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ये भूख है भईया, ई सोशल डिस्टेस्टिंग नहीं देखती

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भूख! हां भूख ही है जो इस धरा पर रहने वाले सभी जीव धारियों को विकल कर देती है। ज्ञान के अथाह सागर में गोते लगाने वाले बड़े बड़े धीर वीर सभी इस भूख के आगे नत-मस्तक हो जाते हैं। “कोरोना” वैश्विक महामारी ने विश्व को झकझोर कर रख दिया है। एक तरफ दुनिया इस महामारी से निपटने के लिए दवा खोज रही है तो दूसरी तरफ यह महामारी विकराल रूप न लें उसके लिए भी ऐतिहासिक कदम उठा रही है। कोई अपनी गलतियों से सीख रहा है तो कोई दूसरे की परेशानियों से। अब तक जितनी भी स्थिति परिस्थिति बनी है उन सब के विश्लेषण के आधार पर यह सुनिश्चित हुआ कि “कोरोना” को रोकने के लिए “सोशल डिस्टेंसिंग्स” अति आवश्यक है।

किन्तु उसके पहले सभी को अपने स्थान पर फ्रीज होना पड़ेगा अर्थात “लॉक डॉउन”। बिना “लॉक डॉउन” के “सोशल डिस्टेंसिंग्स” का मतलब नहीं है। अत: “लॉक डॉउन” का जंग- ए- ऐलान हो गया। जैसे जैसे लॉक डॉउन का समय बीत रहा है, धीरे-धीरे भूख की मार लोगों को परेशान कर रही है। जगह-जगह सरकार और स्वयं समाजसेवी संस्थाओं के द्वारा भोजन और खाद्यान्न वितरण की व्यवस्था की गई है। किन्तु महामारी के बढ़ते कदम हो देखते हुए लोगों में होड़ है कि मुझे जल्दी मिल जाय मुझे जल्दी मिल जाय। जिसके कारण सोशल डिस्टेंसिग मेनटेन हो पाना मुश्किल हो रहा है। जिसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि “भूख मिटाने की दौड़ में लोग कहीं “कोरोना” को घर पर तो नहीं ला रहे हैं।”

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