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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : आरएसएस संभालेगा कमान

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राम मंदिर, जनसंख्या बिल, धर्मांतरण जैसे मुद्दे होंगे अहम

भदोही। यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यूपीसीएम योगी आदित्यनाथ का दौरा लगातार प्रदेश में शुरू हो गया है। योगी सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान किये गये विकास कार्यों को जनता तक पहुंचाना शुरू कर दिया है। पिछले 24 अक्टूबर को भदोही आये योगी आदित्यनाथ ने विकास कार्यो के साथ माफिया उन्मूलन और राम मंदिर जैसे मुद्दों का खुलकर जिक्र किया। लेकिन तीन महीने पूर्व ही लखनउ में हुई आरएसएस की बैठक में यह तय कर लिया गया था कि आगामी विधानसभा चुनाव राममंदिर, जनसंख्या बिल और धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर ही लड़ा जायेगा और भाजपा का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही चुनाव का असली कमान संभालेगा।

गौरतलब हो कि 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव पीएम नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में लड़ा गया था। उस समय योगी आदित्यनाथ यूपी का चेहरा नहीं थे, लेकिन इस बार नरेन्द्र मोदी से अधिक योगी आदित्यनाथ की हिन्दुत्ववादी छवि उभर कर सामने आयी है। जिसे वे खुद अपने भाषणों में जाहिर भी कर देते हैं। योगी जी जानते हैं कि यूपी के चुनाव में हिन्दुत्व ही एक ऐसा मुद्दा है जिसके सामने सभी मुद्दे गौड़ हो जाते हैं। इसीलिये अपने भाषण में उन्होंने हिन्दू पर्वों पर गैर भाजपा सरकारों द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों का खुलकर जिक्र किया। उन्होंने साफतौर पर कहा कि सपा बसपा की सरकारें हिन्दुओं के त्योहारों पर प्रतिबंध लगाती थी। कांवर यात्रा के दौरान डीजे पर प्रतिबंध लग जाता था। कहा हिन्दू त्योहार उत्सव के साथ मनाये जाते हैं। प्रतिबंध लगाने से लोग त्योहार खुलकर नहीं मना पाते थे। योगी के इन बयानों का जवाब देने के बजाय विपक्षी दल मुंह चुराना ही श्रेयस्कर समझते हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने एक बड़ी भूमिका निभायी थी। आरएसएस के स्वयंसेवक प्रचार प्रसार से दूर रहकर गावों में जाकर अपनी बातें लोगों तक पहुंचाते और समझाते थे कि क्यों उत्तरप्रदेश में हिन्दूवादी सरकार की आवश्यकता है। जिसका असर भी देखने को मिला और भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी। प्रदेश की राजनीति में कभी चर्चा में न रहने वाले योगी आदित्यनाथ अचानक उभरकर सामने आये और यूपी की कमान अपने हाथों में ले लिया। इसके बाद अपने कार्यों से एक मजबूत हिन्दू नेता की छवि लोगों में बना ली। कहा जाता है कि भाजपा का शीर्ष संगठन मन से योगी को भले ही स्वीकार न कर पाता हो किन्तु उनकी हिन्दुत्ववादी छवि को देखते हुये विवश है और 2022 का चुनाव योगी की इसी छवि पर लड़ा भी जायेगा।

बता दें कि तीन माह पूर्व जुलाई में लखनउ में आरएसएस की दो दिवसीय बैठक आयोजित की गयी थी। यह बैठक आशियाना इलाके में स्थित सीएमएस सभागार में हुई थी। इस बैठक में यूपी भाजपा और सरकार से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया था। जिसमें सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, बीजेपी के प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और संगठन मंत्री सुनील बंसल शामिल रहे। इस बैठक में सरकार के काम की समीक्षा के साथ चुनाव के लिये जमीनी रणनीति तैयार की गयी थी। सूत्रों की मानें तो बैठक में स्पष्ट था कि विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को हिंदुत्व के एक बड़े चेहरे के तौर पर पेश किया जाने वाला है। इसके अलावा यह चुनाव अयोध्या में राम मंदिर, अनुच्छेद 370, जनसंख्या नियंत्रण, धर्मांतरण और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा।

बताना लाजिमी होगा कि संघ में संगठनात्मक दृष्टि से यूपी को 6 प्रांतों में बांटा गया है। इसलिए लखनऊ में चली समन्वय में बैठक में अवध प्रांत, कानपुर प्रांत, काशी प्रांत, गोरक्ष प्रांत, मेरठ व बृज प्रांत के संघ की प्रांतीय टोली के लोग शामिल रहे। इसमें इन छह प्रांतों के प्रांत प्रचारक, सह प्रांत प्रचारक, प्रांत संघचालक, सह प्रांत संघचालक और प्रांत कार्यवाह, सह प्रांत कार्यवाह बुलाए गए थे। दो दिवसीय बैठक में पहले दिन सभी क्षेत्रीय प्रचारक, प्रांत प्रचारक और प्रांत की टोलियां शामिल हुईं थी।

बैठक में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा पर भी सवाल उठाये गये थे। जिसका असर भी देखने को मिला। कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिये भाजपा के सहयोगी संगठनों पर कार्यकर्ताओं की नियुक्तियां करके उन्हें खुश करने की भरपूर कोशिस भी गयी। भाजपा जानती है कि सिर्फ विकास के मुद्दे उठाने पर चुनाव नहीं जीता जा सकता है, क्योंकि भाजपा सरकार द्वारा अधिकतर किये गये लोकार्पणों में पूर्व की सपा सरकार ने आवाज उठायी है। सपा का हमेशा कहना रहा कि उसके द्वारा किये गये विकास कार्यों का ही भाजपा ने लोकार्पण करके वाहवाही लूटी है। लेकिन राममंदिर, धर्मान्तरण, जनसंख्या नियंत्रण बिल और राजनीति का अपराधीकरण जैसे मुद्दों पर विपक्षी पार्टियां मुंह बंद कर लेती है। इसलिये इन मुद्दों को हवा देने के साथ ही कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाना भी जरूरी है।

भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस हमेशा दिखावा व मीडिया से दूर रहकर काम करता है। उसके काम करने का तरीका व्यवस्थित रणनीति के तहत होता है। जिसका अंदाजा भी दूसरी पार्टियों के लोग नहीं लगा पाते। कहा जाता है कि चुनाव के दौरान नेताओं को मंच पर क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है। यह दिशा निर्देश भी आरएसएस ही देता है। आरएसएस के स्वयंसेवक खुद के प्रचार प्रसार से दूर रहकर सीधे वोटरों के बीच जाकर अपना काम करते हैं। जिसका सीधा लाभ पार्टी को मिलता है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा सरकार ने ही राममंदिर बनने का रास्ता आसान किया है। साथ ही कश्मीर में असंभव समझे जाने वाले धारा 370 को हटाकर अपनी विश्वसनीय छवि बनायी है। दंगो से जूझ रहे उत्तरप्रदेश को दंगामुक्त करने, अपराधियों की नकेल कसने जैसे कारनामें योगी सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति को भी दर्शाती हैं। इसलिये लोगों को यह विश्वास दिलाना आसान होगा कि धर्मान्तरण और जनसंख्या बिल जैसे मुद्दों को भाजपा ही कारगर बना सकती है

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