कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्म
प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥
भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्त्सब में इस बार बहुत अच्छा संयोग बन रहा है , इस बार जरूर करें मध्यरात्रि में श्री कृष्णा की पूजा होगी आपकी हर मनोकानायें पूर्ण होगी
इसे संयोग नहीं और तो और क्या कहा जाय। इस बार कान्हा के जन्म पर वही संयोग बन रहा है, जैसा द्वापर युग में कान्हा के धरती पर जन्म लेने के समय बना था। श्री कृष्ण जन्मउत्सव योग के नाम से इस संयोग को जाना जाता है। इस बार कई सालों के बाद वैसा ही संयोग कृष्ण जन्माष्टमी पर बन रहा है।
ऐसे बनता है जन्माष्टमी योग
8 बज कर 48 मिनट पर रविवार 2 सितंबर को अष्टमी तिथि लग रही है। भादपद्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में आधी रात यानी बारह बजे रोहिणी नक्षत्र हो और सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृष राशि में हो तब ये बनता है।
रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र को वृष राशि का मस्तक कहा गया है। इस नक्षत्र में तारों की संख्या पाँच है। यह नक्षत्र फरवरी के मध्य भाग में मध्याकाश में पश्चिम दिशा की तरफ रात को 6 से 9 बजे के बीच दिखाई देता है। यह कृत्तिका नक्षत्र के पूर्व में दक्षिण भाग में दिखता है।किसी भी वर्ष की 26 मई से 8 जून तक के 14 दिनों में इस नक्षत्र से सूर्य गुजरता है। इस प्रकार रोहिणी के प्रत्येक चरण में सूर्य लगभग साढ़े तीन दिन रहता है।इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है।पुराण कथा के अनुसार रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली है। ज्यों-ज्यों चंद्र रोहिणी के पास जाता है, त्यों-त्यों उसका रूप अधिक खिल उठता है।
जन्माष्टमी 2018 की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस बार अष्टमी 2 सितंबर रात 08:47 पर लगेगी और 3 सितंबर की शाम 07:20 पर खत्म हो जाएगी.
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 सितंबर 2018 रात 08.47
अष्टमी तिथि समाप्त: 3 सितंबर 2018 शाम 07.20
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 2 सितंबर 2018 रात 8 बजकर 48 मिनट.
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 3 सितंबर 2018 रात 8 बजकर 5 मिनट.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018 व्रत का पारण: 3 सितंबर की रात 8 बजकर 05 मिनट के बाद।
अतुल जी बताते है कि अपनी राशि के अनुसार भगवान का पूजन करें, तो उन्हें श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होती है.
मेष : राशि वालों को राधाकृष्णजी का गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए. कृष्ण-कन्हैया को दूध से बनी हुई मिठाई, नारियल के लड्डू एवं माखन मिश्री का भोग लगाना चाहिए. साथ ही तुलसी की माला से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का यथासंभव जाप करना चाहिए. इस मंत्र के जाप के बाद यथासंभव में अगर प्रसाद में अनार अर्पित किया जाये, तो मेष राशिवालों को कार्यों में सर्वोत्तम सफलता मिलेगी.
वृष : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक करके उन्हें दूध से निर्मित मिठाई, रसगुल्ले आदि का भोग लगाना चाहिए. कमलगट्टे की माला से ‘श्रीराधाकृष्ण शरणम मम्’ मंत्र की 11 माला का जाप करना चाहिए. भगवान को मखाने का भोग लगाना चाहिए. इससे वृषभ राशि वाले जातकों की जीवन में मनवांछित फल की प्राप्ति होगी
. मिथुन : राशि वाले भगवान श्रीकृष्ण का दुग्ध से अभिषेक करके उन्हें पंचमेवा काजू से निर्मित मिठाई और केले का भोग लगाना चाहिए. साथ ही ‘श्रीराधायै स्वाहा’ मंत्र की तुलसी या स्फटिक की 11 माला का जप करें. फलों में पीले केले को अर्पित करें. इससे आपके जीवन में मान सम्मान और यश की वृद्धि होगी.
