भदोही। ज्ञानपुर क्षेत्र के भुडकी गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के संगीतमय प्रवचन के दूसरे दिन मुंबई से पधारे कथावाचक पंडित कुणाल जी महाराज ने कहा कि लोभ, क्रोध, भोग और मोह के कारण जीव परेशान होता है। जीव जब परमात्मा की शरण में होकर कार्य करता है तो सोचना चाहिए कि जो भी काम कर रहे हैं वह किसी दूसरे के लिए नहीं कर रहे हैं बल्कि भगवान के लिए कर रहे हैं। कहा कि यह जीवन भगवान की ही देन है इसलिए इसके लिए किसी भी तरह का घमंड नहीं करना चाहिए। महराज ने जीवन में आलस्य को भी काफी खतरनाक बताया। कहा कि आलस्य करने से भी जीवन दुखदायी हो जाता है क्योंकि आलस्य भी जीव के अवनति का एक प्रमुख कारण है। कहा कि जिह्वा के रहते हुए नर्क में जाना यमराज का दोष नहीं बल्कि खुद जीव का दोष होता है क्योंकि भगवान ने जिह्वा दिया है तो भगवान का भजन करना सर्वोपरि है। कहा कि जो जीवन मिला हुआ है वह हमारे लिए बहुत ही कम है क्योंकि जिंदगी इतनी कम दिखती है की व्यस्तता के कारण हम अपने परिवार और लोगों को समय नहीं दे पाते और इस भागमभाग में हम अपने आवश्यक कार्यों से दूर होते जा रहे हैं लेकिन उससे भी सबसे अधिक एक परम आवश्यक कार्य भगवत प्राप्ति है। उससे हम काफी दूर होते जा रहे हैं। भगवान के नाम की महिमा के बारे में कहा कि भगवान का नाम बहुत ही आनंद प्रदान करने वाला है। क्योकि भगवान खुद अपने नाम की महिमा का बखान नही कर सकते है। संसार की सभी योनियों में मानव योनि सबसे उत्तम है क्योकि मानव जीवन मोक्ष योनि है जबकि बाकी योनि भोग योनि है। महराज ने महाभागवत के प्रथम श्लोक को ब्रह्म वाक्य बताया। कहा कि इस पर अनेक विद्वानों ने अनेक व्याख्या की है। कहा कि माया जीव और ईश्वर आपस में प्रतियोगी हैं। कहा कि परमात्मा जीव का कभी साथ नहीं छोड़ते लेकिन जीव अपने कर्मों के बंधन से होने के नाते अपने कर्मो का फल भोगता है। इसीलिए मानव जीवन का परम लक्ष्य भागवतप्राप्ति है। क्योकि आत्मा का परमात्मा की प्राप्ति ही मोक्ष है। इस मौके पर राकेश चतुर्वेदी, रत्नेश चतुर्वेदी, प्रवीण पाण्डेय और हर्ष पाण्डेय समेत काफी लोग मौजूद थे।