पश्चिम बंगाल की हुगली नदी के तट पर बसा हुआ कोलकाता हमारे भारत देश के चार महानगरों में से एक है। कभी किसी जमाने में सिराजुद्दौला की भी राजधानी रह चुका यह महानगर कालांतर में कलकत्ता के नाम से अपनी पहचान बनाया था परंतु जैसे जैसे समय बीतता गया राजनीति के आकाओं ने इसके भी नाम में फेरबदल कर ही डाले। फलस्वरूप यह आज के कोलकाता के नाम से अपने वजूद को बरकरार रखा है।
बंगाल के विभाजन के बाद उङीसा और बिहार नामक जब नये नये प्रांतो का गठन हुआ उसके पहले से ही बहुत ज्यादा उत्तर भारत के लोग कलकत्ता को ही अपना कर्मस्थल बना चुके थे।
ऐसे तो कोलकाता में देश के लगभग हरेक राज्यों के लोग चाहे व्यापार से जुङे हो अथवा नौकरी आदि से इस महानगर में अपनी भरपूर मेहनतों का योगदान कर इस कोलकाता को अपनी कर्मस्थली एवं शरणस्थली बना चुके हैं। कारण कि बीसवीं सदी के साठ सत्तर के दशकों से लेकर तकरीबन ईक्कीसवीं सदी के शुरुवात के दौर तक इस कोलकाता महानगर और इसके उपनगरीय क्षेत्रों में इतनी अधिक जूट मिलों (चटकल कारखाना) की भरमार थी, कि तकरीबन उत्तर भारत के प्रायः एक गांव के तकरीबन ३०० घर के लोग इस जूटमिलों में काम कर अपना घर परिवार चलाते थे।
फिर धीरे धीरे उन लोगो के परिवार जन एवं कुटुंब संबंधीजन भी किसी न किसी व्यवसाय एवं नौकरी आदि करके भी महानगर के विकास में अपना योगदान देने लगे। जिनमे आज भी बङाबाजार का कपङा बाजार हो, या सत्यनारायण पार्क का बर्तन बाजार, या माणिकतल्ला का लोहाबाजार हो या पलासी का मोटरकार रिपेयरिंग गैरेज आदि उत्तर भारतीयों के सेवाओं बगैर सूना सूना दिखेगा। न जाने सियालदह से लेकर दमदम आदि कितने कितने नाम है जहा उत्तरभारतीयों के ही भोजनालय एवं चना, सत्तू ,लिट्टी चोखा आदि की प्रमुख दुकाने है।
कभी बनियापुकूर का भूखल साह का सत्तू दुकान इतना मशहूर था कि धर्मताल्ला से १२ नं ट्राम से बनियापुकूर उतरने के बाद कोई भी श्री साह के दूकान का पता बता देते थे जो तकरीबन एक किलोमीटर दूर था। आज भी बङाबाजार स्थित तिवारी कटरा के बगल सात तल्ला वाले राय बहादुर सिंह उर्फ आर बी एस को शायद विरले ही उत्तरभारतीय न जानते हो।
कुल मिलाकर दुग्ध व्यवसाय हो, चाय की दुकानें आदि की सेवांए देकर भी लाखों करोङो उत्तरभारतीय इस कोलकाता महानगर में अपना भरपूर योगदान दे रहे है चाहे वह हावङा के उस पार चौबीस परगना जिले मे हो अथवा हुगली जिले सहित वर्दवान, मालदा या आसनसोल के तरफ हो अपने भरपूर मेहनतों से लाखों करोङो लोग कोलकाता को अपनी कर्मस्थली बना चुके है, भले ही आज के दौर मे अधिक पैसो की चाहत मे लोग मुंबई, दिल्ली या पंजाब, लुधियाना तथा सऊदी अरब के खाङी देशों के तरफ अपनी रुख लाखो, करोङो उत्तरभारतीय कर रहे हो बावजूद इसके इन सबके अभिभावकों का कोलकाता के तरफ के रुख को नकारा नही जा सकता।