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मन की बात: जंगीगंज अपहरण मामला, लड़की के पिता से बढ़कर लड़के के बाप का सम्मान बड़ा क्योंकि वह पत्रकार और ब्राह्मण है?

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hamar purvanchal
साभार: गूगल

 

आज शुक्रवार की सुबह मैं मुम्बई एअरपोर्ट पर आया। मुझे वाराणसी कुछ जरूरी काम से जाना था। जब मैं एअरपोर्ट पर था तभी दैनिक जागरण, अमर उजाला सहित कई अखबारों में काम कर चुके और वर्तमान में बीएनएन टीवी नामक एक लोकल न्यूज पोर्टल के संचालक और भदोही के चर्चित पत्रकार मिथिलेश द्विवेदी का फोन मेरे पास आया। मेरी फ्लाइट का समय हो चुका था फिर भी समयानुसार मेरी काफी देर तक मिथिलेश जी से बात हुई। बात होने के बाद पूरे रास्ते मेरे दिमाग में कई बातें उमड़ती रही। अभी रात को मैं अपना काम निपटाकर 12 बजे खाली हुआ तो सोचने लगा कि एक वरिष्ठ पत्रकार जिसके नाम की चर्चा लोग भदोही में करते हैं वहीं जब उसके घर का मामला आया तो किसी तरह अपनी बातों को सही साबित करने लिये मुझे अपने बातों में उलझाने की कोशिस करता रहा। सबसे पहले मैं उनसे हुई कुछ बातों का अंश शेयर करूं उससेे पहले मैं उस घटना का जिक्र करना चाहता हूं जिसके संबंध में मेरी बात हुई।

भदोही जिले के गोपीगंज पुलिस स्टेशन क्षेत्र के जंगीगंज निवासी कांग्रेस नेता व कथित पत्रकार जयशंकर दूबे उर्फ संजय दूबे का पुत्र आदेश दूबे 12 वीं में पढ़ने वाली एक लड़की जो पिछले दिनों घर से शौच करने निकली थी उसे अपहरण करके भगा ले गया। ऐसा मैं नहीं कहता बल्कि भदोही पुलिस द्वारा दर्ज मुकदमें में अंकित है। इस मामले में पुलिस ने धारा 363 व 366 के तहत मुकदमा दर्ज भी किया है। मुकदमा दर्ज होने के दूसरे दिन अचानक गायब हुई लड़की गोपीगंज थाने में प्रकट हो जाती है। यह लड़की कैसे थाने पहुंच गयी इसका पुलिस भी गोल मटोल जवाब देती है। लोगों में चर्चा है कि लड़की को आरोपी का बाप ही थाने में पहुंचाया था। खैर इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पुलिस ही बता सकती है किन्तु पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। आरोपी लड़का कहां है यह पुलिस को भी पता नहीं है।

अपने निजी स्वार्थ में सम्मान को गिरवी रखने वाले पत्रकार तटस्थ कब होंगे?

यहां सोचने वाली बात यह भी है कि अपहरण की हुई लड़की अपने परिजनों से अकेले में नहीं मिल पाती है किन्तु आरोपी का बाप अपनी पत्रकारिता का रौब दिखाकर लड़की का बयान भी अपने पक्ष में रिकार्ड कर लेता है। सोचने वाली बात यह है कि लड़की का बाप अकेले में अपनी लड़की से नहीं मिल पा रहा है और पुलिस ने उसे मिलने की छूट दे दी जो खुद शक के दायरे में है। यहीं लोगों का कहना है जो चर्चा भदोही में सुनने को मिल रही है।

जब लड़की का बाप अपनी व्यथा हमार पूर्वांचल से सुनाता है तो वह कहता है कि उसकी पत्नी को आरोपी के बाप द्वारा गंदी गंदी गालियां दी गयी और कई प्रकार से धमकी भी दी गयी। उनका यह भी कहना है कि उन्हें शक है कि अपहरण के दौरान लड़की का कोई ऐसा वीडियो बनाया गया होगा जिसके दम पर उसे धमकी दी जा रही होगी। यह भी हो सकता है कि लड़की को किसी और प्रकार की धमकी दी गयी हो जिससे वह डरी हुई है। क्योंकि लड़की के पिता ने जब भी अपनी लड़की को देखा तो उसकी आंखों में आंसू के साथ खौफ भी छलकता नजर आया।

खैर यह तो रही मामले की बात किन्तु भदोही के एक वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश जी ने जब मुझसे बात की तो उनकी कई बातें अभी तक मेरे कानों में गूंंज रही है। उन्होंने कहा कि हमारे परिवार को साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। वहीं मुझसे यह भी कहा कि आप एक ब्राह्मण हैं और क्या एक ब्राह्मण का साथ नहीं देंगे। इस तरह कि कई बातें हुई जिसे विस्तार में लिखना संभव नहीं है किन्तु मेरे मन में कई सवाल उठ खड़े हुये हैं।

