कभी दलित समाज की बंदी तो कभी सवर्णों की बंदी तो कभी राजनीति में बंदी ! भारत बंद का ऐलान करने वाले यह सोचते है कभी आखिर कब तक यह खेल चलेगा। क्या आपको मालूम है एक दिन भारत बंद होने से जो नुकसान होता है आर्थिक वो बहुत बड़े स्तर पर होता है । उसका भरपाई कौन करेगा हम देख रहे हैं जनवरी में भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद केवल महाराष्ट्र को ढाई सौ करोड़ का नुकसान हुआ बीते अप्रैल में दलितों द्वारा भारत बंद किया गया उस बंद में 13000 करोड़ का नुकसान हुआ फिर किसान मोर्चा के तहत महाराष्ट्र को भारी ट्रैफिक झेलना पड़ा उसके बाद महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन के तहत बंद किया गया उसमें करीब लाखों का नुकसान हुआ जो केवल महाराष्ट्र भर में ही था।
इसके बाद सवर्णों का भारत बंद कहीं ना कहीं इस बंद में आम जनमानस का नुकसान होता है भारत में विरोध करना सबका अधिकार है सब अपनी बातें रख सकते हैं सब स्वतंत्र हैं स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार है संविधान के नियमों का पालन करते हुए अपना विरोध दर्ज करना स्वाभाविक है इस बंद में जो नुकसान होता है उससे आखिर क्या मिलता है बंद में कहीं न कहीं हम भारत को आर्थिक रूप से पीछे ही धकेल रहे हैं बंद में होने वाले हिंसा से जो नुकसान होता है तोड़फोड़ होती हैं दुकानें बंद कराई जाती है क्या यह सही है आप कहते हैं कि हम जनता की परेशानी के साथ खड़े हैं उनके पक्ष में यह विरोध है पर देखा जाए तो नुकसान भी तो उन्हीं का होता है क्या कर रहे हैं।
आखिर यह बंद का मकसद क्या रहता है आम जनमानस का फायदा नुकसान भारत बंद का आवाहन मे कहीं जगह हिंसक प्रदर्शन हुए आज तेल के बढ़ते दामों को लेकर भारत बंद हुआ क्या देश का नुकसान करने से घटेगा तेल का दाम बिहार में भारत बंद एक मासूम की जान चली गई जनता का तेल निकालने से तेल के भाव थोड़ी गिर जाते हैं राजनीतिक पार्टियों को सोचना चाहिए किसका खेल बिगड़ता है आप जनता हित की बात करते हैं। और इसमें जनता का ही नुकसान होता है अखिल भारत बंद के हिंसा के पीछे कौन है तेल की धार तो राजनीतिक पार्टियों का बेड़ा पार तो कर सकती है यही बंद तरक्की के नाम से होता है जो कई हत्याओं का आगजनी का हिंसा का आर्थिक व्यवस्था गिराने का सबसे बड़ा कारण बनता है।