कर्क : राशि के जातकों को भगवान राधेकृष्ण का अभिषेक कर केसर और खोये या काजू की बर्फी का भोग लगाना चाहिए. साथ ही ‘श्रीराधा वल्लभाय नमः’ मंत्र की पांच माला का जाप करें. फलों में पानीवाला नारियल चढ़ाएं. इससे घर परिवार में सुख-समृद्धि की वृद्धि होगी और सुख की प्राप्ति होगी.
सिंह : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण का गंगाजल में शहद मिलाकर अभिषेक करके उन्हें लाल-पीले और गुड़ का भोग लगाना चाहिए. साथ ही ‘ॐ विष्णवे नमः’ मंत्र का जाप करें. बादाम, मिश्री और फल शिव को अर्पित करें. इससे सभी क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होगी और विरोध भी कुछ नहीं कर पाएंगे.
कन्या : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण का दूध में घी मिलाकर अभिषेक करना चाहिए. साथ ही मेवा या दूध से बनी हुई मिठाई का भोग लगाना चाहिए. ‘ह्रीं श्रीं राधा ही स्वाहा’ मंत्र का 11 माला का जप करें. भगवान कृष्ण को लौंग, इलायची, तुलसी का पत्ता, हरा पान और कोई हरा फल भोग में लगाएं. इससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी.
तुला : राशि वाले को भगवान कृष्ण को दूध में शक्कर मिलाकर अभिषेक करना चाहिए और प्रसाद से संबंधित दूध से निर्मित प्रसाद चढ़ाना चाहिए और श्री कृष्णाय नमः मंत्र की माला का जाप करें और महाप्रसाद में बादाम, माखन, मिश्री और केला भोग में लगाएं. इससे जीवन में तमाम परेशानियां धीरे-धीरे स्वत: समाप्त समाप्त हो जायेंगी.
वृश्चिक : राशि वालों को भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक करके गुड़ से बने हुए मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए. ‘श्री राधा कृष्णाय नमः’ मंत्र के कम-से-कम पांच माला का जाप करें. साथ ही पंचमेवा फलों में पानी वाला नारियल भोग में लगाएं. इससे आपके सभी काम आसानी से बनने शुरू हो जायेंगे.
धनु : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण को शहद और दूध से अभिषेक करके बेसन की मिठाई का भोग लगाना चाहिए और ‘ओम नमो नारायणाय नमः’ मंत्र की पांच माला का जाप करें. पीला वस्त्र और पीला फल चढ़ाएं. अमरूद चढ़ाएं.
मकर : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण को गंगाजल से अभिषेक करके भोग लगाएं. साथ ही ‘देवकीसुत गोविंदाय नमः’ मंत्र का जाप करें. अंगूर, मीठा पान और केसरवाली मिठाई भोग लगाएं. व्यापार में लाभ की प्राप्ति होगी.
कुंभ : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक करके उन्हें लालिमायुक्त दूध से निर्मित मिठाई का भोग लगाना चाहिए. ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 11 बार जाप करना चाहिए. मेवे, बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, अखरोट का प्रसाद चढ़ाना चाहिए. जीवन के सभी क्षेत्रों में मनवांछित फल की प्राप्ति होगी.
मीन : राशि वाले को भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक करके उन्हें मेवा की मिठाई प्रसाद में चुनाव करें. साथ ही ‘ओम देवकीसूत गोविंदाय नमः’ मंत्र का जाप करें. भगवान को इलायची, नारियल और फल अर्पित करें.
जन्माष्टमी को सुख-समृद्धि प्राप्ति के लिए करें ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री द्वारा बताये गयें विशेष उपाय .
शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी माँ लक्ष्मी का अवतार थी अत: अगर इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय किए जाएं तो माता लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। यदि आप जन्माष्टमी के दिन ये उपाय पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से करेंगे तो आपको अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी
श्री कृष्ण जनमाष्टमी के दिन किए जा सकने वाले ज्योतिष उपाय –
- यदि आपकी आमदनी में कोई इज़ाफा नही हो रहा हो और नौकरी में प्रमोशन भी नहीं हो रहा हो तो जन्माष्टमी के दिन सात कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाएं। यह काम पांच शुक्रवार तक लगातार करें।
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आर्थिक संकट के निवारण और धन लाभ के लिए जन्माष्टमी के दिन प्रात: स्नान आदि करने के बाद किसी भी राधा-कृष्ण मंदिर में जाकर प्रभु श्रीकृष्ण जी को पीले फूलों की माला अर्पण करें। इससे आर्थिक संकट दूर होने लगते है और धन लाभ के योग प्रबल बनते है ।3.जन्माष्टमी के दिन प्रात: दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें । इसके बाद यह उपाय हर शुक्रवार को करें । इस उपाय को करने वाले जातक से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इस उपाय को करने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती है।
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जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को सफेद मिठाई, साबुतदाने अथवा चावल की खीर यथाशक्ति मेवे डालकर बनाकर उसका भोग लगाएं उसमें चीनी की जगह मिश्री डाले , एवं तुलसी के पत्ते भी अवश्य डालें। इससे भगवान श्री कृष्ण की कृपा से ऐश्वर्य प्राप्ति के योग बनते है।5.भगवानश्रीकृष्ण को पीतांबर धारी भी कहलाते हैं, पीतांबर धारी का अर्थ है जो पीले रंग के वस्त्र पहनने धारण करता हो। इसलिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन किसी मंदिर में भगवान के पीले रंग के कपड़े, पीले फल, पीला अनाज व पीली मिठाई दान करने से भगवान श्रीकृष्ण व माता लक्ष्मी दोनों प्रसन्न रहते हैं, उस जातक को जीवन में धन और यश की कोई भी कमी नहीं रहती है ।
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जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण जी के मंदिर में जटा वाला नारियल और कम से कम 11 बादाम चढ़ाएं । ऐसी मान्यता है कि जो जातक जन्माष्टमी से शुरूआत करके कृष्ण मंदिर में लगातार सत्ताइस दिन तक जटा वाला नारियल और बादाम चढ़ाता है उसके सभी कार्य सिद्ध होते है, उसको जीवन में किसी भी चीज़ का आभाव नहीं रहता है।
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जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को पान का पत्ता अर्पित करें फिर उसके बाद उस पत्ते पर रोली से श्री मंत्र लिखकर उसे अपनी तिजोरी में रख लें। इस उपाय से लगातार धन का आगमन होता रहता है ।
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जन्माष्टमी की रात को 12 बजे भगवान श्री कृष्ण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करने से जीवन में स्थाई रूप से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
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अपने जीवन में सभी तरह की सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए जन्माष्टमी के दिन पीले चंदन, केसर, गुलाबजल मिलाकर माथे पर टीका-बिंदी लगाएं। यह काम हर गुरुवार को करें।
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अगर क़र्ज़ के बोझ तले दबे हुए हो तो श्मशान के कुएं का जल लाकर पीपल के वृक्ष पर जन्माष्टमी से लेकर नियमित रूप से छह शनिवार तक चढ़ाएं।
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लक्ष्मी कृपा पाने के लिए जन्माष्टमी पर कहीं केले के दो पौधे लगा दें। बाद में उनकी नियमति देखभाल करते रहें। जब पौधे फल देने लगे तो इनका दान करें, स्वयं न खाएं।भगवान श्रीकृष्ण को पीतांबर धारी भी कहलाते हैं, पीतांबर धारी का अर्थ है जो पीले रंग के वस्त्र पहनने धारण करता हो। इसलिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन किसी मंदिर में भगवान के पीले रंग के कपड़े, पीले फल, पीला अनाज व पीली मिठाई दान करने से भगवान श्रीकृष्ण व माता लक्ष्मी दोनों प्रसन्न रहते हैं, उस जातक को जीवन में धन और यश की कोई भी कमी नहीं रहती है ।
कथा.
