अभिनन्दन उस अभिनन्दन का, जिसकी जननी भारत है।
जिसके वीर सपूतों से रिपु राष्ट्र हमेशा आरत है।।
जिसका सुत भरत बचपना में, सिंहों से खेला करता था।
छाती पर चढ़कर बाघों के, उसके दांतों को गिनता था।।
आया यौवन बीता बचपन, उसने एक ऐसा राष्ट्र गढ़ा।
जिसकी सुकृर्ति ऐसी फैली, जग उसको भारत वर्ष कहा।।
भारत की कोख सपूतों की, शौर्य स्वरूपा वीरों की।
दुनियां में जिसकी आभा है, हर विधा के शीर्ष रणधीरों की।।
जो राम कृष्ण नानक कबीर, जैसे सपूत की माता है।
जिसकी उदारता करूणा को, जग दयालु कहकर गाता है।।
जिसके रोयें रोयें से, हर धर्म के फूल महकते हैं।
जग की हर संस्कृति खिलती है, वीरों के शौर्य दमकते हैं।।
जो क्रूर विदेशी रिपुओं के, हमला सहकर भी टिकी रही।
मिट गये मिटाने वाले खुद, भारत की बांछे खिली रही।।
वो कृष्ण इसी भारत के थे, जो गीता का अमृत ज्ञान दिया।
ऐसे सपूत अनगिनत हुये, जो हंस हंस कर बलिदान दिया।।
जिसके कण—कण में पौरूष, और शौर्य की छिपी कहानी है।
भारत की शौर्य शिलायें भी, वीरों की अमिट निशानी है।।
जो कुचल शत्रु की छाती को, जय भारत कहता आया है।
वह किस मिट्टी का बना, खुद शत्रु समझ नहीं पाया है।।
जिसके साहस प्रताप शौर्य से, गर्वित स्वयं हिमांचल है।
उस वीर पूत अभिनन्दन का, वंदन करता ‘हमार पूर्वांचल’ है।।