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यह उत्तरभारतीय बुद्धीजीवी वर्गो की वेदना है अथवा टाँग खींचने की आदत -आर बी सिंह (खूँटातोङ)

कल्याण: मुंबई से सटे ठाणे जिले का कल्याण तहसील उत्तरभारतीय समुदाय का वह गढ है जहां इसके पूर्वी एवं पश्चिमी भागो में आमजनो के साथ-साथ धनाढय तथा प्रबुद्ध वर्गो का खेमा भी यहां आठ दस दशको पहले से निवास करते है। इसी क्षेत्र के पूर्व तरफ काटेमानिवली नाका से चिंचपाङा रोड परिसर तो उत्तरभारतीय समुदाय का नाक भी कहा जाए तो कोई बेमानी नही मानी जाएगी।

जहां विभिन्न धनाढय वर्गो के सुधीजन पठन-पाठन हेतु अनेको विद्यालय एवं महाविद्यालयो की स्थापना कर लाखो निवासियो के लाडलो को शिक्षालाभ दिलाने की सेवाँए दिला रहे है। भले ही इसे कोई व्यवसाय की संज्ञा दे अथवा इसके पीछे प्रायोजक बंधुगणो की कुछ और भी मंशा हो बावजूद इन सेवांओ से बहुत सारे जरुरतमंद विद्यार्थीगण लाभान्वित हो रहे है इसे नकारा नही जा सकता।

इसी बीच कभी कभार विभिन्न त्योहारो पर तथा घर परिवार में होनेवाले शुभ कार्यो पर ये गुणीजनो द्वारा भजन, गायन, सुंदरकांड पाठ या अखंडरामायण पाठ, भंडारा आदि के आयोजन कराया जाता रहता है जिसके बहाने ही सही उत्तरभारतीय बंधुओ का मेल-मिलाप या प्रणाम, नमस्कार होते रहता है। लेकिन ऐसी आयोजने तब अधिक होने लगती है जब लोकसभा, विधानसभा या महानगरपालिका आदि की चुनाव करीब आती है। और इन्ही सभी कवायदो के मद्देनजर कल्याण पूर्व के प्रभुरामनगर परिसर में फरवरी महीने में ही एक भव्य संगीत संध्या का आयोजन रखा गया था जिसमें उत्तर प्रदेश के निर्गुण सम्राट गायक मदन राय को आमंत्रित कर आयोजन सुचारू रुप से संपन्न कराया गया था जिसमें क्षेत्र के प्रबुद्ध जन मंचासीन भी हुए थे।

फिर मार्च महीने के दूसरे सप्ताह में ही इसी क्षेत्र के चक्कीनाका स्थित गुणगोपाल मंदिर परिसर के प्रांगण में उत्तर भारतीय संगम संस्था के बैनर तले सुरसंग्राम फेम गायक मोहन राठौङ तथा हास्य कवि कलाकार सुनील सांवरा को आमंत्रित कर विशाल एवं भव्य गायन भजन का कार्यक्रम आदि कराया गया जिसका भी भरपूर प्रतिसाद मिला तो जरुर परंतु सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार इस आयोजन की तनिक किरकिरी भी हुई। कारण स्पष्टीकरण में मामला यही लगा कि शायद विशिष्ट अतिथिगणो के आगमन के प्रयास में क्षेत्रीय अतिथीगणो को अधिक तव्वजो नही दी गयी। क्योंकि पहली भजन संध्या के मंच पर उपस्थित दो तीन अतिथीगण दुसरी भजन संध्या के मंच पर मंचासीन नही दिखें।

कारण चाहे जो भी हो ऐसे कार्यक्रमो की यदि हजारो लोग सराहना करतें है तो सैकङो लोग ऐसे कार्यक्रमो पर एतराज क्यों जतातें है ?
यह तो सर्वविदित है कि गांव के तरफ उत्तरभारतीय समाज में यदि किसी भी अवसर पर 500 जनो को सुरूचि भोजन भी करा दिया जाए तो उसमें भी दर्जनो जन नुस्ख निकाल देते है कि सब्जी मे नमक अधिक था अथवा खीर मे शक्कर कम था आदि आदि। परंतु अब यहां सवाल यह उठता है कि गांव जैसा नुस्ख यदि हम शहरो, महानगरो आदि में निकाले तो ग्रामीण विचारधारा एवं शहरी विचारधारा में कैसा फर्क ?

पूरे देशवासी को ज्ञात होगा कि सबसे अधिक राजनीती उत्तर प्रदेश और बिहार में होती है जिस राजनीतिक मतो या विचारो से दिल्ली का तख्त भी सरकार को बहुमत दिलाने हेतु उलटफेर करा देने का दंभ रखता हो और वैसी ही सोच यदि हम सभी शहरों में भी रखेंगें तो शनैः शनैः परायो से क्या अपनो से भी दूर हो जाएँगे।

अतः यदि वास्तव में हम सबको अपने समाज के लोगो को विकसित बनाना है, अपने समाज के लोगो में एकजुटता लानी है तो अपनी सोंच को सकारात्मक बनाना होगा, छोटी छोटी बातों को नजरंदाज करना होगा अन्यथा जबतक किसी बात में बाल की खाल निकालते रहेंगें तबतक यह सब सोंच और पहल धरे का धरा रह जाएगा।

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