Home अवर्गीकृत आस्ट्रेलिया के अग्निकांड से पूरे विश्व समुदाय को सीख लेनी चाहिए।

आस्ट्रेलिया के अग्निकांड से पूरे विश्व समुदाय को सीख लेनी चाहिए।

हमार पूर्वांचल
हमार पूर्वांचल

विश्व के देश भले ही अपने ताकत का प्रदर्शन करने के लिए लालायित रहते है और सामने वाले को नीचा दिखाने का मंसूबा पालते है लेकिन जब प्रकृति अपना रौब दिखाती है तो बडा से बडा ताकतवर देश विवश व लाचार दिखता है। और अपनी पूरी ताकत लगाकर भी प्राकृतिक आपदा का सामना करने में पीछे रहता है। अभी विश्व के लोग अमेजन की आग की त्रासदी को भुला न पाए थे कि आस्ट्रेलिया की आग ने फिर लोगो को प्रकृति के ताकत का अहसास करा दिया। जिसमें करोडों बेजुबान पशु पक्षी आग की भेट चढ गये तथा कुछ मानवीय छति भी हुई।

हालांकि आस्ट्रेलिया में आग की घटनाए होती रहती है। लेकिन इस बार की आग की घटना ने तो आस्ट्रेलिया के साथ-साथ चिली, अर्जेन्टीना और न्यूजीलैंड के लिए भी चिन्ताजनक हालात पैदा कर दिए है। हालांकि आग का प्रभाव केवल आस्ट्रेलिया में ही है लेकिन धुएं का गुबार अन्य देशों को भी परेशानी का सबब बना हुआ है। आग से जो पशु पक्षियो व वृक्षों का नुकसान हुआ वह तो हुआ लेकिन अब आस्ट्रेलिया में ऊंट काफी आक्रामक रूप धारण कर लिए है जो वहां के लोगों के लिए खतरा बने हुए है। इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने ऊंटों को मारने का फरमान जारी कर दिया है। इस फरमान के बाद पुरे विश्व में आस्ट्रेलिया की चर्चा है, पर्यावरणविद इसको गलत बता रहे है, लेकिन सरकार को ऊंटों से ज्यादा नागरिकों की सुरक्षा प्रदान करना पहली प्राथमिकता मान रही है।

आस्ट्रेलिया में कभी वे दिन थे जब भारत समेत एशिया और अरब देशों सें ऊंट मंगाए गये थे लेकिन आज ऊंटों की संख्या में वृद्धि और आक्रामकता की वजह से उन्हें मारने का भी आदेश दिया गया है। आस्ट्रेलिया ने 1890 से लेकर 1910 तक ऊंटों का आयात किया था क्योकि उस समय यातायात के साधनों का अभाव था और आस्ट्रेलिया के लिए ऊंट काफी सहायक साधन था क्योकि आस्ट्रेलिया में 35% मरूस्थलीय मैदान है जहां ऊंटों से आवागमन काफी सरल था लेकिन धीरे-धीरे संसाधनों की बढोत्तरी सें ऊंटों का प्रयोग कम हो गया और उन्हें जंगलों में छोड दिया गया जिन्हें ‘फेरल कैमल’ कहा जाता है।

धीरे-धीरे ऊंटो की संख्या में वृद्धि हुई और आज ऊंट आस्ट्रेलिया में जन हानि पहुंचा रहे है। इसमें ऊंटों की गलती नही है कि वे जानबूझकर ऐसा करने पर उतारू हो गये है। इसके पीछे पानी की कमी और बढता तापमान प्रमुख कारण है। विदित हो कि आस्ट्रेलिया में सामान्यतः 60 सेमी वर्षा होती है जिसमें 35% मरूस्थल है जहां पर 25 सेमी से कम बारिश होती है। और गर्मी के मौसम में आस्ट्रेलिया का तापमान 45 से 49 के आसपास रहता है जिससे पानी का जलस्तर नीचे चला जाता है और पशु पक्षी पानी की समस्या से जुझते है। आस्ट्रेलिया के कुछ क्षेत्र ऐसे है जहां पर लोग भी पानी की समस्या से दो चार होते है। इस तरह प्रचण्ड गर्मी से जंगलों में आग लगने की घटनाएं हो जाती है जो कभी-कभार विकराल रूप ले लेती है। 2009 में आस्ट्रेलिया में लगी आग से 150 से ज्यादा लोग मारे गये थे। पशु पक्षी तो अनगिनत थे। और यही दशा इस बार लगी आग से हो रहा है। हालांकि इस बार तो जनहानि का आंकडा 30 से अधिक नही गया है लेकिन पशुओं की मौत देखकर लोगों का दिल दहल जा रहा है।

