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साहित्यिक मंचों के तत्वावधान में माँ भारती के वीर सपूतों को दी गई श्रद्धांजलि

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ठाणे। पुलवामा हमले में शहीद हुए भारत माता के अमर सपूतों को नमन करने हेतु रविवार 17 फरवरी 2019 को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन मुन्ना विष्ट कार्यालय सिडको बस स्टॉप ठाणे (पश्चिम) में अखिल भारतीय साहित्य परिषद,भारतीय जनभाषा प्रचार समिति (बहुभाषी काव्य गोष्ठी), संगीत साहित्य मंच एवं महफ़िल ए गज़ल साहित्य समागम के तत्वावधान में किया गया।जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि भुवनेन्द्र सिंह विष्ट जी ने किया, मुख्य अतिथि के रूप में मंगला हाईस्कूल के पूर्व प्रधानाचार्य, वरिष्ठ कवि टी आर खुराना एवं गीतकार विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी विद्यमान थे। उक्त श्रद्धांजलि सभा में पहुंच कर सभी साहित्यकारों ने अमर शहीदो के शौर्य और बलिदान को याद करते हुए उनको श्रद्धांजलि में पुष्प के साथ शब्द सुमन अर्पित कर नमन किया।
साहित्यकारों में से कवियत्री आर जे आरती साइया के कविता ने लोगों के हृदय को आह्लादित कर दिया-
घर-घर
सरहद से देखो
वतनपरस्तों की
लाश आ रही है
दुश्मन को
चीर देने की
अधूरी आस आ रही है
लाल नदियों का
कतरा कतरा
कह उठा
कफन-ए-तिरंगा लपेटे
पीड माँं के पास आ रही है

राखी के धागों नें
माँ के आँचल ने
मांँग से सिंदूर ने
ले ली इजाज़त
और
हो गए कुर्बान
वतन के नाम
पर उनकी चीखती
चिल्लाती आत्मा
कर रही है हमसे सवाल
पूछ रही है हमसे
कौन करेगा
उसके घर की हिफाजत,
जिसने कि
पूरे देश की हिफाजत?

लहू की होली
बेझिझक खेली
कैसे बनाया
ऐसे वीर सपूत को?
हर माँ से
बेटे का बाप पूछ रहा है
और
कोख के नों महीनों का
काल पूछ रहा है

कायम के लिए
कैसे विदा करेगी?
खुद को खुद से
कैसे जुदा करेगी?
दूध पान कराकर
रक्त बढ़ाया
उस रक्त का
आखिर कैसे दान करेगी?

दूसरे कवि के रूप में अनिल कुमार राही ने देश के प्रहरी को ललकारते हुए आक्रोशित स्वर में कहते हैं-

अब आन बान शान बचाने की बात कर।
कायर नहीं हैं हम ये दिखाने की बात कर।।
रण बांकुरों के जान की कीमत हैं मांगते।
बस दुश्मनों के सर तु उड़ाने की बात कर।।
गिनती हुई ख़तम कि बनके कृष्ण आज तू।
शिशुपाल बध को, चक्र उठाने की बात कर।।
कुरबाँ हुए हैं लाल तिरंगे की आन में।
बेकल है रूह प्यास बुझाने की बात कर ।।

एडवोकेट राजीब मिश्रा ने पाकिस्तान के नापाक इरादों से आह्लादित होकर द्रवित मन से दुखः व्यक्त करते हुए कहते हैं-

फिर से लाल हुई है घाटी
फिर से हाहाकार हुआ
फिर से लहू बहा भारत का
फिर से एक प्रहार हुआ
फिर से भारत माता देखो
सिसक उठी है घाटी में
खूँन बहा चालीस बेटों का
इसकी पावन माटी में
निंदा करना बंद करो भारत
का शौर्य दिखा दो तुम
जो धोखे से वार करे
धरती से उसे मिटा दो तुम
श्वेत कपोत रखो पिंजरे में
बाजों की परवाज करो
हृदयगति रुक जाए अरि की
तुम ऐसी आवाज करो

