Home खास खबर पुलिस की छवि को बदलने में जुटे सुनीलदत्त

पुलिस की छवि को बदलने में जुटे सुनीलदत्त

सुनील दत्त एक ऐसा नाम है जिससे देश का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो परिचित नहीं होगा। दुनियादारी से दूर रहने वाले व्यक्तियों को छोड़कर फिल्म, राजनीति या समाज से जुड़ा हर व्यक्ति इस नाम से भलीभांति परिचित है। यह भी हो सकता है कि आज का युवा भी सुनील दत्त के नाम से परिचित न हो, लेकिन सुनील दत्त के बेटे संजय दत्त को तो अवश्य जानता है। सुनील दत्त ने अपने जीवन के हर किरदार को भलीभांति निभाया।

माफ कीजियेगा हम उस सुनील दत्त की बात हम नहीं कर रहे हैं, बल्कि उत्तरप्रदेश के सुनील दत्त की बात कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश के भदोही जिले में रहने वाले इस किरदार का जीवन भी चर्चा में रहता है। भदोही जिले का जो व्यक्ति सूदूर अन्य प्रदेशों में रहता है वह भी इस सुनील दत्त की चर्चा करता है। भदोही जिले के इस सुनील दत्त को भदोही जिले का वहीं व्यक्ति नहीं जानता जो अपनी माटी यानि अपनी जमीन को छोड़ चुका हो।

इस सुनील दत्त की चर्चा अक्सर लोगों की जुबान पर रहती है। चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक। हम बात रहे हैं, भदोही जिले के औराई कोतवाली का प्रभारी निरीक्षक पदभार संभाल रहे इंस्पेक्टर सुनील दत्त दूबे का। श्री दूबे अपने कार्यों को लेकर हमेशा सोशल मीडिया पर चर्चा में बने रहते हैं। कभी किसी वृद्ध को सड़क पार कराते तो कभी किसी गरीब की क्षुधा को शान्त कराते।

गणतंत्र दिवस के एक दिन बार रविवार को श्री दूबे फिर चर्चा में इसलिये आये कि उन्होंने दुर्घटना में घायल एक व्यक्ति की जान को बचाने का प्रयास किया। करीब 12 बजे प्रभारी निरीक्षक कोतवाली औराई सुनील दत्त दुबे मय पुलिस बल के काशिराज इंटर कॉलेज जा रहे थे कि रोड पर एक व्यक्ति को तड़पते देखा जिसे एक पिकअप टक्कर मार कर भाग गई थी। व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो कर तड़प रहा था। जनता की भीड़ लगी हुई थी। परंतु सभी तमासबीन बने हुए थे। श्री दूबे ने तत्काल प्रभाव से अपनी सरकारी गाड़ी में लिटाया। उसके सिर से लगातार खून बह रहा था। हालत गम्भीर हो रही थी। औराई पी एच सी में पहुंचा कर प्राथमिक उपचार कराया। परंतु हालत गंभीर होने के कारण एम्बुलेंस की व्यवस्था करके ट्रामा सेंटर बाराणसी रवाना किया।

आमतौर पर पुलिस विभाग में ऐसे लोगों को बहुत कम देखा जाता है। अक्सर सुनने देखने को मिलता है कि घायल व्यक्ति यदि अपने बह रहे खून को रोकते हुये थाने पहुंच जाता है तो घंटों उसे लिखापढ़ी में अटका दिया जाता है। उसकी पीड़ा से चंद संवेदनहीन पुलिसकर्मियों को कोई मतलब नहीं होता। कुछ लोगों का कहना होता है कि श्री दूबे ऐसा कार्य सिर्फ फोटो खिंचाने के लिये करते हैं किन्तु कोई अधिकारी यदि ऐसा भी करता है तो बुरा क्या है। अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुये यदि कोई व्यक्ति फोटो खींचकर लोगों को जागरूक करता है तो बुरा कया है।

पुलिस विभाग के उपर अक्सर कई आरोप लगते रहते हैं, लेकिन क्या इसके लिये सिर्फ उसी थाने के प्रभारी या थाने में तैनात पुलिसकर्मी ही जिम्मेदार हैं। राजनीतिज्ञों और उच्चाधिकारियों के दबाव में कोई भी चाहे तब भी ईमानदार नहीं रह सकता है। जो ऐसे लोगों की बात नहीं मानता वह पुलिस लाइन में बैठकर दिन काटता है। यदि अपनी ड्यूटी से परे हटकर कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी समाज के प्रति भी समर्पित है तो वहीं अपने विभाग की छवि को बदल सकता है।