Home मन की बात हनुमान जी की जाति पर विवाद हो गया।

हनुमान जी की जाति पर विवाद हो गया।

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हमार पूर्वांचल
मन की बात

ज्योतिषाचार्य डॉ आशुतोष मिश्र के मन की बात

हनुमान जी की जाती पर विवाद हो भी क्यों न, भारत विवादों का देश जो है। विवादों के बल पर जीना ही भारतीय लोकतंत्र का चरित्र है।
बजरंग बली की जाति को लेकर सोचता हूँ तो लगता है कि वे ब्राह्मण थे। “अष्ट सिद्धि और नौ निधियों” के ज्ञाता हनुमान से बड़ा ब्राह्मण और कौन होगा? ब्राह्मण होने की सबसे बड़ी कसौटी ब्रह्म को जानने की ही है न? हनुमान से अधिक कौन जान पाया ब्रह्म को? क्या धरती पर ऐसा कोई है जो हनुमान से बड़ा ब्राह्मण होने का दावा कर सके? सुग्रीव से अधिक शक्तिशाली होने के बाद भी उनको राजा बना कर स्वयं उनका मार्गदर्शन करते रहे हनुमान… यही है न ब्राह्मण का कर्म! फिर तो हनुमान जी ब्राह्मण हुए।
पर तनिक सोचिये तो! हनुमान से बड़ा क्षत्रिय कौन होगा? तात्कालिक विश्व के सबसे शक्तिशाली शासक रावण के घर में अकेले घुस कर उसकी लंका जला देने वाले बजरंग बली से बड़ा योद्धा दूसरा कौन हुआ इस सृष्टि में? हनुमान जी रामायण युद्ध के एकमात्र योद्धा हैं जिन्हें कोई राक्षस कभी मूर्छित तक नहीं कर सका। वे रावण के घर मे अकेले घुस कर उसके बेटे को मारते हैं, वे अहिरावण-महिरावण के घर मे अकेले घुस कर उन्हें मारते हैं। क्षत्रित्व इसी निडरता का नाम है न? फिर उनसे बड़ा क्षत्रिय कौन होगा? हनुमान जी तो क्षत्रिय हुए।
अरे रुकिए! परिस्थितियों के मारे दो योद्धाओं राम और सुग्रीव के मध्य सन्धि कराने वाले हनुमान में वणिक बुद्धि कम थी क्या? विश्व के ज्ञात इतिहास की पहली राजनैतिक सन्धि थी यह, जिसके तहत राम सुग्रीव को बाली से मुक्ति दिलाते हैं, और फिर सुग्रीव रावण-युद्ध मे राम का सहयोग करते हैं। फिर यदि मैं हनुमान जी को इस सृष्टि का सबसे सफल वैश्य मानूँ तो अनुचित होगा क्या? बिल्कुल नहीं होगा…
अच्छा शूद्र का शाब्दिक अर्थ क्या होता है, जानते हैं? शूद्र शब्द का शाब्दिक अर्थ है सेवक। जिसके अंदर भी सेवा-भावना है वह शूद्र है। फिर जीवन भर स्वयं को प्रभु श्रीराम का दास कहने वाले हनुमान शूद्र नहीं हैं क्या? अपने स्वामी का उनसे अच्छा सेवक और कोई दिखता है क्या सम्पूर्ण जगत में?
अच्छा बनवासी कौन कहलाता है? वही न, जिसका जन्म वन में हुआ हो? जिसका बचपन वन में बीता हो? जो वनों में रहता हो? हनुमान जी भी तो वनों में ही पले-बढ़े, वे बनवासी ही तो थे।
मित्र! हनुमान जी को हमारे पूर्वजों ने यूँ ही देवता नहीं माना था। ब्राह्मण, वैश्य, शुद्र, क्षत्रिय, बनवासी, राजा, रंक, जितने भी सामाजिक वर्ग हैं न, सबके मूल संस्कार हनुमान जी में मिल जाएंगे आपको। हमने उन्हें कलियुग का जागृत देव इसीलिए माना है क्योंकि वे कलियुग के हर वर्ग विभाजन की रेखा को मिटा देते हैं। कलियुगी शक्तियां सनातन को तोड़ने के लिए चाहे जितने भी सामाजिक वर्ग तैयार कर दें, हनुमान जी हर वर्ग में फिट बैठेंगे।
एक बात और कहूँ? हनुमान के बनवासी होने के सत्य से सबसे अधिक पीड़ा और खुजली किसे होती है, जानते हैं? हनुमान जी से सबसे अधिक डरते हैं जंगलों में बनवासियों का धर्मपरिवर्तन कराने वाले ईसाई मिशनरी। पिछले सौ वर्षों से बनवासियों को फुसलाने का उनका धंधा इसी आधार पर तो चल रहा है कि हिंदुओं के सारे देवता सवर्णों में से हैं। पिछले आठ सौ वर्षों से सनातन का ध्वज थामने वाले नाथपन्थ का एक सन्यासी आज जब सनातन के कलियुग में सबसे पूज्य देवता को बनवासी स्वाभिमान के साथ जोड़ता है, तो ईसाई मिशनरियां और उनके दलाल मीडियाकर्मियों का बिदकना स्वाभाविक ही है। सारे विवाद के पीछे बस इतनी सी ही बात है। नहीं तो जब देश मे राम को क्षत्रिय कहे जाने या कृष्ण को यादव कहे जाने से किसी को कोई आपत्ति नहीं, तो फिर हनुमान को बनवासी कहने पर विवाद क्यों हो रहा है? यहाँ तो भगवान विश्वकर्मा और महर्षि वाल्मीकि भी एक-एक जातियों के प्रतीक बन चुके हैं। फिर हनुमान जी पर विवाद क्यों?
आपको पता है मिशनरी केरल और तमिलनाडु में मुरुगन के नाम से पूज्य भगवान कार्तिकेय को कई वर्षों से क्राइस्ट बता कर लोगों को फुसला रहे हैं? केरल के हिंदुओं के घर जा कर उन्हें बताया जा रहा है कि मुरुगन भगवान शिव के पुत्र नहीं, यीशु थे। आपको पता है कि दक्षिण के कई मंदिरों को हड़पने का लिए ईसाई मिशनरियां उन्हें अपना बता कर उनमें यीशु की लाश वाली मूर्ति टांगने का प्रयास कर चुकी हैं? आपको पता है कि हजारों की संख्या में ईसाई कई मंदिरों में ऐसे आक्रमण कर चुके हैं? हनुमान जी को बनवासी स्वाभिमान से जोड़ना उन सभी धार्मिक आक्रमणकारियों को बुरा लगा है, वे विवाद तो खड़ा कराएंगे ही।
हनुमान जी हमारे लिए कलियुग के सबसे बड़े मार्गदर्शक हैं। वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनवासी, वैश्य सब हैं। वे इन वर्गों में हो कर भी इनसे ऊपर हैं। उनके बनवासी होने के सत्य को न कोई ईसाई मिशनरी झुठला सकता है, न उनके उत्कोच पर पलने वाले कथित बुद्धिजीवी।

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