महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह तोड़ने वाला कोई और नहीं बल्कि पांडव भाईयों में से एक धनुर्धारी वीर अर्जुन का पुत्र अभिमन्यू था, जिसने अपने परिवार की मर्यादा को बचाने के लिये अपनी जान कुर्बान कर दी, लेकिन न तो वैसा महाभारत ही रहा और न ही धर्मयुद्ध जिसमें धर्म की रक्षा के लिये बलिदान दे दिया जाये। वर्तमान हालात में जिस तरह की स्वर्थपूरित राजनीति चल रही है, उसमें कौन सा अभिमन्यू किसके चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये खड़ा हो जायेगा कहा नहीं जा सकता है। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन करके भारतीय जनता पार्टी को जो झटका देने वाली थी। अब उसे खुद मिशन 2018 में अपनी साख बचाने के लिये जद्दोजहद करनी पड़ेगी, क्योंकि गठबंधन से एकजुट होने वाले वोटबैंक में सेंध लगाने के लिये एक ऐसा अभिमन्यू पैदा हो गया है जो अखिलेश—माया के सपनों पर पानी फेर सकता है। 2019 में अभिमन्यू की भूमिका निभाने के लिये तैयार हुआ यह शख्स भले ही भाजपा का नहीं है, लेकिन यूपी के लोकसभा चुनाव में कूदने वाला यह शख्स भाजपा के लिये अभिमन्यू की भूमिका में ही होगा।
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गौरतलब हो कि समाजवादी पार्टी की कमान हाथ में आने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव अपने करीबियों को जहां जिम्मेदारी देनी शुरू की वहीं अपने चाचा और समाजवादी पार्टी को अपने खून पसीने से सींचने वाले शिवपाल सिंह यादव की उपेक्षा शुरू कर दी। यह विवाद मुलायम परिवार में विघटन की स्थिति पैदा कर दिया लेकिन अखिलेश अपनी जिद पर अड़े रहे और पूरा कमान अपने हाथ में रखते हुये किसी को भी ढील नहीं दिया। जिसका परिणाम रहा कि पारिवारिक विवाद पार्टी पर भी हावी होता गया। हालात यहां तक आ पहुंचा कि अखिलेश और शिवपाल की तरफ से बयानों के तीर एक दूसरे को आहत करते रहे और दूरियां घटने के बजाय बढ़ती ही चली गयी। जिसका परिणाम हुआ कि शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा नामक पार्टी का गठन करके 2019 में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
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शिवपाल सिंह यादव द्वारा पार्टी का गठन होने के बाद उत्तरप्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गयी हैं। प्रदेश की राजधानी लखनउ में भी भारी बारिश के बावजूद राजनीतिक गर्मी बढ़ गयी। यह घोषणा भले ही अब की गयी है किन्तु इसकी तैयारी पिछले काफी दिनों से चल रही थी। शिवपाल ने खुद कहा है कि वे पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा कर रहे हैं और अब तक पश्चिम यूपी के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी, भदोही, मीरजापुर, देवरिया, गोरखपुर और आजमगढ़ जिलों का दौरा किया है। निश्चित तौर पर इस दौरे में शिवपाल सिंह यादव ने उन सभी से मुलाकात किया जिनको अखिलेश ने दरकिनार किया था और उनकी सपा के स्थानीय संगठनों और वोटरों पर अच्छी खासी पकड़ भी है। गौर करने वाली बात यह भी है कि शिवपाल ने अपने प्रेस कांफ्रेन्स में भाजपा का नाम भी लिया तो सम्मानित ढंग से ही।
