बवासीर अद्भुत बीमारी है! गज़ब के प्रतीकों को सहेजे हुए है। जब से एक टीवी चैनल के प्रोग्राम में दो गेस्ट आपस मे भीड़ गए लगता है कि कही यह लाईलाज तो नही होती जा रही!
अब एंकरों को ‘ग्रेट खली’ जैसे होना होगा! स्वाद भरे और शक्ति भरे! जो ऐसे बोले कि सारे रसरंजन करे और जरूरत हो तो बिनानी सीमेंट की दीवाल को भी तोड़ डाले!
और पार्टियों को भी अब सजग होकर पार्टी प्रवक्ताओं को चुनना चाहिए! ‘सुख कर छुहाड़े’ हुए प्रवक्ता किसी काम के नही! वैसे भी अब जनता के पास इतना समय नही कि आप सबको वह गंभीरता से सुने या ले! दस मिनट में अपने समय की पूरी कीमत वसूलनी हो तो बवासीर पीड़ित प्रवक्ताओं की बेहद जरूरत है !
खैर एक ड्राइवर साहब थे यादव जी उनको असली वाला बवासीर था। जहां जाते वह इसकी दवा ढूढ़ लेते थे।और हर बार समोसे खाने के बाद मसालों से दूर रहकर मसलों पर गंभीर रहने की नसीहत दिया करते थे।
अंत मे छब्बीस रुपये की दवा ने उनका काम किया। जिसमें से सात रुपये की डोरी, सोलह रुपये की दवाई और तीन रुपये का मंत्र था! जिसकी वजह से यादवजी गाड़ी में सीधे बैठ पाते थे! यादव जी का तो उद्धार हुआ लेकिन मुंह के बवासीर का क्या ? क्या वह लाईलाज ही रहेगा ?
लोकतंत्र को बवासीर हो गया है! मुंह खुलने से पहले ही बहता जा रहा !