मुम्बई। पिछले दिनों एक वैवाहिक कार्यक्रम में हम सब बैठे हुये थे। कुछ बच्चे अपने पिता के साथ आये थे और खेल रहे थे। तभी एक मासूम सी बच्ची से एक बच्चे ने सवाल किया कि’ तुम्हारे पापा नहीं आये हैं क्या”। इस सवाल को सुनते ही बच्चों के साथ खिलखिला रही मासूम के चेहरे की मुस्कान गायब हो गयी। उत्साह से खेल रही बच्ची के कदम रूक गये और उसने कातर आंखों से अपनी मा की ओर देखा और बोझिल कदमों से अपने मां के पास चली आयी। इस दौरान उसकी आंखें भी आंसुओं से बोझिल हो चुकी थी। बच्ची ने अपने सिर को मां की गोद में रखा और सिसकने लगी। शायद बेटी की पीड़ा का अहसास ही था जो मां की आखों से भी आंसुओं के रूप में छलक पड़ा। हमारे आसपास बैठे सभी लोगों के चेहरे पर एक दर्द सा उभर आया और महसूस हुआ जैसे मासूम को इस असहनीय पीड़ा इस समाज ने ही दी है, वहीं समाज जो दिखावे के लिये बड़ी बड़ी बातें तो करता है किन्तु हकीकत में जब कुछ करने का मौका मिलता है तो अपनी निगाहों को फेर लेता है।
उत्तरप्रदेश के भदोही जिले के ही रहने वाले सिर्फ इस बाप ने ही बच्ची को तिल तिल कर मरने के लिये विवश नहीं किया है, बल्कि इस कृत्य में मासूम की दादी, दादा, चाचा, चाची और पूरा परिवार ही शामिल है। पैदा होने के एक साल बाद ही अपनों से ठुकरा दी गयी यह मासूम अब 8 साल की हो गयी है, लेकिन इस मासूम को मां के अलावा न तो बाप की गोद नसीब हुई और ही घर के बड़े बुजुर्गों की। हद तो यह है कि अब उस मासूम और उसकी बेबस मां को लगातार आठ सालों से मानसिक प्रताड़ना का शिकार बनाया जा रहा है। मासूम के अपने ही वह हर प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी तरह वह मासूम एक पल भी चैन की सांस नहीं ले पाये।
जब कहीं पर किसी बच्चे की हत्या हो जाती है तो कुछ लोग पूरे जोश में आ जाते हैं। जगह जगह धरने प्रदर्शन होते हैं, मोमबत्ती जूलूस निकाला जाता है। सरकार से कड़े कानून बनाने की मांग की जाती है। आरोपियों को फांसी के सजा की मांग की जाती है। अपराध करने वाले को समाज से बहिस्कृत कर दिया जाता है, लेकिन वहीं एक बाप अपनी ही बेटी को रोज तिल तिल कर मार रहा है तो कोई समाज आगे नहीं आ रहा है। अपनी ही बेटी के साथ किया जा रहा यह गुनाह क्या किसी हत्या से कम है।
गौरतलब हो कि नवम्बर 2012 में मूलत: वाराणसी जिले के चौबेपुर गांव की डिम्पल मिश्रा जो महाराष्ट्र के उल्हासनगर में रहती है। उसकी शादी भदोही जिले के मूलापुर गांव निवासी नागेन्द्रनाथ मिश्रा के पुत्र विपिन मिश्रा से हुई थी। विपिन मिश्रा ठाणे के मनोरमा नगर में अपने भाई सुशील मिश्रा के साथ फोटो स्टूडियो चलाता है। 2 मई 2011 में डिम्पल को पुत्री पैदा हुई और 5 मई 2011 को विपिन मिश्रा अपने गांव में आकर दूसरी शादी कर ली। दूसरी शादी के बाद भी विपिन ने डिम्पल को भनक नहीं लगने दी और एक साल तक रिश्ता बनाये रखा, लेकिन इस बात की पोल खुल गयी। पहले तो वह रोई गिड़गिड़ाई लेकिन विपिन नहीं माना और धमकी दिया कि तुम अकेली हो मेरा क्या कर लोगी। फिर डिम्पल ने सोशल मीडिया से अपनी लड़ाई की शुरूआत की।
अपनी बेटी आंचल को न्याय दिलाने के लिये वह गोंद में डेढ़ साल की बेटी लेकर भदोही आयी और विपिन के घरवाले घर छोड़कर भाग निकले। इसके बाद भदोही कोर्ट के साथ मुम्बई में भी मुकदमा दर्ज हुआ। लेकिन इतने दिन बीतने के बाद भी अभी आंचल को न्याय नहीं मिल पाया है। पिछले आठ साल से मासूम आंचल को गोद में लेकर एक मां दर दर की ठोकरे खा रही है।
महिलाओं के लिये भले ही तमाम कानून बना दिये गये हों किन्तु उस कानून का लाभ कितना आंचल को मिल पाया है। अपनी सामथ्र्य के अनुसार भले ही डिम्पल आंचल की परवरिश कर रही हो किन्तु सवाल यह उठता है कि क्या आंचल को अपने बाप की गोद नसीब नहीं होगी। क्या उसे अपने दादा दादी की गोद में खेलने का हक नहीं है। अपनी बेटी को तिल तिल कर मारने वाला यह परिवार समाज में इज्जत की जिंदगी जी रहा है। आखिर लोगों को न्याय दिलाने की बात करने वाले ऐसे लोगों का बहिस्कार क्यों नहीं करते जो समाज के नाम कलंक बने हुये हैं।