Home खास खबर शिक्षक एमएलसी लाला बिहारी यादव से हुआ शिक्षकों का मोहभंग

शिक्षक एमएलसी लाला बिहारी यादव से हुआ शिक्षकों का मोहभंग

फाइल फोटो लाल बिहारी यादव साभार: गूगल

शिक्षकों और विद्यालयों के हित की अनदेखी, महंगी कार सुख ने भुलाया संघर्ष के साथी शिक्षकों की याद, कमीशन के कार्यों एवं प्रभावशालियों से प्रभावित होने का लगा आरोप

 

भदोही। लगातार कई बार से शिक्षा एमएलसी रहते आये चेतनारायण सिंह को हराकर शिक्षा एमएलसी बने लालबिहारी यादव से सालभर के भीतर ही उनके समर्थक शिक्ष और विद्यालय के प्रबंधकों का मोहभंग हो गया है। अपने खर्च और संसाधनों से उनके चुनाव में रात दिन एक करने वाले शिक्षक ही अब उनके आलोचक बन गये हैं। कहा जा रहा है कि चुनाव के दौरान बड़ी बड़ी बातें करने वाले श्री यादव जी जीतते ही उनके दोस्त हो गये जो बतौर शिक्षा माफिया अपने कद और प्रभाव का बेजा उपयोग करते रहे हैं। वे सभी भूल जो लम्बा संघर्ष कर उनकी जीत में योगदान किया। जिन्हें लगा था कि लालबिहारी यादव के रूप में एक ऐसा नेतृत्व मिलेगा जो शिक्षकों की आवाज सदन में उठायेगे और शिक्षक शिक्षा और विद्यालय हित के लिये निरंतर प्रयास करेंगे।
कालीन नगर भदोही परिक्षेत्र स्थित एक विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि चुनाव के दौरान श्री यादव ने जिस तरह शिक्ष्कों और विद्यालयों के प्रबंधकों के घर जा जाकर उनके साथ रातें बिताकर उनसे आत्मीय नाता जोड़ा उससे लगा कि श्री यादव का शिक्षकों से जुड़ाव बना रहेगा। किन्तु चुनाव जीतते ही जिस तरह श्री यादव बड़े शिक्षा घरानों और प्रभावशाली लोगों के हाथ की कठपुतली बने। बड़ों से मिली बड़ी सौगातों से प्रभावित हुये। किराये की जीप की जगह महंगी कार के सुखनिगामी बने। स्वार्थी तत्वों के मिथ्या चाटुकारिता से आत्ममुग्ध हुये। प्रभाव की चकाचौंध में अपनों के हित की जगह अपने निजी विकास की प्रवृत्ति जगी। उससे उनके भीतर देखी और अनुभव की गई शिक्षक हित की सारी संभावना समाप्त हो गयी है। जिले की सीमांती क्षेत्र में विद्यालय संचालित कर रहे एक विद्यालय प्रबंधक ने बताया कि श्री यादव ठीक उसी रास्ते पर हैं जिस रास्ते पर पूर्व एमएलसी चेतनारायण सिंह थे। किन्तु श्री सिह और श्री यादव में फर्क यह है कि श्रीसिंह विपरीत परिस्थितियों में भी अपनों को पहचानते और वरीयता देते थे। संभवत: तभी उन्हें कई बार शिक्षकों को प्रतिनिधि होने का मौका मिला। किन्तु श्रीयादव तो जीत के तुरन्त बाद ही अपनों से दूरी बना ली और उन्हीं हाथों के खिलौना बन गये जिन हाथों पर स्वार्थ के लिये चाटुकारिता के कलंक हैं।

फाइल फोटो चेत नारायाण सिंह साभार: गूगल

चुनाव के दौरान श्री यादव के प्रबल समर्थक ओर मददगार रहे एक विद्यालय प्रबंधक ने बताया कि जिले में अनेक ऐसे विद्यालय हैं जो दुरूह गावों में है। तमाम अभावों के बीच गरीब ग्रामीण बच्चों के शिक्षा के जरिया है। वास्तव में मदद और सुविधा की उन्हें जरूरत है। किन्तु ऐसे विद्यालयों की अनदेखी कर उन विद्यालयों की मदद और सुविधा सम्पन्न किया जा रहा है जो स्वयं सक्षम और सामर्थ्यवान है। बताया गया कि कई ऐसे मदरसे भी हैं जो निहायत तंगहाली में चल रहे हैं। उन्हें मदद और सुविधा की आवश्यकता है।

उन्होंने इस बात हैरानी व्यक्त किया कि श्री यादव भदोही में ऐसे तत्वों को अपना सर्वेसर्वा मान लिया है जो चुनाव में उनके ध्रुवविरोधी रहे हैं। कुछ शिक्षकों ने बताया कि शिक्षकों की समस्यायें ज्यों की त्यों हैं। उसके निदान की कौन कहे उसके निदान के लिये आवाज तक उठाई नहीं जा रही है। आज अंचल का शिक्षक खुद को नेतृत्व विहीन पा रहा है। लालबिहारी यादव के के रूप में दिखी आशा की किरण भी धुंधली हो गयी। श्री यादव को वे ही कार्य नजर आ रहे हैं जो उनके एमएलसी निधि से हो और उसमें उनका निजी लाभ भी हो। शिक्षकों की मानें तो श्री यादव शिक्षकों के लिये मिट्टी की हंड़िया ही साबित हये जो सिर्फ एक बार ही चूल्हें पर चढ़ती है। बाद में वह कुत्तों के पानी पीने के काम आती है अथवा फोड़ दी जाती है।

उक्त बातों से यहीं लगता है कि चेतनारायण सिंह और प्रमोद मिश्र जेसे शिक्षक नेताओं को हराने वाले लाल बिहारी यादव के क्रिया कलापों से खुद उन्हीं के समर्थक और शुभचिंतकों का मोहभंग हो गया है।

 

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