पिछले कुछ वर्षों से संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) में हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिल रहा हैं। ये गिरावट कही ना कही भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश जिसने हिंदी को मातृभाषा घोषित किया हैं इस वाक्य पर सवालिया निशान खड़ा करता हैं। यह समस्या हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए उसी प्रकार हुआ जैसे डॉलर(अंग्रेजी माध्यम) के मुकाबले रुपये (हिंदी माध्यम) का गिरना।
यहॉ ये प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं कि क्या हिंदी माध्यम का अभ्यर्थी अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी से कम मेहनत करता हैं, क्या हिंदी माध्यम का विद्यार्थी आयोग द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समझ नही पा रहा हैं? क्या आयोग माध्यम को लेकर बच्चो में भेदभाव कर रहा हैं? या फिर हिंदी माध्यम के अधिकांश बच्चे ग्रामीण इलाको से ताल्लुक रखते हैं इसलिए उनकी चयन प्रक्रिया में समस्या हैं?
इन सभी प्रश्नों को मन में लेकर मेरी बात प्रयागराज के J.N.U गोल्ड मेडलिस्ट, नई आजादी ‘उदघोष’ समाज कल्याण मंत्रालय के आईएएस परीक्षा ट्रेनिंग सेंटर के सानुभवी डॉ.अतुल मिश्र से हुई तो सर ने बताया कि समस्या हिंदी माध्यम में नही हैं क्योंकि हिंदी माध्यम में तो बिलकुल फाइट ही नही हैं और न ही आयोग द्वारा बच्चो में कोई भेदभाव हैं बल्कि समस्या की जड़ कुछ और ही हैं।
पहली समस्या हैं कि 2014 से पैटर्न का बदलना जिसमे एक वैकल्पिक विषय का चुनाव साथ ही सीसैट का क्वालीफाई होना क्योकी पहले दो वैकल्पिक विषय होते थे जिससे हिंदी माध्यम के बच्चे निबंध और वैकल्पिक विषय में स्कोर अच्छा करते थे जिससे उनके चयन की संख्या ज्यादा थी।
दूसरी समस्या आयोग द्वारा पूछे गए प्रश्नों को देखकर उत्तर लिखते वक्त बच्चो में प्रश्न को लेकर उन सभी बिंदुओं का ठीक से सोच ना पाना जिससे एक अच्छा उत्तर लिखा जा सके।
तिसरी समस्या बच्चो में विशेषणात्मक क्षमता कम होना क्योंकि अक्सर कभी – कभी हिंदी माध्यम का विद्यार्थी सोचता हैं कि मूल समस्या इस माध्यम में ही हैं ,जिसको लेकर फंस गया हैं। लेकिन सर्वप्रथम हमें तथ्यों के आधार पर यह विचार करना होगा की वास्तव में यह समस्या हैं या नही और यदि हैं तो उसका वास्तविक स्वरूप क्या है क्योंकि समस्या को सुलझाने के लिए स्वरुप जानना जरूरी हैं ताकि उस समस्या का उचित विश्लेषण किया जा सके।
चौथी सबसे बड़ी समस्या हैं ज्ञान और भाषा की पकड़ या समझ को लेकर क्योंकि अक्सर देखा जाता हैं कि ज्यादा से ज्यादा बच्चो को ये पता ही नही होता की कहाँ पर हमें एक खड़ी पाई देना हैं, कहा कॉमा देना हैं ,किस शब्द का प्रयोग करे और किस तरह से पैराग्राफ बदला जाये। इन सभी समस्याओं की जड़ हमारी प्राथमिक शिक्षा हैं जहाँ पर हमें बचपन में पढ़ते वक्त इन सभी कमियों से अवगत नही कराया जाता।
पांचवी कमी कोचिंगों में बाजारवाद का बढ़ना क्योंकि बच्चे बड़े बड़े विज्ञापक देखकर ठीक से निर्णय नही ले पाते की हमें क्या करना हैं और मोटी- मोटी फ़ीस देकर दाखिला ले लेते हैं तो भीड़ को देखकर उन्हें लगता हैं कि मैं अकेला नही हु ये सभी भी मेरे साथ हैं। समस्या तो तब होती हैं जब उनका कोर्स पूरा होता है तो उन्हें लगता हैं मैं जो सोच कर दाखिला लिया मुझे तो वो मिला ही नही यही मुझे ‘क्या मिला’ वो सड़क हैं जिसकी मरम्मत करनी हैं।
छठी समस्या बच्चो में तैयारी को लेकर पर्याप्त समय न देना, बीच -बीच में अपने सही पथ से भटकर दूसरे ट्रैक पर जाना और आर्थिक समस्या के साथ ही सरकार का इन कमियों पर ध्यान न देना जैसे पहले इलाहाबाद में पंथ हॉस्टल, अम्बेडकर हॉस्टल में बच्चो को निःशुल्क आईएएस की तैयारी के लिए पैसा फंडिग किया जाता था जहाँ से बड़े पैमाने पर बच्चो का चयन होता था लेकिन अब फंडिग बन्द कर दी गयी हैं ये समस्या उत्तर प्रदेश, बिहार ,राजस्थान जैसे राज्यो में ज्यादा ही देखने को मिलेगा।
इन सभी कमियों का सिर्फ एक ही समाधान हैं कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर ज्यादा ध्यान दिया जाये ताकि आने वाले वर्षो में फिर से यूपीएससी में हिंदी का परचम लहराया जा सके। जो अभी सुप्तावस्था में चला गया हैं।