शैलेष तिवारी
आज ऑफिस जल्द पहुचने के चक्कर में श्रुति जैसे ही कल्याण स्टेशन पर पहुची 9.47 लोकल के इंडिकेटर पर नजर पड़ते ही उसके दिल की धड़कने बढ़ गयी । खचाखच भीड़ से भरे प्लेटफार्म पर उसकी नज़रें न चाहते हुए भी श्रेय को ढूंढ रही थी। उसे पता था की श्रेय कई वर्षों से यही ट्रेन ऑफिस जाने के लिए पकडता है। पुरानी बातें याद कर दिल का दर्द और बढ़ेगा यह दिलासा देते हुए उसने अपने सर को एक झटका दिया और लंबे लंबे कदम भरते हुए महिला फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट की तरफ बढ़ गई।
ट्रेन अपने समय से कुछ पहले ही प्लेटफार्म पर आ गयी थी जिस कारण उसे आसानी से सीट मिल गई। सीट पर बैठते ही खिड़की से बाहर उसकी नज़र श्रेय पर पड़ गयी जो एक लड़की से हँस हँस कर बात किये जा रहा था। अचानक उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगी। पिछले दो साल कैसे निकल गए पता ही नही जब श्रेय उसके जीवन मे आया था…श्रेय आज भी उतना ही आकर्षक और चार्मिंग लग रहा था। परन्तु शरीर की सुंदरता ही सब कुछ नही होती सुंदर शरीर के साथ सुंदर मन का भी होना जरूरी होता है।
सम्हालते सम्हालते भी उसके आंखों से आसुओं की दो बूदें छलक आई। साथ ही उस लड़की के प्रति उसके मन मे सहानुभूति के भाव उत्तपन्न हो गए। जिसके साथ अभी भी श्रेय हँस कर बात किये जा रहा था। धूप के चश्मे के अंदर उंगलियां डाल उसने अपने आंखों से चलके आसुओं को दृढ़ता से पोछ दिया जिससे वे लुढकर कर उसके गालो पर न आ जाएं। उसके आंखों के आगे दो साल पहले की कहानी घूम गयी कैसे एक मित्र ने इसी ट्रेन के इंतज़ार में श्रेय से परिचय कराया था। चंद मुलाकातों ने ही श्रेय को उसका सबसे करीबी दोस्त बना दिया । एक ही फील्ड में नौकरी होने के कारण ने नजदीकियां बढ़ने में और मदद किया था।
एक महिला होने के बाद भी ब्यूटी प्रोडक्ट के सेल्स की बारीकियां श्रेय उससे कहीं बेहतर समझता था। उसकी काबिलियत पर मन्त्र मुग्ध होते चले गई थी श्रुति। मन्थ के अंत मे टारगेट क्लोजिंग के समय भी श्रेय उसकी मदद कर दिया करता था। वाक पटुता व हँसी मज़ाक के साथ हाजिर जवाबी में उसका कोई सानी नही था। मार्केटिंग के गुर जब श्रेय उसे सिखाता तो उसकी बड़ी बड़ी आँखों मे एक टक बिना पलके झपकाए वो देखा करती थी। उसकी खुशी का ठिकाना तब नही रहा जब श्रेय के एक मित्र ने बताया कि श्रेय कुँवारा है और उसे जीवन मे कम्पेटिबिलिटी के लिए अपने प्रोफेशन से ही किसी लड़की की तलाश है ।
जो वर्तमान समय मे ऑफिस के काम व प्रेसर की मजबूरी को भली भांति समझ सके। उस दिन के बाद से ही उसने श्रेय द्वारा किये जाने वाले हर मदद को ध्यान से देखना आरम्भ किया उसे कुछ विशेष सा आभास होने लगा । उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा जब श्रेय ने एक दिन उससे कहा क्या वह उसके साथ क्लाइंट कॉल पर चलेगी। काफी कुछ मार्केट के बारे में सीखने के लालच में वह रोजाना श्रेय के साथ आने जाने लगी। वह उम्र के उस दौर में थी जहाँ खुद को सम्हालना नामुमकिन तो नही मुश्किल जरूर होता है। रोज साथ कॉल करने के लिए पैसे की कुछ मदद कर उसने श्रेय को एक बाइक लेने को कहाँ जिसे श्रेय ने तुरन्त मान लिया ।
