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मन को मोह लेने वाली माँ ” मनमोहनी “

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हमार पूर्वांचल
जौनपुर न्यूज़

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने वाली है, मेरी  माँ ।

बुझे हुए दिए को जला कर संसार  में प्रकाश फैलाने वाली है , मेरी  माँ ।

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह
लेने वाली है, मेरी  माँ ।

पहाड़ों पर खीलने वाली वो फुल है माँ
जो, रात के अँधेरे में मुस्करा दे, तो
अँधेरे में भी उजाला ही नजर आये ।

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने
वाली है मेरी माँ ।

अपनी परवाह छोड़, बच्चे की परवाह करती
माँ अपना पूरा जीवन बच्चे  के
कल को सवारने में लगा देती माँ ।

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह
लेने वाली है मेरी माँ ।

बच्चो को अपने आँचल में समेटकर हर
कठीनाई से लड़ती माँ ।

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह
लेने वाली है मेरी माँ ।

माँ शब्द वो है, जो नन्हा बालक का पहली बार मुह खुलने पर पहला स्वर माँ  शब्द
निकलता है ।

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने वाली है, मेरी माँ ।

माँ वह सर की ताज है, जो सदैव चमकती
रहती है, उन्ही के चमक रुपी बनकर हम सदैव सीतारा बनकर चमकते है ।

अंतर आत्मा से, तो देखो मन को मोह लेने
वाली है मेरी माँ ।

कविता : द्रौपति झा

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