भदोही – गांव-समाज में चुनाव की बयार बहते ही दर्जनों स्थानीय नेताओं की राजनीतिक दुकानें सज जाती हैं लेकिन सदाबहार सामाजिक-धार्मिक नुमाइंदा स्थानीय गांव को कभी-कभार ही मिलता है। खैर..इन दिनों काशी-प्रयाग मध्य के अकोढ़ा गांव का ‘बीडीसी’ भूतपूर्व ग्राम प्रधान के सपनों को सामाजिक-धार्मिक पथमय साकार करता नजर आ रहा है, जिसके कारण गांव-समाज का लाडला बन चुका है।
गौरतलब है कि तहसील ज्ञानपुर के अकोढ़ा गांव में इन दिनों सामाजिक-धार्मिक विकास की गंगा मानों धारा प्रवाह बह रही हो क्योंकि यहां युवाओं ने बुजुर्गों के सानिध्य में ‘मातृभूमि संकल्प’ के माध्यम से डेरा जमा दिया है। गांव-समाज से लेकर मुंबई-कलकत्ता, दिल्ली-बंगलुरु से यहां युवा सार्वजनिक धार्मिक स्थलों के जिर्णोद्धार हेतु अपने खून-पसीने की कमाई स्वेच्छा दान-दायित्व कर रहे हैं। अब आप समझ चुके होंगे कि चर्चा ऐतिहासिक ‘श्रीराम-जानकी चबूतरा’ काशी-प्रयाग मध्य की हो रही है। बताया जा रहा है कि हजारों नहीं बल्कि लाखों का स्वेच्छा दान-दायित्व बिना किसी नाम-दाम या स्वार्थ के ‘मातृभूमि संकल्प’ के माध्यम समर्पित हुआ है। इसी क्रम में यहां के सरल स्वभाव बीडीसी स्वतंत्र मिश्रा (डब्बू) ने भी कंधा से कंधा मिलाकर साथ निभाया है। शायद ही भदोही जिले के किसी गांव में ऐसा बीडीसी सामाजिक-धार्मिक डगर पर कर्मठ हो।
पंडित जी की याद आती है – गुड्डू पाठक
‘मातृभूमि संकल्प’ अकोढ़ा के मुख्य नेतृत्वकार सुरेन्द्र पाठक (गुड्डू) कहते हैं कि ‘बीडीसी डब्बू मिश्रा के सामाजिक-धार्मिक सहयोग को देखकर हम लोगों को भूतपूर्व ग्राम प्रधान पं. लक्ष्मी नारायण मिश्र जी की याद आ ही जाती है। उन्होंने ही अकोढ़ा ब्राम्हण परिवार के कुछ सम्मानीय लोगों की गुजारिश पर मेला हेतु सार्वजनिक जमीन दिया था, जहां आज ऐतिहासिक ‘श्रीराम-जानकी चबूतरा’ निर्मित हुआ है और सहयोग अकोढ़ा-रोही दोनों गांव का है लेकिन ‘मातृभूमि संकल्प’ के माध्यम से स्वेच्छा दान-दायित्व की गुहार सिर्फ अकोढ़ा के ब्राम्हण परिवार से लगाई गयी थी। इसी क्रम स्थानीय नेताओं ने भी कदम बढ़ाया लेकिन नेताओं में सर्वाधिक हमारे बीडीसी भी २६६५१ धनराशि की संकल्पपूर्ति के साथ निरंतर सहयोग में हैं, जिसमें अहंकार एवम् स्वार्थ की झलक भी नहीं है। अपने दादाजी पदचिन्हों पर इनकी खरी भूमिका है और यकीन मानिये कि उनके ही सपनों साकार करते नज़र आ रहे हैं।”