अब तो देर तक फील्ड में रहना दूर दूर तक क्लाइट के पास जाना श्रेय के साथ लांग ड्राइव के साथ काम करना। श्रुति व श्रेय को काम मे एक अलग ही मज़ा आने लगा । उसी दौरान श्रुति के बूढ़ी मां की तबियत खराब हुई श्रेय को खुद को साबित करने का एक और अवसर मिला । उसने जी जान लगाकर माताजी के इलाज में जिम्मेदारी उठाई व सेवा किया । माताजी के ठीक होते ही उसने श्रुति से पूछा “शादी क्यों नही कर लेती मां को भी आराम रहेगा। कोई मदद करने वाला आ जायेगा । कब तक अकेले अपने कंधों पर घर बार की जिम्मेदारियों का बोझ लेकर खिंचते रहोगी।
श्रुति ने मुस्कुराकर जवाब दिया “क्या करूँ कोई तुम्हारे जैसा नही मिल रहा।” अगले ही पल श्रेय ने उसे अपनी बाहों में खिंचकर भर लिया । दोनो काफी देर तक एक दूसरे को जकड़े रहे जैसे जन्म जन्म के साथी अबकी वर्षो के बाद मिलें हो। माताजी की आवाज सुनकर दोनो अलग हुए । उस दिन श्रेय बिना नजरें मिलाये हुए ही उसके घर से चला गया। उसके बाद आरम्भ हुआ दो महीने का वो सुनहरा दौर जब उसके ख्बाबों, ख्यालों में घर गृहस्थी, बच्चे, उनका भविष्य, सब का ताना बाना श्रुति बुनते चले गई।
वह पूरी तरह से श्रेयमय होकर रह गयी थी। काम के साथ ही रोज अपने प्यार के साथ घूमना फिरना, खाना पीना उसने सपने में भी नही सोच था। इन दो महीने में उसने टूटकर श्रेय को चाहा था। आखिरकार उसकी खुशियों को ग्रहण उसके जन्म दिन के समय आ लगा। जब किसी सहेली ने उसे बताया कि आजकल जिसके प्यार में तू खोई है.. वो शादीशुदा और दो बच्चों का बाप है। उसकी पत्नी कुछ पारिवारिक कारण से 3 महीने गॉव गई थी अब आ गयी है। उसको काटो तो खून नही फिर भी उसका मन किया इसका मुँह नोच ले जो इसके श्रेय पर आरोप लगा रही है।
अपने जन्म दिन पर उसने सिर्फ श्रेय के लिए पार्टी रखी थी । निर्धारित समय पर श्रेय होटल में पहुच गया। केक टेबल पर सज गया था । सब कुछ खुशनुमा सा था परन्तु अपने अंदर एक तूफान दबाए श्रुति से रहा नही गया उसने साफ साफ शब्दों में श्रेय की तरफ सवाल उछाला “श्रेय क्या तुम शादी शुदा हो और तुम्हे दो बच्चे है” श्रेय के चेहरे पर कोई भाव नही थे वो शांत बना रहा जैसे इस सवाल का सामना करने के लिए पहले दिन से ही वो मानसिक रुप से तैयार था। केक का एक टुकड़ा उठाकर खाते हुए ही उसने बेफिक्री के लहजे में कहां “हाँ यह सच है।” श्रुति पर बिजली गिर पड़ी उसके सपनों का घर बार, उसका घरोंदा सब उस बिजली की आग में पलभर में जलकर राख हो गए।
एक झूठ की दीवार जिस पर उसने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया वो पल में ढह गई। उसके आंखों से आसुओं की धारा बह निकली इतने बड़े फरेब पर दिल बैठा जा रहा था फिर अपने आप को सम्हालते हुए उसने पूछा ” फिर यह सब मेरे साथ क्या है?” श्रेय ने उसके सवाल को बीच मे काटते हुए जवाब दिया “छोड़ो इन सब बातों को तुम पढ़ी लिखी हो, मॉडर्न हो, लाइफ को इंज्वाय करना सीखो, गवारुं लड़कियों की तरह रोना धोना छोड़ो, सब हमारी तरफ ही देख रहे है” इस जबाब ने श्रुति के अंदर एक शोला भर दिया था। उधर श्रेय सहज दिखने के प्रयास में केक काट काट कर खाएं जा रहा था। उसके लिए जैसे हमेसा की बात हो उसे अंजाम पता था।
