Home मुंबई बहुभाषी काव्य गोष्ठी में महाकवि नीरज को दी गयी श्रद्धांजलि

बहुभाषी काव्य गोष्ठी में महाकवि नीरज को दी गयी श्रद्धांजलि

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ठाणे महाराष्ट्र से विनय शर्मा दीप की रिपोर्ट
भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे (बहुभाषी काव्य गोष्ठी) एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाराष्ट्र के तत्वावधान में दिनांक 28 जुलाई 2018 शनिवार सायं मुन्ना विष्ट कार्यालय सिडको ठाणे में साहित्य जगत के विराट हस्ताक्षर , महाकवि गोपाल दास नीरज की श्रद्धांजलि सभा के साथ संपन हुआ। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये महाराष्ट्र साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित पवन तिवारी ने नीरज जी के बचपन से लेकर गाँव के पठन-पाठन, परिवार की जिम्मेदारी, माता-पिता के साथ संबंध, फिल्म जगत से लेकर साहित्य सफर तक की कहानी पर प्रकाश डाला। प्रमुख अतिथि श्री किशन आडवाणी जी रहे संचालन का कार्यभार एन बी सिंह नादान जी ने नीरज जी पर प्रकाश डालते हुए बखूबी निभाया।

गोष्ठी प्रारंभ होने के पूर्व श्रद्धांजलि सभा रखी गयी। तत्पश्चात नीरज जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य संग्रह कारवां गुज़र गया, नीरज की पाती, फिर दीप जलेगा एवं तुम्हारे लिए से उनके गीत सभी कवियों के द्वारा प्रस्तुत किये गये। कवियों द्वारा गीतों के माध्यम से नीरज जी को श्रद्धांजलि दी गयी।
कवि पवन तिवारी ने ‘ तन तो आज स्वतंत्र हमारा,लेकिन मन आजाद नहीं है।’ वहीं
एन बी सिंह नादान ने ‘आंधियाॅ चाहे उठाओ, बिजलियां चाहे गिराओ,
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

विनय शर्मा दीप-
इस तरह तय हुआ सांस का यह सफर, जिंदगी थक गई मौत चलती रही।

श्रीमती आभा दवे-
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर।
श्रीमती शिल्पा सोनटक्के-
अंधियारा ढल कर रहेगा
खुशबु सी आ रही है इधर जाफ़रान की ।

कुमारी पूनम खत्री-
विश्व चाहे या न चाहे,लोग समझे या न समझें।
आ गये हम यहाँ तो,गीत गाकर ही उठेंगे।

श्रीमती अनीता रवि-
जीवन काटना था कट गया ,
एक कालखंड और बीत गया।

श्रीमती प्रभा शर्मा सागर-
थोड़ा सा गुजर भी जरूरी है,जीने के लिए।
ज्यादा झुक के चले तो दुनिया पीठ को पायदान बना लेती है।

श्री राजीव मिश्रा-
लिखे जो ख़त तुझे,ओ तेरे नाम की।
डाक्टर वफ़ा सुल्तानपुरी-
तेरे किरदार से निकलता है,
सांप जो आस्ती में पलता है ।

श्री अंजनी कुमार द्विवेदी-
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना,
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये ।

श्री अश्विनी कुमार यादव-
मेरे हिस्से में ओ मुकाम आये,
मेरा भी खूं वतन के काम आये।

श्री विधु भूषण त्रिवेदी-
कारवां गुज़र गया गुब्बार देखते रहे,
स्वप्न झरे फूल से,मीत चुभे शूल से।
लूट गये श्रृंगार सभी,बाग के बबूल से।
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।।

श्री श्रीराम शर्मा-
ये मंदिर है ये मस्जिद है,
घटाओं को क्या पता है।

श्री अनिल कुमार राही-
तुम आये कण-कण बहार आई,
तुम गये,गई झर मन की कली-कली।

श्री राम प्यारे सिंह रघुवंशी-
तन से तो सब भांति विलग तुम,
लेकिन मन से दूर नहीं हो।

श्री उमेश मिश्रा-
एक पांव चल रहा अलग-अलग,
और दूसरा किसी के साथ है।

श्री भुवनेन्द्र सिंह विष्ट-
सभ्यता कहाँ आ गई?कहाँ खड़ा है विश्व?
जा रहा है कहाँ गति-रथ विज्ञान-कलाओं का।

श्री टी आर खुराना-
भूखी धरती अब भूख मिटाने आती है।
छिपते जाते हैं सूरज,चाँद-सितारे सब,
मुरदा मिट्टी अंबर पर चढती जाती है ।

श्री उमाकांत वर्मा-
घर-घर में आवाज लगाते मिट्टी ले लो मोल,
गाँव-गाँव इस धुंध-धूप में भूखे-प्यासे डोल।

इसी प्रकार श्रीमती तनुजा चौहान-
मुझे न करना याद,तुम्हारा आॅगन गीला हो जायेगा।

जैसे गीतों से सभी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवि गोष्ठी में श्री राम आशीष चौहान, श्री राजीव मिश्रा, श्री शारदा प्रसाद दुबे, श्री ओम प्रकाश सिंह, श्री संतोष कुमार सिंह (राष्ट्रीय गज़लकार), श्री मुन्ना यादव मयंक (जनहित इंडिया पत्रिका मुंबई प्रतिनिधि), श्री किशन दयाराम आडवाणी एवं कुमारी लीना खत्री उपस्थित थी । अंत में संयोजक श्री रघुवंशी जी ने आये हुए सभी कवियों,गीतकारों, गजलकारों एवं श्रोताओं को धन्यवाद देकर आभार प्रकट कर गोष्ठी का समापन किया। सभागृह में बैठे कवि एवं श्रोताओं के हृदय गदगद हो गये और सभी ने तालियां बजाकर गोष्ठी को सफल बनाया।

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