मध्य प्रदेश के मंदसौर की रेप की घटना बहुत ही दु:खद एवं अमानवीय है । उस मासूम के शब्द कि “माँ मुझे ठीक कर दो या तो मुझे मार डालो” को सुनते ही दिल कराह उठता है और कोई भी संवेदनशील व्यक्ति रोये बिना नहीं रह सकता। इसी प्रकार की दिल्ली में मासूम निर्भया के साथ घटी घटना थी जिससे प्रदेश ही नही अपितु पूरा देश कांप गया था। कैण्डेल मार्च निकला ,धरने हुये ,अनशन हुये पुरे भारत से इसके खिलाफ आवाज उठी लेकिन क्या हुआ? हर एक दिन कोई न कोई एक निर्भया बनती जा रही है।
हद तो ऐसी हुई कि दरिंदो ने मासूमों को भी नही छोड़ा। कठुआ हो,बिहार हो या मंदसौर हो या और भी कई घटनाएं हैं जहाँ खेलने,कूदने और पढ़ने की उम्र में मासूमों को दिल दहला देने वाले दर्द को सहना पड़ा है। पर और कब तक? यह सोचने पर मजबूर होना पडता है कि आखिर क्यों नही उन राक्षसों को मासूमों की चीखें सुनाई देती ? क्यों उनके दिल मे दया की एक बूंद भी नही बची है ? तभी पढ़ने को मिला कि उन दरिंदो ने शराब पी रखी थी जिसने उनके अंदर की दया और मानवता को पूरी तरह से खत्म कर दिया था परंतु क्या शराब ही इन घटनाओं की जडो मे ? यह विचारणीय प्रश्न है ।
आज इस तरह की घटनाएं आम होती जा रही है आखिर क्या है इसका असली कारण?मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि इसका असली कारण हमारे समाज से दिन प्रतिदिन होता नैतिक पतन है। चकाचौध के इस माहौल मे चरित्र और नैतिकता का लोग मखौल उडाते नजर आते है । यहाँ तक कि सेक्स को लोग स्टेटस सिंबल से जोडकर देखने लगे है ।
शिक्षण संस्थान जो कभी शिक्षा के मंदिर हुआ करते थे जहॉ कभी चरित्र एवं नैतिकता सिखायी जाती थी शिक्षा के बाजारीकरण के इस युग में रोजगार के माध्यम मात्र बनकर रह गये। शिक्षक स्वयं पथभ्रष्ट है और प्राय:गुरू शिष्य के रिश्ते को कलंकित करने की तमाम घटनाएं प्रकाश में आती है और तो और वर्तमान परिवेश में हमार धर्मगुरू भी इससे अछूते नही रह पायें है तो ऐसे में सिर्फ शराब के रोक से या फॉसी की सजा देकर इन घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है शायद नही ।
बलात्कार के अपराध को रोकने के लिए समाज के सभी लोगो को आगे आकर प्रयास करना होगा शायद तब ही यह संभव हो पायेगा। युवाओं के अंदर चरित्र निर्माण के लिए जो कुछ भी संभव प्रयास हो वो करें। तभी शायद हमारे देश में महिलाएं और मासूम बेटियां सुरक्षित रह सकेंगी, तभी उनके आत्मसम्मान की रक्षा हो सकेगी तभी वह सम्मान के साथ जी सकेंगी। सभी को इस बिंदु पर सोचना होगा।