मुंबई। विश्व मैत्री साहित्यिक संस्था के तत्वावधान में काव्य गोष्ठी अंधेरी जे.बी. नगर पूर्व में 3 मार्च 2019 रविवार को सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। गोष्ठी की अध्यक्षता श्रीमती अलका पांडे जी ने की। मुख्य अतिथि-डॉ क्षमा पांडे जी (भोपाल) से उपस्थित थी, विशेष अतिथि के रूप में संतोष श्रीवास्तव, डॉ नेहा इलाहाबादी “आस” उपस्थित थी। उपस्थित सभी कवियत्रियों का आभार रानी मोटवानी जी ने व्यक्त किया। संचालन महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी से पुरस्कृत श्रीमती प्रमीला शर्मा ने बहुत कुशलतापूर्वक किया। उक्त कार्यक्रम का संयोजन श्रीमती आभा दवे ( मुंबई विश्व मैत्री मंच शाखा अध्यक्ष ) ने की थी।
काव्यसंध्या में उपस्थित सभी कवयित्रियों ने अपनी रचनाएं सुनाई एवं संतोष श्रीवास्तव जी, प्रमीला वर्मा जी से मिल कर सुखद अनुभूति का अनुभव किया।काव्य गोष्ठी में शामिल हुए कवियों के नाम शिल्पा सोनटक्के अनीता रवि, कविता राजपूत, डॉ राजेश श्रीवास्तव, उषा साहू, आभा दवे, लता तेजशवर, रानी मोटवानी, अर्चना पाडंया, संतोष श्रीवास्तव, प्रमीला वर्मा, डॉ नेहा इलाहाबादी, ज्योति गजभिए, अलका पांडे, प्रमीला शर्मा, डॉ क्षमा पांडे, सभी ने अपनी रचनाओं से मंच को गुलजार किया। लता तेजशवर ने अपनी किताब सैलाब भोपाल से आए साहित्यकार डॉ विजय श्रीवास्तव को एवं अन्य को भेंट की। लखनऊ की कथाकार किरण सिंह जी ने एक छोटी सी कहानी सुना कर सब का मन मोह लिया।
काव्यसंध्या में कुछ की रचनाएँ इस प्रकार रही-
विश्व मैत्री संस्था की अध्यक्षा श्रीमती आभा दवे अपनी रचनाओं के माध्यम से कहती हैं-
कभी-कभी सृष्टि को निहारा करो
इसमें भी खुद को पाया करो
ये हरी -भरी धरती सुंदर
श्रृंगार कर रोज़ सजती
नदी , सागर , झरने , पर्वत,
पेड़-पौधे से खुद को ढकती
इन्हीं का श्रृंगार कर सजती
उसके इस रूप को भी सहारा करो
कभी-कभी सृष्टि को निहारा करो
ऊपर फैला आसमान लिए सूरज-चाँद ,तारे
जो लगते सभी को प्यारे
देते हमें उजाला,चाँदनी और खुशी
तो इनसे भी रिश्ता निभाया करो
इनका गुणगान भी गाया करो
कभी-कभी सृष्टि को निहारा करो
उड़ान भरते सभी कल्पना की रोज ही
कभी हकीकत की दुनिया में जाया करो
दीन- दुखियों को गले लगाया करो
मासूम बच्चों के होठों पर खिली रहे हँसी
ऐसा कोई गीत सुनाया करो
कभी-कभी सृष्टि को निहारा करो
एक ईश्वर की हम सब संतान
न धर्मों में खुद को बाँटा करो
हिल -मिल रहे सभी यहाँ
सभी को अपना बनाया करो
प्रेम से गले लगाया करो
गमों में भी मुस्कुराया करो
कभी-कभी सृष्टि को निहारा करो
बढ़ते जाएँ कदम आगे सभी के
नीचे सर न झुकाया करो
कदमों में ही है मंजिल
उस मंजिल से न किनारा करो
खुद पर रख अटल विश्वास
खुद का अमर गान गाया करो
कभी-कभी सृष्टि को निहारा करो ।
कवियत्री प्रमीला वर्मा कहती हैं-
मुझमे समुद्र
समुद्र क्यूं न बांध
नही लेते घुघुरू ,
ताकि मै खोलकर खिडक़ी ,
सुन सकूँ ।
तुम्हारे घुघुरूओ की
छम-छम और गा सकूँ
कोई गीत मनभावन ।
कवियत्री अर्चना पांडे कहती हैं-
उड़ती पंतगों सी साजिश हमें नही आती ,
गले मिलकर गला ही काट देते है..
वफादार तो हमेशा तन्हा ही मिलते है।
कवियत्री संतोष श्रीवास्तव के आज के भारत की तस्वीर उकेरते हुए कहती हैं-
आज अचानक
हवा के झोंकों से
पीले पड़ गए पन्नों की
बरसों पुरानी डायरी को
खुद को बचाते देखा
सूखे फूल की डंडी को दबोच
वह करती रही
हवा का मुकाबला
उसमें बीते लम्हे जो कैद थे
जिस में जी रही थी वह
अब तक
कवियत्री शिल्पा सोनटक्के कहती हैं-
सुकून की कोई सूरत नज़र आतीं नहीं
आंखों में रवां है, हादसों के जलूस ।
पहरों फिर अनमनी -सी रही जिंदगी
तुझसे मिलने की मियाद यूं तो बहुत कम थी ।
कवियत्री अलका पाण्डेय जी ने अपने अंदाज़ में क्या कहती हैं-
दिल है खामोश रुक गई मेरी लेखनी
देश के जांबाज सिपाही ने क्यों मौत पहनी
गोद सूनी मां की हुई न्याय कौन दिलाएगा
मर गए बेमौत जो वापस कौन लाएगा ।
कवियत्री उमा शाहू ने आतंकवाद पर क्या खूब कहा-
आतंकवादी
मृत्यु देवता की आराधना का फल देखा है,
शहीद की मौत पर दी जाती है सलामी,
और तेरी मौत पर मातम भी नहीं होता
ज्योति गजभिए
माँ तू ही भगवान है
तू ही सुख की खान
तेरे बिन है जग अंधियारा
दुनिया है सुनसान।
कवियत्री प्रमीला शर्मा कहती हैं-
सागर लहराता पग तल में,
है राम निकलता कल-कल में,
झंडा फहरे हिम-आँचल में,
वह स्वर्ग यहीं है भूतल में।
ख़ुद को पवित्र-पावन कर लो,
भारत माँ की जय-जय बोलो।-