मुंबई । शिवानी साहित्य संस्था के तत्वावधान में जुहू चौपाटी,समुद्र के किनारे कवियों की सजी महफ़िल जिसमें मुंबई से पधारे गीतकारों, गजलकारों की महफ़िल ने समुद्र की लहरों के संग धूम मचा दिया,वहां के श्रोताओं ने खूब ठहाके लगाये और करतल ध्वनि से साहित्यकारों की लेखनी को सम्मान दिया।गोष्ठी की अध्यक्षता मुंबई के वरिष्ठ गज़लकार एन• बी• सिंह नादान ने की,मुख्य अतिथि के रूप में गज़लकार गुलशन मदान जी उपस्थित रहे।उक्त कार्यक्रम का आयोजन प्रमिला शर्मा के नेतृत्व और संयोजन इमरोज आलम व बाम्बे आर्ट्स क्लब की देखरेख में संपन्न हुआ, जिसका सूत्र-संचालन इमरोज आलम ने बहुत सुन्दर ढंग से किया।इस ऐतिहासिक कवि गोष्ठी में दिनेश बैसवारी,रास बिहारी पांडे,दीपक खेर,आर पी सिंह रघुवंशी, मेजपाल वरारवानी,
मृदुला मिश्रा, रजिया रागिनी, सुनीता शर्मा, ॠतुप्रिया खरे, वन्या जोशी, सुमिता केशवा,रागिनी पांडे, श्रीराम शर्मा, मृदुल प्रभा,साव्या दत्ता,आभा दवे,प्रभा शर्मा “सागर”, नीलम त्रिपाठी, सत्यवती मौर्य, मधुश्रृंगी,राजेश मंथन,सुनीत मिश्रा, शोभा स्वप्नील एवं सुमन सारस्वत आदि उपस्थित थे।सुप्रसिद्ध कवियों, गजलकारों की कुछ चंद पंक्तियाँ इस प्रकार-
रामप्यारे सिंह “रघुवंशी”-
हिंदी के संग जिया-मरा और
हिंदी का सम्मान किया…
हर हिंदी के सेवक को वह,
प्यार-मोहब्बत, मान दिया।
जन्मा कहाँ,कहाँ पला वह,
कभी न इसपर ध्यान दिया।
हिंदी भाषा का प्रहरी बन
निशि-दिन इसे सलाम किया।
भाईखला के परिसर में,
वर्षों अलख जगाया था।
जो भी सेवक बनकर आया,
सबको गले लगाया था।
हिंदी के इस परमभक्त को
हमसब शीश नवाते हैं…
‘दासर’ जी को आज हृदय से
श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं…।
कवियत्री आभा दवे-
1) नववर्ष में
मंगल कामना हो
सुखी सभी हों ।
2) पिछले साल
अधूरे सपने जो
सब पूर्ण हों ।
3) सुख-दुख में
बैचेन न मन हो
शांति संग हो ।
4) कलम चले
निरंतर सभी की
खुश मन हो ।
कवियत्री प्रमिला शर्मा-
मैं आँखें गड़ाए खड़ी थी,
बदल रही समय चक्र की घड़ी थी।
मैंने देखा कि इधर दिसम्बर ने जनवरी से नाता तोड़ा,
तो उधर फ़रवरी ने मार्च से रिश्ता जोड़ा।
उनके घर में अप्रैल का हुआ आगमन,
मई आ गई रिश्तों की मिठास और गरमाहट के साथ आम की ख़ुश्बू पहन।
जून और जुलाई बग़ीचे में झूला झूलने लगे,
अगस्त-सितम्बर रिमझिम फुहार में ठुमरी का राग घोलने लगे।
अक्तूबर नवम्बर ले आए त्योहारों की भरमार,
धरती पर गगन के जुगनुओं सी रौशनी फैली बेशुमार।
दिसम्बर को हो रहा था क्लेश,
जनवरी से मुख मोड़ने के बाद उसके पास कुछ भी न बचा था शेष।
सारा संसार उसके जाने का जश्न मना रहा था
और जनवरी की अगवानी में गली-कूचे सजा रहा था।
कवियत्री प्रभा शर्मा “सागर”
ये इत्र की शीशियां तो यूँ ही इतराती है खुद पर..,
रिश्ते तो आप जैसे लोगों से महकते हैं..!!
एन बी सिंह “नादान”
बांट लो प्यार को हमदर्द बनाने के लिए,
आदमी बनके जियो जग को हंसाने के लिए ।
अपनी तहजीब को हर हाल में जिंदा रक्खो,
फर्ज की हद से गुजर जाओ बचाने के लिए ।।