संतोष कुमार तिवारी ‘विद्रोही’
देश के सभी लोग जानते है कि हड़ताल करने, बंद करने या विरोध करने से कहीं न कहीं देश की ही हानि होती है, कभी कभी तो ऐसी दशा भी आ जाती है कि हड़ताल या विरोध को रोकने के लिये सरकार को पुलिस को भी लगाना पड़ता है और मामला इतना तूल पकड़ लेता है कि बवाल भी हो जाता है, जिसमें कुछ हड़ताल करने वाले और कुछ पुलिस कर्मी भी घायल या चोटिल हो जाते हैं। इन घटनाओं से विदेशों में भारत की छवि खराब होती है।
भारत में वैसे हड़ताल करना एकदम आम बात हो गई है, जब चाहे लोग हड़ताल करके सरकार को अपनी मांग पूर्ति के लिये विवश करना चाहते हैl वैसे अपनी बात रखने के लिये देश के संविधान में भी अधिकार दिया गया है लेकिन इसका दुरूपयोग करना तो गैरकानूनी है। हड़ताल के बारे में कहा जाता है कि औद्योगिक संस्थानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों द्वारा सामूहिक रूप से कार्य बंद करने या कार्य न करने के सामूहिक कार्यवाही को हड़ताल कहा जाता है।
भारत में बैंक के कर्मचारियों, विभागों के विभिन्न संगठनों, कालेजों के विद्यार्थियों, किसानों, मजदूरों, महिला संगठनों तथा कुछ विपक्षी पार्टियों द्वारा आये दिन सरकार से अपनी मांग मनवाने के लिये किया जाता हैl जो कही न कही देश के लिये नुकसानदायक ही होता है, इस बात से इन्कार नही किया जा सकता है कि हड़ताल से अपनी बात मनवानें में कुछेक स्थानों पर तो फायदा हो जाता है लेकिन ज्यादातर हड़ताल या विरोध में केवल दिखावा रहकर ही हो जाता हैl
देश में हड़ताल करके काम को रोकने वाले जरा इस बात का ध्यान दें कि वे केवल अपने स्वार्थ के लिये विरोधी दलों या नेताओं के इशारे पर हड़ताल या बंद का आवाह्न करते है, जिसमें सरकार के राजस्व को घाटा होता है लेकिन हड़ताल वालों को तो केवल अपनी मांगों से मतलब है न की देश से।
यह विचारणीय तथ्य है कि जब हड़ताल या विरोध के दौरान हड़ताल को बंद करने की बात करने व मांगों पर चर्चा करने के लिये सरकार के तरफ से प्रतिनिधि बात करने आता है तो वह केवल हड़ताल करने गये लोगों में से किसी एक या दो प्रतिनिधियों से ही बात करता है न कि सबसे। जब बात करने के लिये एक या दो लोग ही जायेंगें तो विरोध प्रदर्शन, तोडफोड या अन्य कार्य करके शक्ति प्रदर्शन क्यों करे? वैसे न्यायालयों ने भी अपनी बात रखने को गैरकानूनी नहीं बताया है लेकिन शांतिपुर्वक हो तो और बेहतर हो।
मई के अन्तिम सप्ताह में बैंक कर्मियों के हड़ताल से देश उबर न पाया था कि किसानों ने जून के शुरूआत से ही देश भर के 130 से ज्यादा संगठनों के साथ मिलकर भारत बंद का आह्वान किया, जिसमें किसानों ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू करने और ऋण माफ करने की प्रमुख मांग है।
वैसे भारत में हड़ताल का इतिहास काफी पुराना हैl भारत में हड़ताल की शुरूआत कोलकाता में मई 1827 में हुई जब ठेला खीचनें वालों ने कीl 1874 में मुम्बई में टेक्सटाइल मिल के श्रमिकों ने अपने मांगों को मनवाने के लिये हड़ताल किया, नागपुर में मजदूरों ने इससे प्रेरणा लेकर 1877 में अपनी मजदूरी बढाने के लिये हड़ताल कियाl घीरे-धीरे हड़ताल करने का क्रम मद्रास में भी पहुंचा जहां श्रमिकों ने अपनी मांगे मनवाने के लिये कई हड़ताल कियेl
अहमदाबाद भी श्रमिकों के हड़ताल का शिकार 1894 में पहली बार हुआ जब श्रमिकों ने 7 दिन के जगह पर 15 दिन पर मजदूरी देने का विरोध कियाl 1905 में भारतीय प्रेस के श्रमिकों ने लगातार एक माह तक कोलकाता में हड़ताल करके अपनी मांग मनवाने के लिये प्रदर्शन कियाl ऐसे ही न जाने कितने हड़ताल व विरोध प्रदर्शन को देश ने झेला है।
देश के विभिन्न संगठनों के माध्यम से आये दिन हो रहे हड़ताल या विरोध से कहीं न कही देश को ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान है, यदि हम देशहित में हड़ताल करने के बजाय सरकार से शांतिपुर्वक वार्ता करके अपनी बात रखें तो हो सकता है कि बात भी मान ली जाये और देश के राजस्व में घाटा भी न होl यह मेरा विचार कतई नही है कि हड़ताल करना गैरकानूनी है या नही लेकिन हड़ताल या विरोध के दौरान होेने वाले देश के घाटे को ध्यान में रखकर इससे बचा जा सकता है।
ज्ञात रहे कि कुछ शासक ऐसे भी थे जिनके शासनकाल में हड़ताल करना पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित था और जो हड़ताल या विरोध करता उसे सजा का प्रावधान था लेकिन अब इस लोकतांत्रिक देश में अपने मांग को मानने के लिये प्रदर्शन करना गैरकानूनी नही हैl लेकिन देश में हड़ताल की प्रथा चिंताजनक है क्योंकि देश में आये दिन विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित किये जा रहे हड़ताल से देश की आर्थिक व्यवस्था को नुकसान पहुचता हैl हमें अपनी बातों को मनवाने के लिये सरकार से शांतिपुर्वक बातचीत करने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि किसी भी संगठन या वर्ग से पहले देश हित जरूरी है।