Home साहित्य शिक्षक ही है भारत का सच्चा निर्माता

शिक्षक ही है भारत का सच्चा निर्माता

Teacher
साभार: गूगल

भारत में आदिकाल से गुरूओं का स्थान पूज्यनीय रहा है और आज भी है, लेकिन पहले जैसी श्रद्धा भक्ति नहीं है। गुरू ही तो ऐसा है जो अपने शिष्य के लिये अपने ज्ञान का भंडार न्यौछावर कर देता है और चाहता है कि उनका शिष्य उनसे बेहतर काम करे और देश या समाज के लिये मिशाल साबित हो। बेशक बहुत से ऐसे छात्र है जो गुरू के भावनाओं का कद्र करते हुये अपने को दिनरात लगन से लक्ष्य के तरफ अग्रसर है, लेकिन सब नहीं हैं।

कोई कितना बड़ा विद्वान, जानकार, विशेषज्ञ क्यों न हो जाये लेकिन वह अपने गुरू से बड़ा नहीं हो सकता है क्योंकि आज इस कामयाबी के पीछे गुरू का ही हाथ है। भारत में गुरू की महत्ता त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने बड़े ही भावनात्मक व सम्मान के भाव से समाज के सामने प्रस्तुत किया जबकि गुरू विश्वामित्र व वशिष्ठ जानते थे कि भगवान श्रीराम स्वयं विष्णु के अवतार है लेकिन भगवान श्रीराम ने एक आम मानव की तरह अपने को शिष्य के रूप में प्रस्तुत किया।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी संदीपनि गुरू के आश्रम में एक सामान्य बालक की तरह शिक्षा प्राप्त की। इसके अलावा महराज शिवाजी ने अपने गुरू के आज्ञा पर शेरनी का दूध लाये और आरूणि नामक शिष्य ने अपने गुरू के लिये माघ माह के जाडे में खेत के मेड़ पर इसलिये पड़ा रहा कि गुरूजी के खेत का पानी बाहर चला जायेगा। एकलव्य की गुरू भक्ति संसार तो कभी भूल नही पायेगा कि एकलव्य ने गुरू द्रोणाचार्य की प्रतिमा के सामने धनुर्विद्या सीखी। आज वर्तमान समय में थोड़ा बाजारीकरण के दौर में गुरू शिष्य का रिश्ता भावना से कम व्यापार से ज्यादा जुड़ा दिखता है। देखने को मिलता है कि जहां चरण स्पर्श से गुरू का आशीर्वाद लिया जाता था आज पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर मुंहजबानी गुड मार्निंग में तब्दील हो गया है।

पहले जहां गुरू को लोग देख लेते अपने को छिपाते, लेकिन आज इसलिये नही डरते या संकोच करते है कि क्या करेंगें? विचार कीजिये कि राम, कृष्ण स्वयं परमात्मा के अवतार थे दूसरे राजा के लड़के थे लेकिन जितनी गुरू भक्ति राम कृष्ण ने की उतना एक आम शिष्य नहीं कर सकता है। इसका प्रमुख वजह यह है कि बच्चों को संस्कार की चीजों से कोई लेना देना नहीं है, बच्चे केवल हर चीज की तुलना आधुनिक संशाधन व चमक दमक से करते है, और शिक्षकों की औकात वे ज्ञान से नही अपितु सम्पन्नता या पद से करते हैं। कहीं कहीं सुनने को मिलता है कि बच्चों ने अध्यापक से कहासुनी कर ली। इस का प्रमुख कारण केवल संस्कार है क्योंकि कुछ अभिभावक भी बच्चों के पक्ष को लेकर अध्यापक से उलझ जाते है जो समाज के लिये बहुत ही खराब संदेश देने वाला है।

यह मालूम है कि अध्यापक या गुरू ही देश के भविष्य के निर्माण में बतौर निर्माता है लेकिन फिर भी लोग अपने कार्यों से परेशानी खड़ा करते रहते है। हम सबका कर्तव्य बनता है कि अध्यापक के द्वारा बताई गई हर बात पर बच्चों को अमल करने को कहें तथा अध्यापकों का सम्मान करना बहुत जरूरी है। अध्यापक जैसा भी है लोकिन वह पुजनीय है, समाज में कुछ ऐसे भी अध्यापक है जो कामचोरी व लापरवाही करते है जो कही न कही उनको ही नुकसान पहुंचाता है। शिक्षक व शिष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुये हुये देश की संस्कारिक गुरू शिष्य का रिश्ता कायम रहे जो आने वाली पीढी के लिये एक मिशाल के रूप में मिले।

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