मैं समझता हूं कि एक पत्रकार का धर्म होता है कि वह जाति और धर्म की भावना से उपर होकर वहीं लिखे जो सच है। किसी भी हालात में उसे सच का साथ नहीं छोड़ना चाहिये क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी पत्रकार समाज के उपर विश्वास करता है। क्योंकि वह यहीं समझता है कि पत्रकार ही समाज का एक ऐसा व्यक्ति है जो लोगों को न्याय दिला सकता है और वह समाज का आईना होता है, किन्तु मिथिलेश जी जैसा पत्रकार यदि जाति के नाम पर मुझसे कहे कि मेरा सहयोग कीजिये तो मुझे सोचना होगा कि क्या पत्रकार सिर्फ दूसरों की कमियां देखता हैं। यदि उसके परिवार का कोई व्यक्ति गलत है तो क्या उसे न्याय के साथ नहीं बल्कि अपने परिवार के साथ खड़ा होना चाहिये।

दूसरी बात मिथिलेश जी ने यह कही कि उनके खिलाफ कुछ लोग साजिश कर रहे हैं। मैं सिर्फ यह पूछना चाहता हूं कि जिस परिवार की लड़की भाग जाये उसका सम्मान प्रभावित हो रहा है या उसका जो एक नाबालिग लड़की को भगा कर ले गया और उसका पूरा परिवार आरोपी के पक्ष में खड़ा हुआ है। लड़की के पिता ने बताया कि जब वह रात को आरोपी के घर गया तो आरोपी का बाप उसकी बात न सुनकर घर में चला गया और जाने से पहले उसे जो बातें कहीं उसे व्यक्त भी नहीं किया जा सकता है।

आखिर यह कोई जमीन संबंधी विवाद नहीं है और न ही कोई मारपीट का मामला है। बल्कि एक लड़की का पिता जिसका समाज में सम्मान है व एक लड़की के अस्मिता व चरित्र की बात है। पीड़ित का कहना है कि उसकी पत्नी को आरोपी के बाप द्वारा धमकी दी जाती रही है। उसके सम्मान और इज्जत के साथ खिलवाड़ करने की बात की जाती रही हो। दुनिया में ऐसा कौन सम्मानित बाप होगा जो अपनी लड़की को आगे करके दूसरों के खिलाफ षड्यंत्र करने के लिये अपनी ही सगी बेटी को मोहरा बनाने के साथ खुद अपनी लड़की के चरित्र का हनन करेगा। अफसोस तो यह है कि जिस आरोपी लड़के की शिकायत जंगीगंज बाजार का लगभग हर व्यक्ति कर रहा है किन्तु इन कथित पत्रकारों का चोला ओढ़े लोगों के खौफ में चुप है। उसके खिलाफ षड्यंत्र करने के लिये कोई इज्जतदार बाप अपनी सगी बेटी को सामने कर देगा।

खैर अब मामला पुलिस के हाथ में है। पत्रकार कोई न्यायालय नहीं है जो फैसला करेगा किन्तु पत्रकार की यह जिम्मेदारी भी है कि समाज में जो गलत हो रहा है, किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो उसके खिलाफ एक आवाज बनकर खड़ा हो जाय। जो सहीं हो वहीं सबके सामने लाये किन्तु भदोही की मीडिया ने इस मामले को दाबने की कोशिस की और किसी ने इस आवाज को नहीं उठाया जो पत्रकारिता के गिरते स्तर का प्रतीक है। इस मामले में सच क्या है इसे सबके सामने पुलिस ही लायेगी किन्तु पुलिस का जो रवैया देखा जा रहा है वह कहीं न कहीं पुलिस की निष्पक्ष प्रणाली पर सवालिया निशान ही खड़ा कर रही है।

यहां यह भी जिक्र करना होगा कि ऐसे ही एक मामले में जितनी तत्परता से उंज थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया गया था किन्तु इस मामले में शान्त बैठी गोपीगंज पुलिस के खिलाफ शायद भदोही के पुलिस अधीक्षक ने कड़ा रूख नहीं अपनाया है। फिलहाल में मेरे मन में जो बातें आ रही थी वह यहीं थी कि ​भदोही के जिस पत्रकार के बारे में मैंने यह सुना था कि वह न्याय के लिये निष्पक्ष होकर लड़ता है उसकी संवेदना एक नाबालिग लड़की और समाज में सम्मान खो चुके उसके पिता के लिये मर चुकी हैं और इस दुखद घटना को वह साजिश करार दे रहा है। इसके लिये वह किसी को खुद को पत्रकार बिरादरी का बता रहा है, वहीं यदि वह पत्रकार ब्राह्मण है तो उसे ब्राह्मण होने का वास्ता दे रहा है। यह मेरे मन की की बात है और मेरे मन में सिर्फ यह है कि पत्रकारिता मेरा धंधा नहीं बल्कि मेरी समाजसेवा है जो मुझे अन्याय ​के खिलाफ खड़ा होने को प्रेरित करती है। यदि किसी पीड़ित की आवाज बनने के लिये मुझे जाति या धर्म का चश्मा लगाना पड़ा तो ऐसी पत्रकारिता को तिलांजलि देना ही मैं उचित समझूंगा।

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