केन्द्र सरकार के गले की फांस बना एससी/एसटी
संशोधन बिल की प्रक्रिया के पश्चात छिड़ी आन्दोलन की जंग आर.एस.एस. के हिन्दुत्व एकता की परिकल्पना के लिये बड़े आघात का संकेत है। इसमें समाये सियासती मंशा को यदि समय रहते उभरने से न रोका गया तो हिन्दुओं को जाति वर्ग के आधार पर गोलबंद होने और आपसी टूट से बचा पाना मुश्किल होगा। यह कार्य सियासती शातिरों के बनिस्बत बौद्धिक वर्ग ही आगे आकर कर सकता है।
इतिहास पर नजर डालें तो सत्ता सिंहासन के लिये अपनों से दगा और अपनों के खून से रंगे अनेक हाथ दिखेंगे। जिसका असर आज भी सत्ता के भूखे कतिपय सियासतदां में गहराई से जड़ जमाये हुये है। एससी/एसटी एक्ट की आड़ में पहले दलित और बाद में सवर्ण वर्ग के लोग जिस तरह सड़क पर उतर कर मनमानी के उतावलेपन को बेइंतहा की हद तक पहुंचने को अमादा हैं। उससे साफ जाहिर है कि इसका फायदा उठाने और उक्त मुद्दे को धार देने में वे ताकतें पूरी तन्मयता से सक्रिय हो गयी हैं। जो भारत को संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र के रूप में नहीं देखना चाहती हैं।
भीमा कोरेगांव आन्दोलन और हिंसा के पीछे महाराष्ट्र पुलिस ने जो सच और जिन चेहरों को सामने लायी है उससे तो यहीं लगता है कि देश के आन्दोलित लोग सिर्फ मोहरे व कतिपय सियासतदां के महज प्यादे हैं। असल खिलाड़ी तो कोई और है जो एससी/एसटी की आड़ में देश की जनता को जाति के आधार पर खण्ड खण्ड कर राष्ट्रीय भावना को कमजोर कर देना चाहता है। यह किसी भी राष्ट्रीय विचारधारा वाले भारतीय और राजनीतिक दल के लिये चौंकाने वाली बात है।
बीते दिन देश के विभिन्न हिस्सों में हुये कथित सवर्ण आन्दोलन में ऐसे चेहरे सामने आये जो हाथ में भगवाध्वज लिये वंदेमातरम का नारा लगा रहे थे। जबकि पहले वे ही लोग भगवा से परहेज करने के साथ भगवाधारियों की कोस—कोस कर आलोचना करते फिरते थे। जाहिर है यह वे ही चेहरे हैं। जो गैर भाजपा से दलों से जुड़े रहे हैं। इसका असर सवर्णों पर पड़ना स्वाभाविक है। जो हिन्दुत्व एकता की परिकल्पना को कमजोर कर सकती है। वैसे भी देश के गैर हिन्दू धर्मावलंबी हिन्दुत्व को राष्ट्रवाद न मानकर इसकी व्याख्या अपने लिहाज से धर्म से जोड़कर करते हैं। जबकि हिन्दुत्व की मान्य परिभाषा हिमालय और सिंधु नदी के बीच विकसित सभ्यता को बताया जाता है। जिसमें धर्म जाति को कोई स्थान नहीं है। इसी हिन्दुत्व की परिकल्पना को आरएसएस अपनी मूल सोच और राष्ट्रीयता का आधार बनाये हुये है। जिसकी मजबूती के लिये भाजपा सरकार भी दंभ भरती है।
बहरहाल एससी एसटी विध्वंसक तत्वों का हथियार बने इसके पूर्व ही सरकार को कोई ऐसा सर्वमान्य रास्ता बना देना चाहिये जो अनुसूचित जाति/जनजाति को सुरक्षित भी रखे और इसका बेजा इस्तेाल भी न हो।
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