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मन की बात : खौफ में जी रहा मुंबई का एक रेलयात्री

Mumbai

मुंबई : महानगर जिसे न सिर्फ मायानगरी से पहचान मिली है बल्कि इसे भारत देश की आर्थिक राजनाधी के रुप मे भी संज्ञा प्राप्त है, जिसकी जीवन रेखाँए यहां की चलनेवाली उपनगरीय रेलें है जिससे लाखो यात्रियो का मंजिल एवं गंतव्य स्थानो पर सफर पूरा कराने का श्रेय प्राप्त है लेकिन उसी रेल सेवाँओ के खौफ से बरसात के मौसम मे हर एक यात्री सिहर जाता है जब मुंबई की अदना एक घंटे की घनघोर बरसात से रेल सेवांए ठप्प पङ जाती है या घंटे भर की सफर की मंजिले जब तीन चार घंटे का समय जाया कर देती है।

बता दें कि 16 अप्रैल 1853 के दिनांक मे चलनेवाली भारत देश की पहली रेल सेवा मुंबई के अपने मैके मे ही बरसात के मौसम मे चरमराकर रह जाती है जिसके खौफ के कारण रोजमर्रा के जरूरतो हेतु हजारो, लाखो मुंबईकरो का न चाहते हुए भी अपने डयूटी का समय भी घर पर ही बिताना पङता है। भले ही पहली बार मुंबई मे आए हुए आमजनो को इसके खौफ से पाला पङा हो या नही लेकिन जो भी मुंबईकर कभी भी इसके खौफ का भुक्तभोगी बन चुका है वह लाखो रुपये का भी नुकसान सहकर दुबारा इसके खौफ को भुगतने की हिम्मत नही जुटा पाता।

सरकारें कितनी आती है, जाती है ,रेल्वे के सुधारो हेतु जो केवल ढाढस ही बंधाती है, उस सरकार को कौन समझाए कि रेल पटरीयो का थरातल जो बाबा आदम के जमाने का है उसे दोनो तरफ से झोपङो के बहते हुए गटर, नालो ने घेर रखा है। बिल्डिंग, अट्टहलिकाओं के फाऊंडेशन रेल कोचो के छतो के समतुल्य बन रहे है तो जाहिर है पूरे महानगर मे बरसे जलो का रिसाव रेल्वे पटरियो पर ही जमा होगा और होता भी है जिसका खामियाजा रेल यात्रियो को ही भुगतना पङता है चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो या व्यपारी विरले ही रेल सेवाँओ से अछूता हो, लिहाजा हल्की बरसात भी मुंबई के रेल यात्रियो मे घर से बाहर न निकलने का खौफ पैदा कर देती है।

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