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गौरतलब हो कि पिछले काफी दिनों से शिवपाल सिंह यादव का भाजपा के नेताओं से मिलने की खबरें भी आ रही थी। जिससे लोग अंदाजा लगा रहे थे कि शायद वे भाजपा में चले जायें, लेकिन यहां तो अंदरखाने में कोई और ही गुल खिल रहा था। गौर करने वाली बात यह भी है कि मुलायम परिवार के विशेषकर शिवपाल सिंह यादव के अति करीबी रहे ज्ञानपुर के बाहुबली विधायक विजय मिश्रा भी भाजपा के काफी करीब आ गये थे, किन्तु भाजपा में जाने की बात कभी नहीं की। पिछले दिनों जब भदोही में शिवपाल सिंह यादव अचानक विधायक विजय मिश्रा के धनापुर निवास पर पहुंचे तो लोगों ने पुराने संबंधों के नाते ही मिलने का अंदाजा लगाया किन्तु नई पार्टी के गठन से अब यह स्पष्ट हो गया कि राजनीति का एक छुपा खेल अंदरखाने में काफी दिनों से चल रहा है।
जब उत्तरप्रदेश में सपा बसपा गठबंधन हुआ तो कयास यहीं लगाया जा रहा था कि अब भाजपा के चाणक्य अमित शाह आने वाले चुनाव में इस मुसीबत से पार कैसे पायेंगे। क्योंकि सपा और बसपा का वोटबैंक यदि 2019 में एकजुट हो जाता तो भाजपा के लिये मुसीबत खड़ी होनी तय थी। दूसरी तरफ मुस्लिम वोटरों का एक ही एजेण्डा रहता है कि जो भाजपा को हरायेगा वोट उसी को देना है। यादव, मुस्लिम और दलित वोटरों की तिकड़ी भाजपा पर भारी पर सकती थी, लेकिन शिवपाल के नये मोर्चे ने भाजपा के माथे पर चुनाव के पहले चुहचुहा रहे पसीने को पोंछने का काम करेगा।
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गौर करने वाली बात यह भी है कि यदि शिवपाल सिंह यादव भाजपा में शामिल भी हो जाते तो उसका अधिक लाभ भाजपा को मिलने वाला नहीं था। यहीं नहीं बल्कि भाजपा जैसे समन्दर में मिलकर शिवपाल भी अपना वजूद खो देते। बल्कि राजनीति और उम्र के अंतिम पड़ाव का सफर तय कर रहे शिवपाल की महात्वाकांक्षायें भी दम तोड़ देती। अब जो हालात बन रहे हैं उससे शिवपाल और भाजपा दोनों को 2019 में लाभ मिलने की संभावना प्रबल हो गयी है। एक तरफ शिवपाल सिंह यादव अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ कर कुछ सीटें निकालें और लोकसभा गठन के दौरान भाजपा से गठबंधन करके मंत्री पद हासिल कर लें। लेकिन यह रास्ता शिवपाल के लिये मुफीद दिखायी नहीं दे रहा है। भले ही शिवपाल अपनी सीट जीतकर भाजपा के पाले में चले जायें, लेकिन उनकी पार्टी को भी मजबूती मिलेगी इसमें संशय ही है। शिवपाल के लिये सबसे सुगम रास्ता यहीं होगा कि वे चुनाव से पहले एनडीए का हिस्सा बन जायें और गठबंधन के तहत जो भी सीट मिले उसपर चुनाव लड़ें।
यदि भाजपा और शिवपाल का गठबंधन चुनाव से पहले होता है तो समाजवादी पार्टी का नाराज तबका ही नहीं बल्कि सपा का एक बड़ा वोटबैंक शिवपाल के साथ होगा। क्योंकि शुरू से ही शिवपाल की पकड़ समाजवादी पार्टी के जनपदीय ढांचों पर रही है और उनके समर्थकों की एक अच्छी खासी संख्या आज भी उनके साथ है जिन्हें सपा बसपा का यह गठजोड़ रास नहीं आ रहा है। खैर अभी चुनाव में काफी दिन हैं और इस बीच राजनीति में कब कौन सा समीकरण बनता बिगड़ता रहे कहा नहीं जा सकता है किन्तु यूपी की राजनीति में शिवपाल सिंह यादव का समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा सपा बसपा गठबंधन के चक्रव्यूह को भेदने के लिये अभिमन्यू की भूमिका में होगा जो भाजपा के लिये चुनावी लाभ पहुंचायेगा।
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Bahut badhiya likha hai aapne.