वैसे तो पहले से ही देशवासी आक्रोश में हैं। लेकिन पुलवामा की घटना से अब आक्रोश की सीमा टूटने वाली है।अब और धैर्य की परीक्षा न ली जाय, ये जो आज लोगों का हुजूम सड़कों पर रेल पटरियों पर उमड़ा है, ये इशारा है, सोंचो जिस दिन फूटेगा तो क्या होगा? सैलाब आयेगा, और जब सैलाब आता है तो तबाही मचाता है सिर्फ तबाही।
तबाही आने से पहले देश के कर्णधारों से निवेदन है कि समय रहते इस आक्रोश को भांपते हुए इसे फटने से रोकने के उपाय करें। कहीं ऐसा न हो कि आपलोग राजनीति करते रहें, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहें, और जनता का गुस्सा फूट पड़े जैसे आज फूटा है। जो कि इशारा भर है। यही कहीं विद्रुप रूप धारण कर लिया तो सोंचो!
अब हम और अपने वीर सैनिकों की मौत पर आंसू बहाने की स्थिति में नहीं हैं, बर्दाश्त की सारी हदें टूटने की कागार पर है। आज अभी कैंडल मार्च निकाला जा रहा है, कल मशाल न बने, इसलिए सरकार को मशाल जलने से पहले उचित कार्रवाई करते हुए दुष्ट आतंकियों को दोजख का रास्ता दिखाने की जरूरत है।
आतंकियों के साथ-साथ उनके समर्थन में नारेबाजी करने वाले उनके रहनुमाओं को भी उचित सबक सिखाने की बहुत जरूरत है।
जितने अलगाववादी नेता हैं जो देश में बिष वमन कर रहे हैं उनके पर कतर कर काल कोठरी या फाँसी के फंदे पर लटकाना जरूरी है। बहुत मान-मनौव्वल हो गई। अब कार्रवाई होनी जरूरी है। बात चीत व सफाई देने की जरूरत नहीं है। न गवाह न सुनवाई अब बस सजा देना जरूरी है। इन हरामखोरों को निपटा दिया जाय तो, आधी से ज्यादा समस्या खुद ब खुद सुलझ जाय। बाकियों को हमारे नौजवान खुद बड़ी ही आसानी से निपटा देंगे।
जब भी कोई आतंकी हमला होता है हम पाकिस्तान के ऊपर आरोप लगाकर संतोष करके बैठ जाते हैं। सोंचते हैं काम हो गया, फिर चार दिन बाद आतंकी हमला होता है हम फिर पाकिस्तान का रोना शुरू कर देते हैं कि ये सब पाकिस्तान करा रहा है, हम उसको कड़ा जवाब दे रहे हैं। और कड़ा जवाब देकर शांत, वो फिर चालीस पचास को आके मार के चला जाता है, और हम कड़ा जवाब, कड़ा कदम, कड़ी कार्रवाई का आश्वासन देशवासियों को देते रहते हैं।
लेकिन अब बस अब आश्वासन नहीं परिणाम चाहिए। जब आप जान रहे हो कि ये सब पाकिस्तान कर करा रहा है तो पाकिस्तान पर कार्रवाई करो। सफाई मत दो सफाई करो। देश की जनता तिलमिला रही है उसके सब्र की और परीक्षा मत लो। आतंकियों व उनका सयर्थन करने वालों का शीश चाहिए इन बलिदानियों की समाधि पर चढ़ाने के लिए।
एक बात समझ में नहीं आ रही कि जब सब पाकिस्तान करा रहा है। हम लोग हमेशा से सुनते आ रहे हैं। बार्डर पर भारी भरकम सुरक्षा बंदोबस्त होते हुए, पाकिये इतने सारे गोला बारूद हथियार लेकर हमारे यहाँ घुस कैसे आते हैं ? घुस ही नहीं आते बल्कि भारी भरकम क्षति पहुँचाकर चले भी जाते हैं कैसे? इसका साफ मतलब ये है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद नहीं है, कहीं तो लीकेज है जिसका फायदा हमारा दुश्मन उठा रहा है। या हमारे ही देश के लोग देश से गद्दारी कर उन दुष्ट दहशतगर्दों की मदद कर रहे हैं जो हमारे देश का आसानी से नुकसान कर रहे हैं।
यदि ऐसा है तो सबसे पहले इन आस्तीन के साँपों को बिल से निकाल कर मौत के घाट उतार देना चाहिए। ऐसे लोगों को इस देश में क्या किसी भी देश में रहने का हक नहीं ये पूरी मानव जाति के दुश्मन हैं इनके साथ रहम न करते हुए सीधा दोजख में पहुँचा देना अति आवश्यक है।
ये जो पुलवामा में हुआ वो घर में ही छुपे हुए सपोलों की तरफ इशारा कर रहा है उन्हें ढूंढ़कर तुरंत अंत करो।तभी ये आम आदमी अब शांत होगा। नहीं ये अब उठने को उद्दत हो रहा है। और जब ये उठेगा तो समझ सकते हो ! इसलिए इस आक्रोश को शांत करने के लिए अब काश्मीर को आतंकियों से मुक्त कराना होगा, पाकिस्तान को भी सबक सिखाना होगा। तभी ये आक्रोश शांत होगा।
और उन दुष्ट अलगाववादियों का सरकारी हुक्का पानी बंद कर सलाखों के पीछे या कब्र में ७२ हूरों के पास भेजने का भी इंतजाम करना होगा। हम सबके खून पसीने की कमाई सेना पर खर्च करना तो समझ में आता है। पर दुष्ट हरामखोरों पर क्यों खर्च की जा रही है ये समझ में नहीं आ रहा है। ये भी तत्काल बंद होनी चाहिए।
आक्रोश बहुत है और फूटने पर अमादा भी। इसलिए सरकार को जानता की भावनाओं का सम्मान करना होगा। और दुष्ट पाजियों से देश को मुक्त कराना होगा। अब और बर्दाश्त नहीं कर पा रही है जनता। इसके सब्र का बाँध कभी भी टूट सकता है।
अब तो बस इतना ही कहना है
मातम नहीं मनाइये, ना ही दो श्रध्दांजलि।
देना है तो दो चढ़ा, दुश्मन के धड़ की बलि।।