आज-कल के व्यस्ततम जीवन में रिश्तों को निभाना महज एक औपचारिकता सी बन गयी है। चाहे वह अपने परिवार के रिश्ते हों या अपने गाँव-समाज अथवा पड़ोसियों से रिश्ते हैं। जरा सी बातों पर टूटते रिश्ते जरूर दिख जाते हैं। कुछ रिश्ते अपनेपन के अभाव में टूटते हैं और कुछ स्वभाव के अनुसार सीमित रिश्ते रखने के कारण पुराने रिश्ते विलीन होते नजर आते हैं। कहीं तेरा-मेरा के चक्कर में, तो कहीं नए शक्तिशाली अथवा धनवान रिश्ते मजबूत करने के चक्कर में, अपने खून के रिश्तों में भी गलतियाँ नजर आने लगती है। औरों का छोड़िए, समय के बदलते परिवेश के साथ अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहन एवं समस्त श्रेष्ठजन जिनसे हम जीवन जीने की शिक्षा पाते हैं, जिनसे हमारा जीवन है, जिन्होंने हमें निःस्वार्थ प्यार दिया, उन्हें भी हम गलत साबित करने से नहीं चूकते और अपशब्दों से नवाजते हैं। इसलिए नए सम्बन्ध/रिश्ते बनाने के साथ-साथ ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पुराने सम्बन्ध न टूटने पाएं।
इसी तरह इस लॉक डाउन में रिश्तों की अहमियत समझ में आई। अपने बारे में सोचने का पूरा समय मिला है। जो घर पर अपने परिवार के साथ हैं वे अपने परिवार के रिश्तों को और भी मजबूत बनाने में लगे हैं। परिवार का मुखिया अधिकतर समय अपने परिवार के साथ व्यतीत कर रहा है। जिससे परिवार के सभी सदस्यों को समझने का अवसर मिल रहा है। और जो घर से दूर हैं और अपने घरों में बन्द हैं, निश्चित रूप से उन्हें भी अपने परिवार की याद आ रही है। परिवार के प्रति उनका स्नेह और भी ज्यादा बढ़ रहा होगा। लॉक डाउन में घर से बाहर रहने का मुझे भी एक बेहतर अनुभव प्राप्त हुआ।
दरअसल मेरी नौकरी की प्रकृति ऐसी है कि मुझे समस्त भारत भ्रमण करना होता है। ऐसे ही इस बार लॉक डाउन से पहले राजस्थान में था। वहाँ पर जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले ही कर्फ्यू लग गया था जिससे मुझे होटल से निकलना पड़ा। कोई विकल्प न मिलने पर मैं दिल्ली के लिए चल पड़ा। वहाँ पर मेरी मौसी रहती हैं। उनके घर पर रिश्ता जरूर है लेकिन आना-जाना बहुत ही कम था। कभी उनके घर जाना भी हुआ तो रुकना केवल एक-दो दिन का ही हो पाया। इससे पहले उनके घर 32 वर्ष की उम्र में मात्र 2 बार गया हूँ। इसलिए रिश्ते में उतनी घनिष्ठता नहीं हो पाई थी जितनी होनी चाहिए। वैसे तो दिल्ली में बहुतेरे मित्र थे। चूँकि मौसी का रिश्ता माँ का दूसरा रूप ही होता है, इसलिए मुझे उनका घर सबसे बेहतर विकल्प दिखा और मैं वहीं पहुँचा। उसके बाद 1-2 दिन में घर के लिए निकल ही जाना था। मुझे क्या पता था कि लॉक डाउन हो जाएगा!
घर पर मौसी-मौसा और उनकी एक बेटी यानी बड़ी बहन थीं। पहले तो रिश्तेदार की तरह रह रहा था, लेकिन बाद में जब लॉक डाउन की घोषणा हो गयी तब मैं परिवार के सदस्य की तरह रहने की कोशिश करने लगा। कोशिश ही कहूँगा क्योंकि मैं यहाँ कभी लंबे समय तक रहा नहीं था। एक कोशिश थी कि मौसा के साथ बेटे की तरह रहने की और एक बड़ी बहन के साथ छोटे भाई की तरह रहने की। जब दूसरा लॉक डाउन प्रारम्भ होते-होते मैं अपने आपको इस परिवार का भी सक्रिय सदस्य समझने लगा और उसी तरह ढलने का प्रयास किया।मैंने इस दौरान इस घर के रिश्ते की डोर में और ज्यादा मजबूती महसूस किया। भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर मेरी कोशिश भी यही रहेगी कि यथासम्भव मैं इस परिवार के लिए एक बेटे या एक भाई की जिम्मेदारी निभा सकूँ।
अंत में मैं पाठकों से कहना चाहूँगा कि कोरोना संकट की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लॉक डाउन-3 की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए जो अपने घर में अपने परिवार के सदस्यों के साथ हैं वे अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ अपने रिश्तों को पहले से ज्यादा मजबूत बनाएं।विशेषकर घर में यदि बुजुर्ग हैं तो उनका विशेष ध्यान रखें ताकि उनपर कोई शारिरिक या मानसिक दबाव न पड़े। जो लोग घर से बाहर अपने मित्रों के साथ, अपने सहकर्मियों या सहपाठियों के साथ रह रहे हैं, वे अपने मित्रों के साथ सम्बन्धों में घनिष्ठता बढ़ाएं। जो मित्र और भाई-बहन किसी कारणवश किसी स्थान पर संस्थागत क्वारंटाइन किये गए हों या शेल्टर होम में हों, वे साथ में क्वारंटाइन किये गए व्यक्तियों से जान-पहचान करें, जिससे नए सम्बन्ध बनेंगे, नए मित्रों से पहचान होगी। और ये सम्बन्ध भी मजबूत करें ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर आपस में किसी भी प्रकार मदद के लिये हाथ बढ़ें। आने वाले समय के लिए भी बार-बार हाथ धोने की आदत डालें, मास्क पहनें, और हाथ जोड़कर नमस्कार करें। घर में रहें-स्वस्थ रहें।