समाज के निर्माण में अध्यापक की सबसे बडी भूमिका होती है। किसी अध्यापक द्वारा बताएं गये रास्ते व मार्गदर्शन से ही कोई भी आज महान बना है तो उसके पीछे है अध्यापक। अध्यापक ही एक ऐसा दाता होता है जो अपने औकात से ज्यादा देने की कोशिश करता है। और इसका उदाहरण आज समाज में देखने को मिलता है कि अध्यापक भले सही मुकाम पर न पहुंचा हो लेकिन उसके द्वारा दिये गये मार्गदर्शन से बहुत लोगों ने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया है।
प्राचीन काल में जब गुरू-शिष्य की परम्परा रही तब और आज टीचर-स्टूडेंट की परम्परा है तब भी अध्यापक हमेशा अपने छात्र को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहता है। और बेशक रहना भी चाहिए। लेकिन पुरानी और आज की बातों पर यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि पहले और अब के गुरू-शिष्य के रिश्ते, समर्पण, विश्वास व कार्यों में बदलाव दिख रहा है। इस बदलाव के पीछे केवल और केवल ‘धन’ है जो परिवर्तन ला रहा है। क्योकि आज ज्यादातर अध्यापक केवल धन प्राप्ति के लिए ही अध्यापक बने है न कि उनके मन में देश के बच्चों को शिक्षा देना है। ठीक उसी तरह विद्यार्थी भी है कि वे पढते है तो केवल अपने लक्ष्य को पाने के लिए न कि शिष्य धर्म निभाने के लिए।
आज आधुनिकता के चक्कर में सभी रिश्ते एक तरफ और धन एक तरफ रखने में संकोच नही करते है। तो ऐसे लोगो से कैसे आशा की जाए कि ये देश के कर्णधार बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाएंगे। यदि पूछा जाए तो सच में आज शिक्षा का नैतिक स्तर बहुत नीचे आ गया है। जिसे बढाने या ऊपर लाने के लिए सभी का परम कर्तव्य है कि इसमें हम अपनी सहभागिता करें। आज देखा जा सकता है कि बहुत बच्चे अपने ज्ञान, धन, परिवार व अन्य चीजों पर घमण्ड में फुले रहते है जो केवल उनको ही नही बल्कि उनसे जुडे लोगों को भी कभी घातक सिद्ध हो सकता है। देश में जब तक नैतिक शिक्षा, भारतीय संस्कृति की शिक्षा को अनिवार्य नही किया जायेगा तब तक लोग सच में शिक्षा का महत्व नही समझ पायेंगे।
यदि आधुनिक शिक्षकों की बात की जाए तो केवल दो ही प्रकार के शिक्षक दिखते है। एक सरकारी विद्यालय में पढाते है और दुसरे निजी विद्यालय में। लेकिन सरकारी वाले वेतन ज्यादा पाते है जबकि निजी वाले कम। वही सरकारी अध्यापक कम पढाना चाहते है। जबकि निजी विद्यालय अधिक पढाते है। कुछ ऐसे कामचोर, गद्दार, लापरवाह व भ्रष्ट अध्यापक है जो लेते है तो सरकारी रूपया लेकिन फिर भी शर्म नही है अध्यापक हमेशा से पुजनीय रहा है और भविष्य में भी रहेगा। अध्यापको से निवेदन है कि बच्चों को इतना मानसिक रूप से मजबूत कर दें कि पढाई में हमेशा आगे रहे। अध्यापक हमेशा से ही राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाता है।