Home भदोही मेहनत व सही रणनीति ही है सफलता का मूलमंत्र- विनोद कुमार दुबे

मेहनत व सही रणनीति ही है सफलता का मूलमंत्र- विनोद कुमार दुबे

मिटा दो अपनी हस्ती को, अगर कुछ मर्तबा चाहो। गुले गुल्जार होता है, दाना खाक में मिलकर।

भदोही। जिले के ज्ञानपुर ब्लाक के दशरथपुर पलवार निवासी सेवानिवृत अध्यापक सुरेन्द्र नाथ दुबे के छ: बेटों और तीन बेटियों में सबसे छोटे पुत्र विनोद कुमार दुबे की सफलता की कहानी सबकी जुबान पर है। सिविल सर्विस की तैयारी करने वाला छात्र मात्र आठ महिने की तैयारी में पुरे प्रदेश में अपनी विद्वता से भदोही का परचम लहरा देता है। यह जिले के गौरव की बात है।


विनोद कुमार दुबे का परिवार पूरा शिक्षा से ओतप्रोत है। कई भाई सरकारी सेवा में है। विनोद की पत्नी भी शिक्षित है। अभी विनोद की शादी को एक वर्ष होने को है लेकिन इसी बीच एक ऐसी सफलता मिली जिससे पूरा प्रदेश विनोद की इस सफलता पर गौरवान्वित है। विनोद नें इण्टर तक की पढाई भदोही से ही की है। और फिर इलाहाबाद के तरफ रूख किया। दो वर्ष दिल्ली में भी रहकर तैयारी किये है विनोद दुबे। और मात्र आठ महिने की तैयारी से वर्ष 2019 की बीएड परीक्षा में 90.17 प्रतिशत अंक के साथ प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

विनोद दूबे प्रयागराज में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे है और पिछले आठ महिने से अपने पिता की प्रेरणा से बीएड की तैयारी की और प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त करके जिले का नाम रोशन किया। विनोद कालेज के दौरान तरूणमित्र पत्रिका में संपादन भी किये है। विनोद ने बताया कि अध्यापक होने पर वे कई अधिकारी, अध्यापक व और कई पदों को पाने वाले लोगों को तैयार कर सकते है। इसीलिए अध्यापन सबसे बेहतर कार्य है। कहा कि यदि मौका मिलेगा तो अध्यापन कार्य करूंगा।

मालूम हो कि विनोद दुबे शुरू से ही प्रतिभाशाली रहे है। अपनी सफलता के बारें में कहा कि मेहनत व सही रणनीति ही सफल होने में सहायक होती है। गरीबी व समस्या तो केवल बहाना है, जो सच्चे मन से मेहनत व सही रणनीति से काम करता है। वह अवश्य सफल होता है। विनोद सिविल सर्विस की मुख्य परीक्षा कई बार दे चुके है लेकिन अभी सफलता न मिली जबकि बीएड के लिए मात्र आठ महिने की तैयारी के बाद जिला ही नही अपितु पुरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त करके भदोही और अपने माता-पिता का नाम रोशन किया है। विनोद ने कहा कि इस परीक्षा में मैने अपने तैयारी के हिसाब से सोचा था कि टाप-टेन में तो आ सकता हूं लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान पाने का मैने तो सोचा ही नही था। इस सफलता में ईश्वर, माता-पिता का आशीर्वाद व मेहनत व सही रणनीति सहायक सिद्ध हुई।

विनोद कुमार ने कहा कि उस काम को करना चाहिए जिसमें आत्मसंतुष्टि हो। मै चाहे अध्यापक रहूं या और कुछ मेरे प्रयास यही रहेगा कि मै समाज को कुछ देता रहूं, सिखाता रहूं। क्योकि समाज का ऋण कभी उतारा नही जा सकता है। अध्यापन के स्थिति में बदलाव की बात को स्वीकार करते हुए कहा कि पहले शिक्षा परम्परागत तरीके से होती थी लेकिन आज सूचना के युग में शिक्षको के सामने बडी चुनौती है जो नित नई जानकारियो को बच्चों को बताना पडता है। आज बच्चे भी सूचनात्मक माहौल में है जिसके वजह से अध्यापकों को भी पढाने से पहले अपने को तैयार करके आना बेहद जरूरी है। अध्यापक हमेशा से विद्वान रहा है लेकिन आधुनिक युग में अध्यापन करना भी बहुत बडी बात है।