उसके इस रूप ने श्रुति के अंदर क्रोध की ज्वाला को धधका दिया। बिजली की तरह लपककर उसने केक का अगला टुकड़ा श्रेय के मुँह में जाने के पहले ही छीन लिया । केक को जमीन पर फेकते हुए उसने कहाँ ” तुम इसके काबिल नही हो” रोते रोते ही उसने सारा केक टेबल से नीचे फेक डाला । तब तक सारा माजरा समझकर टेबल के किनारे आकर वेटर भी सहमा सा खड़ा हो गया था। अपने आंसू पोछ श्रुति ने फुफकारते हुए कहा “तुम्हे इसकी सजा मिलेगी, श्रेय मैं छोडूंगी नही तुम्हे, तुमने मेरी भावनाओ से खिलवाड़ किया है” रोते हुए वो होटल से दौड़ती हुई बाहर चले गई। श्रेय ने भी होटल का बिल पेमेंट किया और अपने घर चला आया।
घर पर भी श्रेय थोड़ा बेचैन था खाना निकालते हुए पत्नी माधुरी ने पूछा ” तबियत तो ठीक है न चिंतित लग रहे हो” कुछ खास नही ऑफिस का टेंशन है ” बोलकर उसने मामला रफादफा कर दिया। अगले 2 दिनों तक श्रुति ने कमरे में खुद को कैद कर जीभर रोती रही। तीसरे दिन कुछ निर्णय कर उसने अपने पास श्रेय का पता ढूंढा और उसके घर की तरफ निकल पड़ी रविवार का दिन होने के कारण उसे पूरा विस्वास था श्रेय परिवार के साथ घर पर ही मिलेगा।
अक्सर रविवार को वो उससे नही मिलता था जो कि उसने तब नोटिस नही किया था। पूछते पूछते वो पहली बार उसके घर पहुची । डोर बेल बजाते ही एक मासूम से चेहरे वाली बला सी खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला पीछे पीछे एक 4 साल का लड़का अपनी मां का आँचल पकड़ अपनी मां के पीछे से श्रुति को निहारे जा रहा था। “श्रेय घर पर है” जवाब में महिला ने दरवाजा पूरा खोल दिया और वो अंदर चले आई। उधर श्रेय के चेहरे की हवाईयां श्रुति को देखते ही उड़ने लगी घबड़ाहट में उसे कुछ सूझ ही नही रहा था । तभी श्रुति जोर से चिल्लाई मेरे साथ तुमने ऐसा क्यों किया श्रेय ? यहाँ तुम्हारा भरा पूरा परिवार है । फिर भी तुमने प्यार का नाटक मेरे साथ क्यों किया ? अब की चौकने की बारी श्रेय के पत्नी माधुरी की थी। जो किचन में पानी लेने गयी थी ।
वो पानी वहीं छोड़कर बाहर आई। श्रुति रोते हुए बोले जा रही थी श्रेय मैं तुम्हे छोडूंगी नही । पुलिस कम्प्लेन करूंगी। तुमने मेरे जज्बातों के साथ खेला है। आवाजें बढ़ती देख खुले दरवाजे से आस पड़ोस के लोग घर मे झांकने लगे। तामसा देखने के लिए पड़ोसियों की भीड़ जमा हो गयी । लोगो पर नज़र पड़ते ही अब स्थिति सम्हालने की बारी माधुरी की थी वो चट्टान की तरह अपने पति के बचाव में आ खड़ी हुई। सारी बाते सुनने समझने के बाद उसने पूछा ” आप के साथ इन्होंने क्या क्या किया?” श्रुति को इस अटपटे सवाल की उम्मीद कतई नही थी। फिर भी जवाब में वो बोली “मुझे घुमाया फिराया मेरे साथ प्यार का नाटक किया।” आप इसके साथ घूमने फिरने गई क्यों ? आप गयी तब लेकर गया न, राह चलते तो किसी को नही लेकर जाता ।
तुम्हारी भी गलती है। आप बिना जाने समझे गई क्यों? वैसे भी घूमना फिरना कोई गलत बात नही है। श्रुति को काटो तो खून नही उसके आंखों के आगे अंधेरा छा गया । माधुरी ने दूसरा सवाल दागा की आपने कैसे माना कि ये अभी तक कुँवारे हैं ? शादीशुदा नही है? जवाब में श्रुति ने बताया इनके बेस्ट फ्रेंड चौधरी ने बताया था कि ये कुँवारे है। चौधरी का नाम सुनते ही माधुरी चौक गयी । चौधरी भाई तो हर रविवार बच्चो को चॉकलेट लेकर आते हैं, भाभी भाभी करते रहते है। घर के सभी सदस्य को भली भांति जानते है ,भला वे क्यों झूठ बोलेंगे !!
