Home मन की बात आदमी का बच्चा- वंदना श्रीवास्तव

आदमी का बच्चा- वंदना श्रीवास्तव

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हमार पूर्वांचल
वन्दना श्रीवास्तव।

लघुकथा

सुमन(मेरी गृहकार्य सहायिका) 2 महीने की छुट्टी पर गाँव जा रही है। अपने स्थान पर कार्य करने के लिए किसी को लेकर आई है। 40-45 उम्र, नाम था सकीना बी। सकीना बी के साथ एक 5-6 वर्ष की एक बच्ची भी थी। सुमन सकीना बी को काम समझा कर चली गई। सकीना बी ने काम शुरू किया। उनके साथ आई बच्ची भी झाड़ू लेकर काम करने को उद्धत हुई, जिसका क़द झाड़ू से कुछ कम ही था। झाड़ू उसके हाथ में क्रिकेट के बैट सी लग रही थी। मुझे इतनी छोटी बच्ची का काम करना बुरा लगा। मैंने सकीना बी से अपना विरोध जताया तो पसीना पोछते हुए बड़बड़ती हुई आकर बैठ गईं “मनती ही नई, अरे यहै करै का है जिनगी भर, तनि गम खाव” पतली-दुबली कृशकाय उस गरीब औरत को देख मन दृवित हो गया।

मैंने उससे कहा- “बैठो सकीना बी, चाय पीने का मन हो रहा है, आप भी चाय पी लीजिए, उसके बाद काम करिये। सांत्वना और सहानुभूति पाकर वह थोड़ी सहज होकर बैठ गई। चाय गैस पर रख कर मैं भी बैठ गई। यूँ ही उससे परिवार के बारे में बातें करने लगी। सकीना बी भी थोड़ी निश्चिंत सी होकर बताने लगी, “का बताई, किस्मतै दुश्मन हो तौ का कही। 15 बरस की उमिर में माँ-बाप बियाह करके फुरसत पा लिए। बियाहे के 5 बरस बादै दुई ठौ बिटिया गोदी में डारि के हमार मनई पड़ोस की एक विधवा के साथ कहूं चला गवा। सास-ससुर सबै किनारा कर लिए। ऊपर वाले की मर्जी…. जैसे-तैसे बिटियन का ही जिनगी मानि के बर्तन-कपड़ा करि के दुई रोटी मिल जाती रहीं।” मैं भी फुरसत में थी, उसकी बातों में रस ले रही थी। मैं दो कप में चाय छान कर ले आई। बच्ची को कुछ बिस्किट देकर अपना कप ले कर मैं बैठ गई।

वह आगे बोली, “बिटियाँ ब्याह लायक हुई गई। अचानक एक दिन हमार आदमी 3 बरिस की बिटिया लै के वापिस आइ गवा। बिटिया को हमरी गोदी मे डारि के हाथ जोड़ के खूब माफी माँगी। माफ न करती तो का करती। ये ‘दुसरी’ की बिटिया हती। लेकिन ई मर्द जात..त.. वो फिर किसी के साथ भाग गवा” कहते हुए उसके चेहरे पर बार-बार छले जाने का दुख, बेबसी, वितृष्णा, क्षोभ जैसे तमाम भाव उभर रहे थे। “और तुम उस ‘दुसरी’ की बच्ची को भी पाल रही हो?” मैंने किंचित आश्चर्य से पूछा। अचानक सकीना बी उठीं और कोने में मासूम, निर्दोष उस निर्लिप्त सी बैठी बच्ची को सीने से लगा कर बोलीं “कौनों पशु-जनावर का बच्चा थोड़े है, जो हांक देई। इंसान का बच्चा है। जैसे उई दुउनौ पलि गईं यहौ पलि जइहै।” उनकी चाय खत्म हो गई थी। वह बिल्कुल निश्चिंत आश्वस्त भाव से अपने काम में लग गईं।

वन्दना श्रीवास्तव।

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