डोंबिवली। सावन में कजरी का भी अपना महत्व है । कजरी गीतों से बिरह और वेदना की जो प्रस्तुति की जाती है उससे लोग झूम जाते हैं। कजरी का एक ऐसा ही आयोजन डोंबिवली के शुभारंभ हॉल में किया गया। इसका आयोजन उत्तर भारतीय समाज ने किया था। सावन का महीना मन में हरियाली के भाव भर देता है। कजरी के बोल हर ओर से गूंजने लगते हैं। मन में तरंगों की लय फूट जाती है। प्रकृति भी सावन आने पर झूमने लगती है। संगीत की फुहारों की झड़ी सी लग जाती है। शायद यही कारण है कि महिलाओं का सबसे खास महीना सावन ही माना जाता है।
डोंबिवली में जब कजरी के आयोजन में माटी की सोंधी महक परंपरागत कजरी गायन से निकली तो तालिओं की गड़गड़ाहट के बीच पूरा हॉल झूम उठा। फुलवा से करब सिंगार हो , सखी झूले झुलनवा। “चाहे भइया रूठे चाहे जाइ हो, सवनवा में जइबै न ननदी”। कजरी गीतों ने लोगों को अपनी माटी की महक की याद दिला दिया। आयोजक विश्वनाथ दुबे, मदन गुप्ता, बालिका राम दुबे, त्रिलोकीनाथ जायसवाल, नन्दलाल चौबे, रामकृपाल दुबे, नरेंद्र दुबे ने आए हुए अतिथिओं का सम्मान किया। समाज के नन्हे दुबे ने कहा कि अपनी परंपरा को सजोए रखने के लिए ही कजरी गायन का आयोजन किया गया है।
कहा हमारी कोशिश है कि महाराष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता में रच बस कर उत्तर भारत की परंपरा को बनाये रखें। कजरी हमें एकता में बांधने का काम भी कराती है। बहरहाल कजरी आयोजन में कजरी गायकों ने लोगों को अपने मधुर स्वरों से प्रेम और श्रृंगार, विरह और वेदना के गीतों से अपनी परंपरा से सराबोर कर दिया। कार्यक्रम में समाज के गण्यमान्य लोगों में पत्रकार राजमणि त्रिपाठी, श्रीकांत चौहान, धर्मेंद्र शुक्ल, हेमंत मिश्रा, राजेश यादव, परमानन्द पांडेय, सदानंद ( बाबा ) तिवारी, विजय उपाध्याय, वीरेंद्र तिवारी, कन्हइया दुबे, उदय राज दुबे, प्रदीप उपाधयाय सहित अनेक लोग उपस्थित थे।