अब दोनों की प्रश्नवाचक निगाहें एक साथ श्रेय की तरफ उठ गयीं । सर नीचे किये श्रेय ने कोई जवाब नही दिया दोनो महिलाओ को उस मौन का अर्थ समझते देर नही लगी। इसमे चौधरी भी शामिल है और श्रेय ने जानबूझ कर अपने अविवाहित होने की बात चौधरी से कहलवाई ।
अलग अलग सोफे पर वे दोनों निढाल होकर जिंदा लाश की तरह पड़ गयी । वे एक दूसरे को निहारे जा रही थी, आंखों ही आंखों में आसुओं की धारा के पीछे से न जाने कैसे एक दूसरे का दुख, दर्द, पढ़ने और समझने की कोशिश कर रहीं थी। आखिरकार एक ही पुरुष ने उन दोनों महिलाओं से धोखा किया था, उन दोनों को छला था । पुलिस कम्प्लेन करने आई श्रुति को माधुरी पर दया आ रही थी वहीं श्रुति के साथ हुए छल पर माधुरी स्तब्ध हो दुखी हो रही थी। चार वर्ष का घटना से अनजान बच्चा, मां और आंटी को लगातार रोता देखकर फ्रिज से दो बोतल पानी निकाल लाया और एक मां को दूरी बोतल श्रुति को देने लगा।
उसकी भोली सूरत देखकर श्रुति उठी श्रेय को फाड़खाने वाली आंखों से घूरते हुए बोली “आज इन बच्चों के कारण तुम्हे छोड़ रही हूं । मुझे जीवन मे कभी अपनी शक्ल नही दिखाना।” उसके निकलने के कुछ देर बाद ही श्रेय भी घर से बाहर निकल गया।
उस शाम श्रेय और चौधरी दोनो एक बियर बार मे ड्रिंक करते हुए पुलिस केस से बाल बाल बचने का सेलिब्रेशन कर रहे थे। गम सिर्फ इतना था कि सोसायटी में बेइज्जती हो गयी थी। उधर श्रुति खुद को अपने घर मे बन्द कर रोये जा रही थी। इधर माधुरी ने रो रोकर पूरा तकिया गिला कर लिया था ।
उसने श्रुति को श्रुति ने माधुरी के दुखो को, आंखों आंखों में ही महसूस कर लिया था। दोनो के साथ घात हुआ था। एक दूसरे का दर्द दोनो ने महसूस कर लिया । आंसू भरे आंखों से ही दोनों ने संवाद किया था । श्रुति ने अपने प्यार को जीवन भर के लिए छोड़कर निभा दिया था। बच्चो व माधुरी के खातिर पुलिस कम्प्लेन नही कर श्रेय को हमेसा हमेसा के लिए छोड़ आई थी …..इधर माधुरी को अपने घर, कपड़े, बिस्तर, घर के हर कोने से घिन्न आने लगी थी। आज सब कुछ उसका होकर भी उसे उसका अपना नही लग रहा था …..
बहुत ही बढ़िया लेख !
इन्सान को दो नाव पर कभी सवार नही होना चाहिए ! और न ही किसी को धोखा देना चाहिए !