अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने वाली है, मेरी माँ ।
बुझे हुए दिए को जला कर संसार में प्रकाश फैलाने वाली है , मेरी माँ ।
अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह
लेने वाली है, मेरी माँ ।
पहाड़ों पर खीलने वाली वो फुल है माँ
जो, रात के अँधेरे में मुस्करा दे, तो
अँधेरे में भी उजाला ही नजर आये ।
अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने
वाली है मेरी माँ ।
अपनी परवाह छोड़, बच्चे की परवाह करती
माँ अपना पूरा जीवन बच्चे के
कल को सवारने में लगा देती माँ ।
अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह
लेने वाली है मेरी माँ ।
बच्चो को अपने आँचल में समेटकर हर
कठीनाई से लड़ती माँ ।
अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह
लेने वाली है मेरी माँ ।
माँ शब्द वो है, जो नन्हा बालक का पहली बार मुह खुलने पर पहला स्वर माँ शब्द
निकलता है ।
अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने वाली है, मेरी माँ ।
माँ वह सर की ताज है, जो सदैव चमकती
रहती है, उन्ही के चमक रुपी बनकर हम सदैव सीतारा बनकर चमकते है ।
अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने
वाली है मेरी माँ ।