Home मुंबई “पासबाने-ए-अदब” साहित्यिक संस्था में काव्यगंगा की धारा प्रवाहित हुई

“पासबाने-ए-अदब” साहित्यिक संस्था में काव्यगंगा की धारा प्रवाहित हुई

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हमार पूर्वांचल
नवी मुंबई

नवी मुंबई : साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था पासबाने ए अदब एवं अस्मत सेवाभावी शिक्षण संस्थान के तत्वावधान में दिनांक 9 दिसंबर 2018 रविवार को तुर्भे नवी मुंबई में गीतकारों, गजलकारों की अविरल प्रवाहित होने वाली सुर-संगम की काव्यधारा काबिले-तारीफ़ रही।

हमार पूर्वांचल
कार्यक्रम में उपस्थित गीतकार-गजलकार

उक्त काव्यकलश में अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री विश्वंभरनाथ तिवारी एवं मुख्य अतिथि के रूप में श्री विनय शर्मा “दीप” विराजमान थे। काव्यगंगा के सुसंचालक नौजवान कवि, कहानीकार, महाराष्ट्र साहित्य अकादमी से पुरस्कृत श्री पवन तिवारी ने बेहतरीन तरीके से संचालन की भूमिका निभाई। उपस्थित कवियों, गजलकारों में नजर हयातपुरी, विश्वंभरनाथ तिवारी, पवन तिवारी, विनय शर्मा दीप, रियाज शेष, रिजवान नाथापुरी, मुकेश सोलंकी, दिलीप टक्कर, डा दिलशाद सिद्दीकी, भरत शारदा, हेरम्ब तिवारी, कशिश मेहरोत्रा, अश्विनी उम्मीद, कल्पेश यादव, शालिनी मेहरोत्रा, इमरान पाहुल, जहाँगीर मस्त, रूपा भालेराव एवं सिराज धौरी आदि थे। कुछ ग़ज़लकारों, गीतकारों की चंद लाइनें इस प्रकार हैं-

जनाब नजर हयातपुरी :-

कब थमेगा इसका सिलसिला
हाथ कुछ न आया अभी ।
————-
माना तेरा वक्त है अभी,
पर सदा किसी का ये नही।
तुझको जरा सी क्या ढील दी,
तु तो बेलगाम हो गया।

डाक्टर दिलसाद सिद्दिक :-

यूँ करके ताल्लुक करके तुम,
एक रोज बहुत पछताओगे ।

श्री विनय शर्मा “दीप”  :-

बात करें राजनीति की न कोई कूटनीति,
बीच भाषावाद,प्रांतवाद को न लाइये।
धर्म संप्रदाय की न बात समुदाय करे,
बीच अपने ऐसे विवाद को न लाइये।
हो सके तो बांट लो अब आपसी सौहार्द को,
गले मिलने से ना दीप यूं घबराइये।
राम,रहिम,रसखान व कबीर,नान्हक,
ऐसे सूफी संत की हे,धरा को बचाइये ।।

जनाब इमरान पाहुल :-

कोई इंजीनियर अब सिपाही बनना चाहता है।
अब तो बेरोजगार पकौड़े तलना चाहता है ।।

जनाब जहांगीर मस्त :-

फानुस बनके हवा से,
जिसकी हिफाजत हवा करे।
———–
अब तो जहर भी असली मिलती नहीं बाजारों में ।

सुश्री कशिश मेहरोत्रा :-

हर एक लब्ज पे एक रोशनी निकलती है।
जुबा से नमाज और आरती निकलती है।
———-
अपने को रोता देखके हंसती है माँ ।
जब उसकी कोख से ओ जिंदगी निकलती है ।।

श्री कुलदीप सिंह दीप :-

ये है मेरा,ओ भी मेरी
कहता फिरता मेरी मेरी।

श्री सिराज घौरी :-

हादसों से खेल देखा
मसवला देखा गया।
सौक अबके नौजवानों में
नया देखा गया।।

श्री पवन तिवारी :-

दिल के मामलात को
कभी कहने नहीं देते।
कहते है खुश रहो मगर,
रहने नहीं देते।

श्री विश्वम्भर तिवारी :-

विज्ञान है वरदान यह हम सब जानते हैं ।
जिंदगी इतिहास है भूगोल है।

उपरोक्त कवियों, गजलकारों के सुमधुर फ़नकारो से श्रोताओं ने मंत्रमुग्ध होकर खूब ठहाके लगाये और तालियों से सम्मानित किया। अंत में आये हुए सभी अतिथियों का गज़लकार, गीतकार जवाब नजर हयातपुरी साहेब ने सभी का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद दिया और काव्यसंध्या का समापन किया।

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