Home साहित्य ये साल तो अच्छा साल रहे…

ये साल तो अच्छा साल रहे…

hamaar purwanchal
आचार्य अनिमेषानंद अवधूत

ये साल तो अच्छा साल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

साज़िश न किसी की चाल रहे,
न कोई मायाजाल रहे,
रिश्वत का न अब जंजाल रहे,
हर शख़्स यहाँ ख़ुशहाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

बिखरे बिखे हालात न हों,
सूने सूने दिन रात न हों,
बहके बहके जज़्बात न हों,
बातों में भी सुर-ताल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

बेटे माँ से बिछड़ें न कभी,
सास बहू झगड़ें न कभी,
दादा दादी रूठें न कभी,
परिवार सदा ख़ुशहाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

बहनों की बातें भाई सुने,
बच्चों की बातें आई सुने,
जो बच जाए वो ताई सुने,
दादी का सब को ख़्याल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

बिटिया को अच्छा वर भी मिले,
भाई जैसा देवर भी मिले,
पर सास का थोड़ा डर भी मिले,
मायके जैसा ससुराल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

हो जाए ख़त्म हर दुश्वारी,
महके आँगन की फुलवारी,
गूँजे बच्चों की किलकारी,
सारा घर भर ख़ुशहाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

मन्दिर मस्जिद या गिरजाघर,
ताज़ीम है सब की शर्त मगर,
अल्लाह है वही जो है ईश्वर,
बस इसका सब को ख़्याल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

मज़दूर कभी बेकार न हो,
घाटे का कारोबार न हो,
मिल मालिक बेज़ार न हो,
न धरना न हड़ताल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

क्यों अहंकार ने घेरा है,
कुछ तेरा और न मेरा है,
ये दुनिया रैन बसेरा है,
हम को हर पल ये ख़्याल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

दंगों की कोई बात न हो,
फिर घात के भीतर घात न हो,
दहशत में डूबी रात न हो,
कोई क्योंकर बदहाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

सरहद का हमको क्यों डर हो,
क्यों पासपोर्ट का चक्कर हो,
सारी दुनिया अपना घर हो,
फिर पेरिस या नेपाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

फिर से जंग का एलान न हो,
हद से बाहर शैतान न हो,
फिर गर्दिश में इन्सान न हो,
क्यों धरती ख़ूँ से लाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।

क्या देश आज बर्बाद नही,
क्यों इंक़लाब की याद नहीं,
क्या जिस्म तेरा फौलाद नहीं,
क्यों देश का फिर ये हाल रहे,
ये साल तो अच्छा साल रहे।।

रचनाकार- आचार्य अनिमेषानंद अवधूत

Leave a Reply