यदि आस्ट्रेलिया के गर्मी की बात की जाए तो 2019 इस दशक का सबसे गर्म वर्ष रहा। जिससे जंगलों में आग लगना ज्यादा सहायक हुई। लोगों के जहन में एक बात नही समझ में आ रही है कि सरकार ऊंटों को मारने पर क्यों तुली है? इसकी वजह यह है कि ऊंट सामान्यतः 5 से 10 लीटर पानी पीते है। सुखे और आग की वजह से ऊंटों को पानी नही मिल पा रहा है तो ऊंट अपना रूख बस्तियों के तरफ कर रहे है जिससे ऊंट और मनुष्य में पानी के लिए संघर्ष की स्थिति बन गई है। ऊंट इतने आक्रामक हो गये है कि लोगों के घरों के पानी को अपना निशाना बना रहे है। जाहिर सी बात है कि ऊंटों से लडाई करके मनुष्य नही जीत सकता है। जिससे लोगों को ऊंटों से दिक्कत हो रही है। अब दुसरी बात यह है कि जब ऊंट जुगाली करते है तो उस समय आस्ट्रेलिया में लगभग एक टन कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होता है। आस्ट्रेलिया में इतनी संख्या में ऊंट यदि जीवित रहेंगे तो खाने के बाद जुगाली करेंगे तो अधिक मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होगा जो पर्यावरण को और गर्माहट पैदा करेगा। इन्ही बातों को ध्यान में रखकर आस्ट्रेलिया ने ऊंटों को मारने का फैसला लिया है। जिससे जनहानि को रोकने में कुछ सहयोग मिले।

यदि तापमान के वृद्धि की बात की जाये बीते 70 वर्ष में आस्ट्रेलिया में 1% की वृद्धि दर्ज की गई जो बेहद चिंताजनक है। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में तो विश्व के सभी देश है। जिसका सामना कही न कही प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देखने को मिलता है। चाहे वह आस्ट्रेलिया हो या इंडोनेशिया, नेपाल हो या भारत। इस विश्व स्तरीय समस्या का परिणाम तो सबको भोगना ही पडता है और भविष्य में इसे नकारा नही जा सकता है। आस्ट्रेलिया की इस आग से केवल पशु पक्षियों की ही हानि नही हुई बल्कि इससे कई नुकसान है जिनमें जैव विविधता की कमी, मौसम परिवर्तन, कृषि मे प्रतिकूलता, व्यापार में असर, पशुपालन में कमी, पर्यटन और औद्योगिक विकास पर असर प्रमुख है। हालांकि आस्ट्रेलिया की आर्थिक स्थिती सामान्य से ठीक है लेकिन इसी तरह की समस्याएं रहेंगी तो कब तक संभाल पायेगा आस्ट्रेलिया?

इस तरह की घटना से हम यह न सोचे कि केवल यह किसी एक देश की समस्या या घटना है। इस घटना से सभी को पर्यावरण और प्रकृति के प्रति सकारात्मक सोच के साथ काम करना है और पर्यावरण को सही बनाये रखने में अपने को आगे रखना जरूरी है। भारत भी इससे अछूता नही है यहां पर भी कुछ राज्यों में गर्मी के मौसम में सूखा की स्थिति बन जाती है तो कभी अतिवृष्टि के गवाह बनते है भारतीय। यह सब कही न कही प्राकृतिक संकेत ही है जो हमें अब भी सचेत होने के लिए प्रेरित करते है। आज हम देख सकते है कि उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं से लोग त्रस्त है जैसे कि आस्ट्रेलिया में लोग छुट्टा ऊंटों से।

हालांकि वहां की सरकार ने तो ऊंटों को मारना ही सही समझ रही है लेकिन यहां तो अस्थायी गौ आश्रय स्थल बनाये गये है लेकिन फिर भी छुट्टा पशु देखे जा सकते है। यदि सरकार कडाई से इन छुट्टा पशुओं पर ध्यान न देगी तो ये भी आस्ट्रेलिया के ऊंटों की तरह आक्रामक हो कर जनहानि पर उतारू हो जायेंगे। हालांकि भारत में तो पशुओं को मारना अपराध है लेकिन आज से तीन साल पहले बिहार में लगभग दो सौ नीलगायों को मारने का आदेश हुआ था। जिसके बाद काफी राजनीति हुई और तब मामला शांत हुआ। कुल मिलाकर विश्व के सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि जैव विविधता बनाये रखने में अपना सहयोग करे और पर्यावरण के संरक्षण में अपनी भूमिका निभाएं। नही तो आज यह समस्या दूसरों के साथ है आने वाले दिनों में हम भी भुक्तभोगी हो सकते है। अतः पर्यावरण के संरक्षण व संवर्धन में सभी का सहयोग जरूरी है।

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