आगरा : आगरा उत्तर प्रदेश का एक ऐसा पर्यटन स्थल है जिसे लोग प्यार की निशानी के नाम से जानते है । पर क्या ये प्यार सिर्फ मनुष्य से ही होता है ? या इस पर किसी अन्य जीवों का हक़ नही हो सकता । क्यों नही हो सकता है, जीव प्रेम ही सबसे बड़ा प्रेम है। एक मानव दूसरे मानव से प्रेम करे तो ये प्यार का नाम हो जाता है, और जब एक मानव हमारे बीच रह रहे जीव जंतुवो से प्रेम करे और उनके सुख दुख में साथ रहे, तो आप उस लगाव को किस शब्द से बुलाएंगे । ये तो मैं नही जानता पर आज के समय मे मैं इसे प्यार शब्द नही दे पा रहा हु । जी हां क्योंकि आज प्यार सिर्फ मानव में ही लोग देखते है जानवरो में नही, परंतु आज मैं हमार पूर्वाचल के माध्यम से एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में बतायउँगा जो जानवरो के मदद के लिए अपना सब कुछ छोड़कर भाग खड़े होते है ।
आईये आपको ले चलता हूँ आगरा, आगरा से सटा हुआ एक छोटा सा बाजार है खेरागढ़ वही रहते है जितेश ठाकुर जिनकी कोई छोटी सी दुकान है। पर उनके काम बहुत बड़े है ।जी हां जितेश ठाकुर जी जानवरो की सेवा में हमेशा लगे रहते है चाहे वे जंगली जानवर ही क्यों न हो, वो उनके बीच अपने को पाकर बहुत खुश होते है, उनके बारे में ये बाते मैं उनके फेस बुक के पोस्ट से जाना तब मैंने उनसे उनका नंबर मंगा और बात कि। जब जितेश भाई से बात हुई तो उन्होंने बताया कि करीब चार साल पहले से उनके मन मे एक जिज्ञासा जागृत हुई की “क्यों न हमारे जीवन के परोक्ष और अपोरक्ष रूप से सहभागी जानवरो की सेवा न कि जाय ” तब उन्होंने अपनी एक टीम बनायीं और जानवरों के लिए एक मुहिम शुरू कर दिए । अगर कोई भी जानवर किसी भी प्रकार से संकट में हो उनकी मदद की जाय । तब से लेकर आज तक वो अपने क्षेत्र के जानवरों की मदद के लिए आगे आते रहते है । जब उनके क्षेत्र के लोग किसी भी जानवर को संकट में देखते है या कोई भी जानवर हो उसके लिए जितेश भाई के पास फोन कर देते है । तदोपरांत वे तुरंत अपनी टीम के साथ जगह पर पहुच जाते है। कुछ दिनों पहले उनके सामने एक ऐसी घटना आयी जिसने पूरी तरह से प्यार की परिभाषा को ही हिला दिया ।
वाकया यह था कि किसी व्यक्ति ने फोन किया और बताया कि एक जगह एक मादा बंदर मर गयी है और उसका एक छोटा बच्चा उसके पार्थिव शरीर से चिपका हुआ है। बच्चा अपनी माँ को छोड़ ही नही रहा है। सूचना पाते ही जितेश भाई अपनी टीम के साथ उस स्थल पर गए तो उन्होंने देखा कि एक मादा बंदर मृत अवस्था में है एवं उसका नवजात शिशु उसके शरीर से उदासी से चिपका हुआ है । बंदरों का झंडा जो की सैकड़ो की संख्या में थे, दूर से उसको देख रहे थे । जितेश भाई ने बहुत हिम्मत और धैर्यता के साथ उस नवजात शिशु को उसकी माँ से अलग किये और मादा बंदर के पार्थिव शरीर को अपनी सेवा भावना के अनुसार अंतिम संस्कार किये , परंतु शिशु अपनी माँ को छोड़ने को हरगिज़ तैयार ही नही हो रहा था। पर जो सत्य है उसको कोई टाल नही सकता । जितेश और उनकी टीम बंदर के अंतिम संस्कार के बाद शिशु बन्दर को उन बंदरो के बीच छोड़ दिया तो वो नवजात शिशु उनके बीच जा मिला।
इसी को कहते है जीवन और जो बित गया वो बीत गया ।