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसो के अत्याचार बढने लगे पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। पृथ्वी पर पाप कर्म बहुत बढ़ गए यह देखकर सभी देवता भी बहुत चिंतित थे । ब्रह्मा जी सब देवताओ को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवान विष्णु अन्नत शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई भगवान ने ब्रह्मा जी एवं सब देवताओ को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली-भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ। मेरा उद्धार किजिए।
यह सुनकर भगवान विष्णु उन्हें आश्वस्त करते हुए बोले – “चिंता न करें, मैं नर-अवतार लेकर पृथ्वी पर आऊंगा और इसे पापों से मुक्ति प्रदान करूंगा। मेरे अवतार लेने से पहले कश्यप मुनि मथुरा के यदुकुल में जन्म लेकर वसुदेव नाम से प्रसिद्ध होंगे। मैं ब्रज मण्डल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से ‘कृष्ण’ के रूप में जन्म लूँगा और उनकी दूसरी पत्नी के गर्भ से मेरी सवारी शेषनाग बलराम के रूप में उत्पन्न होंगे । तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण कर लो। कुरुक्षेत्र के मैदान में मैं पापी क्षत्रियों का संहार कर पृथ्वी को पापों से भारमुक्त करूंगा।” इतना कहकर अन्तर्ध्यान हो गए । इसके पश्चात् देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द यशोदा तथा गोप गोपियो के रूप में पैदा हुए ।
वह समय भी जल्द ही आ गया। द्वापर युग के अन्त में मथुरा में ययाति वंश के राजा उग्रसेन राज्य करता था। राजा उग्रसेन के पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र कंस था। देवकी का जन्म उन्हीं के यहां हुआ। इस तरह देवकी का जन्म कंस की चचेरी बहन के रूप में हुआ। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वंय राजा बन गया इधर कश्यप ऋषि का जन्म राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव के रूप में हुआ। कालांतर में देवकी का विवाह यादव कुल में वसुदेव के साथ संपन्न हुआ।
कंस देवकी से बहुत स्नेह करता था। पर जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि ”हे कंस! जिस देवकी को तु बडे प्रेम से विदा करने कर रहा है उसका आँठवा पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को उद्धत हो गया। उसने सोचा- ने देवकी होगी न उसका पुत्र होगा ।
इस घटना से चारों तरफ हाहाकार मच गया। अनेक योद्धा वसुदेव का साथ देने के लिए तैयार हो गए। पर वसुदेव युद्ध नहीं चाहते थे। वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हे देवकी से तो कोई भय नही है देवकी की आठवी सन्तान में तुम्हे सौप दूँगा। तुम्हारे समझ मे जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना उनके समझाने पर कंस का गुस्सा शांत हो गया । वसुदेव झूठ नहीं बोलते थे। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली पर उसने वसुदेव और देवकी को कारागार में बन्द कर दिया और सख्त पहरा लगवा दिया।
तत्काल नारदजी वहाँ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चला कि आठवाँ गर्भ कौन सा होगा गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगा कंस ने नादरजी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालको को मारने का निश्चय कर लिया । जैसे ही देवकी ने प्रथम पुत्र को जन्म दिया वसुदेव ने उसे कंस के हवाले कर दिया। कंस ने उसे चट्टान पर पटक कर मार डाला। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालको को निर्दयता पूर्वक मार डाला । भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उनके जन्म लेते ही जेल ही कोठरी में प्रकाश फैल गया।
वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, एव पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा,”अब मै बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौप दो । तत्काल वासुदेव जी की हथकडियाँ खुल गई । दरवाजे अपने आप खुल गये पहरेदार सो गये वासुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणो को स्पर्श करने के लिए बढने लगी भगवान ने अपने पैर लटका दिए चरण छूने के बाद यमुना घट गई वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल मे सुंलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गये। वासुदेव जी के हाथो में हथकडियाँ पड गई, पहरेदारजाग गये कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई।
कंस ने कारागार मे जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथो से छूटकर आकाश में उड गई और देवी का रूप धारण का बोली ,”हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुच चुका है“। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया । कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे श्रीकृष्ण ने अपनी आलौलिक माया से सारे दैत्यो को मार डाला। बडे होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया । श्रीकृष्ण के जन्म की इस पुण्य तिथी को तभी से सारे देश में बडे हर्षोल्लास से जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है ।