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मन की बात: मानवता आज भी जिन्दा है

patrkar vijay singh

आशा और उम्मीद! ये दोनों शब्द एक दूसरों के पर्यायवाची हैं। भरोसा और इच्छा भी। जब कहीं कोई अप्रिय घटना होती है या हम सुनते है तो हमारे मुख से अफ़सोस निकल जाता है और हम कोशिश करते हैं कि क्या हम कुछ कर सकते हैं की नहीं। मन में एक जिज्ञासा जाग जाती है। मन विचलित हो जाता है और फिर हम कुछ अच्छा करने की कोशिश करते हैं। हम सब अपने प्रियजनों से या मित्रों से सम्पर्क करते हैं।
जब कुछ दिन पहले एक ख़बर हमारे सम्पादक जी ने बतायी की ‘एक पत्रकार जिन्होंने अपने जीवन का कीमती समय एक बड़े मीडिया समूह को दिया और अपनी निडरता और निष्पक्ष पत्रकारिता की वजह से उन्होंने गोलियाँ भी खायी और आज वो बहुत ही दयनीय स्थिति में है उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं’। यह पढ़कर मन में बहुत सवाल आए और एक सहानुभूति और दर्द और पीड़ा उस पत्रकार के लिए उठा। पूरे बनारस में उन्हें सफ़ेद बाल के नाम से सब जानते है उनका नाम विजय सिंह है।
हमार पूर्वांचल के जागरूक सदस्यों ने जो कि समाज के प्रति समर्पित है, उन्होंने पीड़ित पत्रकार के मदत के लिए कुछ धन राशि इकट्ठा की तथा उन तक पहुँचने का कार्य किया। अगर ये पत्रकार ना होते तो स्वाभाविक था की कोई ना कोई नेता आगे आता और अपने वोट बैंक के लिए ड्रामा करके चला जाता। पर यहाँ ऐसा नहीं था और न ही कोई जातिवाद वाला मैटर था कि कोई आकर इसे भी खेल जाता । कुछ लोगों ने मदद करने की कोशिश की, लेकिन उसमें स्वार्थ था जिसे उस पत्रकार ने भाँप लिया तो उन्होंने मना कर दिया। ‘हमार पूर्वांचल’ के तरफ़ से जो धन राशि इकट्ठा हुई वो नि:स्वार्थ भाव से थी और ये एक पहल थी। सम्पादक जी ने कुछ और लोगों को भी जागरूक किया और उसका नतीजा सामने आ रहा है।

जब हम सब यानी ‘हमार पूर्वांचल’ पत्रकार विजय जी को मिलने उनके बनारस वाले आवास पर पहुँचे तो पता लगा कि वे आज ही अस्पताल में भर्ती हो गए। हमारे साथ बनारस के पत्रकार अमन जी थे जिनके साथ हम सब अस्पताल पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर पता चला की डॉक्टर कर्मराज सिंह ने नि:शुल्क इलाज के तहत विजय जी को अपने अस्पताल ओमेगा में भर्ती किया है। और विजय जी का इलाज नि:शुल्क चल रहा है तो मन में एक उम्मीद की किरण जागी और लगा की मानवता आज भी ज़िन्दा है।

यही उम्मीद की किरण और आशा की किरण हम सब रखते है, किसी ना किसी से कहीं ना कहीं और इसी उम्मीद और आशा पर हम सब ज़िन्दा है।

जब अस्पताल में विजय जी से हरीश जी बात कर रहे थे तो विजय जी कहीं दैनिक जागरण का ज़िक्र नहीं किया। वहीं दैनिक जागरण है जिसके लिए विजय जी ने ना दिन देखा ना रात सिर्फ़ अपने काम पर लगे रहे। जब उनसे मिले तो सर पर बाल नहीं थे। चिकित्सा के वजह से निकले थे तो वो बता कर हंस दिए । उन्होंने बताया की मेरी पहचान मेरे सफ़ेद बाल ही थे और है बहुत कम लोग मुझे मेरे नाम से जानते हैं । यह सुन कर मैं समझ गया कि लोग इनके काम के वजह से इनको जानते है।

जब हरीश जी ने धन राशि उनको देने के लिए आगे बढ़े तब मुझे लगा की शायद विजय जी बुरा ना मान जाए, लेकिन उन्होंने सहजता से स्वीकार किया और एक आभार प्रकट किया। उस समय मुझे उनके चेहरे पर एक आशा की किरण दिखायी दी की ‘हाँ मैं अकेला नहीं हूँ’ और अभी भी कुछ लोग है जो मेरे लिए सोचते है। काफ़ी बातें हुई और मुझे विजय जी के अंदर एक नए विजय दिखे जो आत्मविश्वाश से भरे दिखाई दिए और उन्हें लगा कि अब मैं ठीक हो जाऊँगा।

उन्होंने हरीश जी को कहा कि मैं आपको फोन करूँगा आप अपना नम्बर दे दीजिए तो हरीश जी ने ह्यूमन टुडे की पत्रिका दी और बताया की यह मेरा नम्बर है। जब ह्यूमन टुडे की पत्रिका विजय जी को दे रहे थे तो साथ खड़ी अस्पताल की नर्स बड़े ही आश्चर्य के साथ ये सब देख रही थी और वो सोच रही थी की सच में मानवता आज भी ज़िन्दा है। नर्स ने जब हमसे पूछा कि क्या हम इनके रिश्तेदार है तो हमने बताया की नहीं तो नर्स ने जवाब दिया की हाँ मैं सब देख रही हूँ और सुन रही हूँ और मुझे लग रहा है की मानवता आज भी ज़िन्दा है। ये सुनकर मैं अंदर से गौरवान्वित महसूस कर रहा था और मैंने तुरंत एक पत्रिका रिंकु भाई जो की छायाकार है उनसे दिलाई। अंत में कुछ बातें हुई और रविवार को फिर मिलेंगे कह कर हम सब वहाँ से विदा हो गए।
इस दरमियाँ विजय जी जो की लकवा ग्रस्त थे उन्होंने ये हमें महसूस नहीं होने दिया वो अपने से उठ के बैठ गए और हमसे बात करने लगे। वो एक उम्मीद की किरण आशा की किरण अब उन्हें दिखने लगी । उन्होंने हमारे भाव को समझा और वो हमसे सहर्ष मिलें।

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