दिनांक 02 दिसम्बर 2018, सभी उत्तर भारतीयों के लिए मुंबई में बड़े गर्व और हर्ष का दिन था, क्योंकि कोई तो था जो मनसे प्रमुख श्री राज ठाकरे से आज के दिन प्रश्न करने वाला था कि क्यों परेशान किये जाते है उत्तर भारतीय? क्यों मारे जाते हैं उत्तर भारतीय? क्यों उत्पीड़ीत किये जाते हैं उत्तर भारतीय?
लोगों को उम्मीद था कि मनसे प्रमुख उत्तर भारतीयों को सांत्वना देंगे कि भविष्य में उत्तर भारतीयों को परेशान नहीं किया जाएगा, मारा-पीटा नहीं जाएगा और ना ही उत्पीड़ीत किया जाएगा। किन्तु हुआ इसका ठीक उल्टा।
जिस तरीके से कार्यक्रम का प्रचार किया गया और नाम दिया गया “सीधा संवाद” उस तरीके से लोगों को यकीन था कि मंच पर उत्तर भारतीयों का कोई प्रतीनिधि मंडल होगा जो मनसे प्रमुख से उत्तर भारतीयों के लिए तीखे प्रश्न पुछेगा और मनसे प्रमुख उत्तर भारतीयों को आश्वाशीत करेंगे। किन्तु मंच देख कर ही लग गया कि यह आयोजन केवल मनसे प्रमुख को प्रसन्न करने के लिए किया गया है। मंच पर केवल एक सुन्दर सा सोफा रखा गया था मनसे प्रमुख श्री राज ठाकरे के लिए।
उत्तर भारत पंचायत के लिए जाना जाता है, जँहा दोनों पक्ष समान रूप से उपस्थित रहता है। किन्तु यह पहली महपंचायत थी जिसमें उत्तर देने वाले के लिये विशेष आसन और प्रश्न कर्ता के आसन का पता ही नहीं।
उत्तर देने वाला आता है और उत्तर के नाम पर खुद द्वारा किये गए कार्यों की प्रशंसा करता है और उत्तर भारतीयों की महापंचायत में उत्तर भारतीयों को घुटघुट कर शर्मिन्दा होने के लिए मजबूर कर देता है।
कोई भी समाज का ठेकेदार ऐसा कैसे कर सकता है कि सम्मान से जीने वाले उत्तर भारतीय खुद के समाज द्वारा आयोजित महापंचायत में ही खुद को अपमानीत समझे।
इस महापंचायत की दशा देख कर एक दोहा याद आता है, जो प्राईमरी स्कूल में पढ़ाया गया था।