चौकीदार से सीखिये,
कैसे चलता देश ।
लहरे परचम हिन्द का,
देखो देश विदेश ।।
पांच साल पहले कहीं,
न था ऐसा मान ।
जनता के सुख दुःख का,
न था तुमको ध्यान ।।
न था तुमको ध्यान,
देश को लूट रहे थे ।
वंचित,दलित,कृषक सब,
माथा कूट रहे थे ।।
कहें “मधुर” कविराय,
खेल न बने तुम्हारा।
विजयी चौकीदार,
यही जन जन का नारा ।।