कहा जाता है कि “खूबसूरती और वफ़ा देखी न दोनों एक जगह” वैसे ही साहित्य में भी गीत और गजल लिखना और उसे सस्वर प्रस्तुत करना, दोनों ही अलग-अलग बातें हैं। आवश्यक नहीं है कि हर कोई गीत और गजल लिखे भी और उसे अच्छे स्वरों में प्रस्तुत कर सके। ठाणे जिले के कल्याण में मैं रहने वाले आदरणीय रामस्वरूप साहू एक अच्छे कवि, एक अच्छे इंसान, और एक अच्छे गीतकार भी हैं। भारतीय रेलवे से सेवानिवृत्त रामस्वरूप साहू जी पहले तो एक बहुत ही सरल और सज्जन व्यक्तित्व के धनी हैं। साहित्य से उनका चोली- दामन का संबंध है।
देश के कई शहरों में अच्छे-अच्छे मंचों से उन्होंने अपनी रचनाएं पढी है। परंतु उनकी गीत शैली और प्रस्तुतीकरण बेहद लाजवाब है। रामस्वरूप जी ने अपने गीत को लेकर फिल्मों में भी काफी प्रयास किया परंतु फिल्मों की दुनिया ही अलग है। काफी धक्के खाने के बावजूद वहां हर किसी को सफलता नहीं मिल पाती। यह बात और है कि फिल्म, अच्छे गायक या गीतकार होने की सर्टिफिकेट अवश्य देती है। बहुत सारे लोग फिल्म के बाहर भी एक बहुत अच्छे गीतकार के रूप में जाने जाते हैं, रामस्वरूप भाई भी उन्हीं लोगों में से एक हैं। मंचों पर उन्हें काफी सफलता हासिल है बावजूद इसके उनको किसी प्रकार का अहंकार छू तक नहीं गया है। अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच के कार्यक्रम में वह कई भूमिकाओं में उपस्थित रहे, परंतु उनकी रचना खासतौर पर गीत बहुत सराही गई। उन्हें जो भी कार्य सौंपा जाता है वह तन- मन- धन से अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्हें हर कोई चाहता है, सराहता है, और स्नेह करता है।
भारतीय जन भाषा प्रचार समिति से वह बरसों से जुड़े हुए हैं और जब भी मुंबई, थाने या कल्याण में रहते हैं गोष्ठी में अवश्य उपस्थित होते हैं। मैं अपनी संस्था की तरफ से उन्हें हृदय की अनंत गहराइयों से बधाई देता हूं, एवं उनके व्यक्तित्व को सलूट करता हूं। हम सभी जन भाषा तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद के लोग उनके उज्जवल भविष्य की कामनाएं करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें सुयश एवं निरामय स्वास्थ्य प्रदान करे।