कब तक घात सहोगे चुप हो
कब तक नीर बहाओगे
शांतिदूत का चोला पहनें
कब तक मुझे रुलाओगे
कब तक इन शहीद बेटों के
शव पर मैं चित्कार करूँ
कायरता से हुए वार को
कैसे मैं स्वीकार करूँ
लाल मेरे गठरी में बाँधे
कैसे घर पर जाएंगे
अंतिम दर्शन के मौके पर
कैसे कफ़न हटाएंगे
ले प्रतिकार ये खूनी आँचल
अगर नही धो सकते तुम
इन शहीद बेटों के शव पर
कभी नही रो सकते तुम

वीर सपूतों के शहीद हो जाने की खबर सुनते ही गज़लकार मनोज मैकस आक्रोशित होकर दुश्मन को ललकारते हुए कहते हैं-

पावन पुलवामा पे पातक चाल चलने वाले,
अमर सुहागिनों का सुना भाल करने वाले ।
उल्टी गिनती शुरू कर ले निज जीवन की,
आ रहे हैं सिंह तेरा सीना लाल करने वाले ।।

पाकिस्तान को खबरदार कहते हुए कवि सुशील शुक्ल “नाचीज़” कहते हैं-

खून के बदले खून चाहिये
जान के बदले जान।
नहीं चाहिए अजहर – दाऊद
हमें चाहिए पाकिस्तान।

मत ललकारो हमें काफिरों
सरफरोसों की हम संतान।
हो जाओगे भूतपूर्व सब
देश बनेगा कब्रिस्तान।

माना हम हैं शांतिदूत
हम युद्धों से कतराते हैं।
लेकिन दुश्मन वार करे तो
हम यमदूत बन जाते हैं।

गाँधी गिरी से बात बने ना
तो दादागिरी भी आती है।
सीधी उंगली से ना निकले घी
तो उंगली टेढ़ी हो जाती है।

बंद करो यह आतंकवाद
वर्ना खुद ही मिट जाओगे।
उठा न सकोगे सिर अपना
फिर इतना तुम पिट जाओगे।

त्यागो तुम इस गफलत को
औ नफरत से तुम आओ बाज।
मौका है यह तुम्हें आखिरी
समझो नव भारत की आवाज।
बच जाओगे दोस्त बने तो
वर्ना गिर जायेगी गाज।

कविवर ओमप्रकाश सिंह श्रद्धांजलि देते हुए देश के नौजवानों को ललकारते हुए आक्रोशित स्वर में कहते हैं-

हर दिल मे धधक आज, और आँखों मे है पानी।
हर हिँद के लोगों की है बस एक कहानी,
एक सिर के बदले,जबतलक दस सिर न कटेगा।
धधकेगी आग कम कभी न होगी रवानी।।

कोखोँ ने दिया दान मे है लाल देश को
नवयौवनाओं नेदीया सुहाग देश को।
ये दुथमुहे भी भूलगए दूथ की महक
नापाकियोँ केखून से निखरेगी जवानी।

मोदी तुम भीमबनके दिखाओ इस देशको,
बाजबा का कलेजा खिलाओगे ईस देशको
हम खून पीने केलिए तैयार बैठे हैं
कहीँ ठँडी न हो जाये ये दबी आग पुरानी।।

कितना बहेगा पानी, बहियेगी ये आँखें,
माताओं को बहनों को,रूलायेँगी ये आँखे
कितनी टुटेँगी चुडियां नवयौवनाओं की,
क्या कहकर दुधमुहो को समझायेँगी ये आँखे।।
हर जिस्म कीहुँकार ये कहती है कहानी।।

इसी क्रम में उपस्थित उमेश मिश्रा, आर पी सिंह रघुवंशी, संतोष सिंह, संजय द्विवेदी, अंजनी कुमार द्विवेदी, धनीराम राजभर, श्रीराम शर्मा, कवियत्री विजयलक्ष्मी जी, के एस शास्त्री, साकी ग्वालियर, उमाकांत वर्मा, ज्ञान कविराज, आदि सभी साहित्यकारों ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को फटकार लगाते हुए खूब सुनाया और वीर सपूतों को नमन करते हुए सच्ची श्रद्धांजलि दी और अंत में राष्ट्रीय गीत के साथ कवि गोष्ठी को समाप्त किया गया।

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