Home मुंबई अपने ही मंदिर रूपी संगठन को कमजोर करना कहा तक उचित

अपने ही मंदिर रूपी संगठन को कमजोर करना कहा तक उचित

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रिपोर्ट- प्रभाकर सिंह सोमवंशी
मुंबई/जबलपुर। वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ एक मंदिर है, जिसकी स्थापना मंदिर के पुजारी डॉ.आर.पी.भटनागर ने एक-एक ईंट (कार्यकर्ता) को कड़ी मेहनत से जोड़कर, तराश कर की थी। कितने ही पत्थरों को तराश कर हीरा बना दिया। अंततोगत्वा डब्ल्यूसीआरएमएस रूपी मंदिर को ऐसी पवित्रता तक पहुंचाया, जहां माथा टेक कर अनेकों लोग पवित्र हो गए। बड़े से बड़ा अधिकारी भी नतमस्तक हो गये । निःस्वार्थ रूप से कार्य कर रहे साधक डॉ.आर.पी.भटनागर ने अपनी उम्र का स्वर्णिम काल संगठन को सजाने- संवारने में लगा दिया। इसके लिए उन्होंने अनेक कुर्बानियां दीं। अपने परिवार को जो समय देना था, वो उन्होंने डब्ल्यूसीआरएमएस परिवार को दिया। इस दौरान उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शैली भटनागर, जो स्वयं त्याग-समर्पण की मूर्ति थीं, का स्वर्गवास हो गया। यहां यह बताना जरूरी है कि अशोक शर्मा हमेशा ही डॉ. भटनागर को पिता व स्व. श्रीमती भटनागर को मां मानता था। विपत्ति के समय अनेकों बार वह अपने मां-बाप की गोद में सिर रखकर रोया है और डॉक्टर भटनागर ने उसे कभी निराश नहीं किया और अशोक शर्मा को हमेशा हर मुसीबत से उबारा। डॉ.आर.पी.भटनागर का एक ही पुत्र है- अमित भटनागर, जो एक पढ़ा-लिखा सभ्रांत इंसान है तथा मैनेजर के रूप में १.५ लाख रुपये प्रतिमाह की सैलरी पर कार्यरत था। डब्ल्यूसीआरएमएस पर अपना सर्वत्र निछावर करने वाले डॉ.आर.पी.भटनागर, जो प्रतिदिन १८ से २० घंटे संगठन तथा कामगारों के दुख-दर्द दूर करने में गुजारते हैंं, आज ८४ वर्ष के हो गए हैंं और पत्नी के स्वर्गवासी होने के बाद किसी हद तक टूट चुके थे। ऐसे समय में एक बेटे का फर्ज निभाने के लिए अमित भटनागर ने अपनी अच्छी खासी नौकरी से त्याग-पत्र देकर निःस्वार्थ रूप से श्रवण कुमार की तरह अपने पिता की सेवा २४ घंटे करने की ठान ली। और अपने महान पिता के साथ कदम मिलाकर चल दिए। यही अशोक शर्मा ने २०१४ में अमित, जिसे वह अपना भाई मानता था, को डब्ल्यूसीआरएमएस में पदाधिकारी बनाने का प्रस्ताव रखा। इसके पीछे उसका ही तर्क था की अमित का रेलवे में न होना और उसकी काबलियत (निर्भीक, ओजस्वी वाणी, ज्ञान आदि) का डब्ल्यूसीआरएमएस को बड़ा फायदा मिलेगा। हालांकि डॉ. भटनागर ने इसका विरोध भी किया। अशोक शर्मा की जिद के चलते अमित को पहले उपाध्यक्ष, फिर वर्किंग प्रेसिडेंट सर्वसम्मति से बनाया गया।
परंतु किसे पता था कि जिस अशोक शर्मा को डॉक्टर भटनागर ने उंगली पकडकर चलना सिखलाया, वही अपने निहित स्वार्थों के चलते अपने बाप पर ही झूठे आरोप लगाकर कटघरे में खड़ा कर देगा? लानत है, ऐसे शख्स पर, जिसकी शख्सियत डब्ल्यूसीआरएमएस के अलावा कुछ भी नहीं है। डब्ल्यूसीआरएमएस के पवित्र मंदिर पर कीचड़ उछाल कर उसकी नींव हिलाने की उसकी कुटिल साजिश का भांडा फोड हो चुका है। चंद लोगों को गुमराह करके होटल में आनन-फानन में मीटिंग आयोजित करने से डब्ल्यूसीआरएमएस की नींव नहीं हिल सकती।

उसकी एक-एक ईंट और मूर्ति मे जड़ा हुआ हीरा आज चिल्ला-चिल्ला कर पूछ रहा है -ः
1-  ऐसा क्यों किया?
2-   क्या  लाल वालों से मिलकर अपने ही संगठन को कमजोर करना चाहते हो?
3- क्यों  अपना  पक्ष डॉ.आर.पी.भटनागर की मौजूदगी में नहीं रखा?
4- क्यों  अपने पिता पर झूठे आरोप लगाकर अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने की कोशिश की?
5- क्यों  अपने ही संगठन के साथ गद्दारी कर कामगारों की पीठ में छुरा घोपा,  क्या यह सही समय था?
6-  क्यों मज़दूर आंदोलन को कमजोर करने की साजिश रची?

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