अध्यापकों द्वारा बच्चों को सही से न पढायकोजाने के सवाल में कहा कि इसमें अध्यापक, सरकार व अभिभावक तीनों जिम्मेदार है। क्योकि सरकार अध्यापकों से शिक्षण कार्य के अलावा अन्य कार्य भी लेती है। अभिभावक भी केवल बच्चों को विद्यालय और अध्यापको के सहारे छोड देते है जबकि अभिभावक को चाहिए कि बच्चों की रोज की पढाई का अवलोकन करे। तीसरी बार कुछ अध्यापक भी है जो कही न कही खुद लापरवाही करते है।

प्रतियोगिताओं में हिन्दी मीडियम के छात्रों के बारे में कहा कि सरकार की कोई ऐसी मंशा नही है कि अंग्रेजी मीडियम के बच्चों को ही प्राथमिकता दी जाए। प्रतियोगी छात्रों में अंग्रेजी मीडियम के छात्र सफल होते है इसके पीछे पाठ्यक्रम व स्टडी मैटेरियल की अहम भूमिका है। वैसे हिन्दी मीडियम के छात्रो की संख्या की कमी पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार को इस पर जांच व शोध कराना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

वैसे विनोद ने बताया कि जो जज्बे के साथ मेहनत व सही रणनीति से पढाई करता है उसके सामने कोई भी समस्या गौण बन जाती है। मन से मेहनत करने वाला सफल अवश्य होता है।
विनोद कुमार दुबे अपने छ: भाइयों में सबसे छोटे है। जो अपने मेहनत से जिले मे ही नही बल्कि पुरे प्रदेश में नाम रोशन किया है। विनोद वर्ष 2000 में सेवासदन इण्टर कालेज से 57% के साथ हाईस्कूल, 2002 में विभूति नारायण इण्टर कालेज से 64% के साथ इण्टरमीडिएट, वर्ष 2005 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र व प्राचीन इतिहास विषय से 65% के साथ स्नातक और ‘तरूणमित्र’ नामक पत्रिका का 2003 से 2005 तक संपादन भी किया। वर्ष 2007 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास से 63% के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। 2011 में नेट भी प्राचीन इतिहास से उत्तीर्ण की। फिर 2012 से 2014 तक दिल्ली में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी की और प्रतियोगी परीक्षाओं की बारिकियां दिल्ली से सीखी तथा इसी दौरान 2013 में आईबी की परीक्षा में हाथ आजमाया लेकिन मुख्य परीक्षा के बाद सफलता हाथ न लगी। फिर 2015 से इलाहाबाद में रहकर विभिन्न परीक्षाओं में सम्मिलित हो रहे है। कई परीक्षाओं में मुख्य परीक्षा में सम्मिलित हो चुके है। और मात्र आठ महिने की रणनीति पूर्ण तैयारी से बीएड की परीक्षा में प्रदेश में अव्वल रहे।

विनोद दुबे के दादा राजाराम दुबे सहायक स्टेशन मास्टर रहे। पिता सुरेन्द्र नाथ सेवासदन इण्टर कालेज मोढ के संस्थापक सदस्य और 1968 से 2007 तक वही अध्यापन कार्य भी किये। विनोद के दो भाई श्याम नारायण और ओम नारायण सरकारी शिक्षक है। एक भाई प्रमोद नारायण भारतीय वायुसेना में अपनी सेवा दे चुके है। जबकि दो और भाई पूणे की एक स्टील कम्पनी में अच्छे पद पर कार्यरत है। विनोद की पत्नी साधना 2014 में राजनीति शास्त्र से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। 18 जून 2018 को विनोद की शादी हुई थी। और एक साल के अन्दर ही विनोद को एक परीक्षा में प्रदेश में प्रथम स्थान हुआ। हालांकि विनोद दुबे की सफलता की चर्चा जिले की हर व्यक्ति की जुबान पर है। सब लोग इस सफलता से अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे है।

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