकर अंधेरा से प्रकाश की ओर ले आते थे।

इन्ही सभी अपना कर्तव्य का निर्वाह करते हुए मानवता वादी विचार धाराएं मानव के समर सत्ता को शक्ति शाली देवतुल्य बना कर रखने का भूमिका का निर्वाह करते थें , नर के रूप में श्री नारायण और नारी के रूप में श्री शक्ति स्वरूपनी लक्ष्मी अपने ईश्वरीय कुल का सम्पूर्ण जिम्मेदारी का निर्वाह करते थे , लक्ष्मी कहती है, हम भी तो इसी मृत्य लोक अस्थूलय संसार में मानव के ही संग रहकर अपने परमात्मा का दिया हुआ श्रेष्ठ श्री मद्द मानव का भाग बनाने वाला गीता सद्द ज्ञान से समस्त मानव रूपी शरीर धारी चैतन्य देव आत्माएं के दीपक को प्रज्वलित कराती थी, जिससे मानव जीवन में सर्वदा अध्यात्मिक, मानसिक, शारीरिक , एकता, प्रेम भाई चारा अर्थात समाजिक समरसत्ता सहित सूख शांति समृद्धि का प्रकाश फैलाती रही जिस प्रकाश में मानव का जीवन निर्भयता , निर्मलता , दया , विवेक करुणा क्षमा, ज्ञान, स्वधर्म उपकार आदी मानव के सभी ज्ञान इन्द्रियों अर्थात कर्म इन्द्रियों से जीवन परीअंत अध्यायत्मिक सत्कर्मों का विकास होते रहता था , मानवतावादी विचार धाराएं सहित सनातन धर्म के अनुरूप अध्यात्मिक सत्कर्म के जरिए बाग डोर की जिम्मेदारी , लक्ष्मी और श्री नारायण मिलकर कई जन्मों के अलग अलग शरीर रूप द्वारा मानव के सभी मनोकामनाएं पूरी करते आ रही हूं। मैं श्री लक्ष्मी और श्री नारायण आप सभी भक्तों को कहना चाहती हूं , संसारिक सभी जीवो से श्रेष्ठ सब में महान चौरासी लाख योनी में भटकने के बाद जो मानव जीवन पाए हो उस मानवतावादी जीवन के श्रेष्ठ विचार को बनाए रखो।

Leave a Reply