मोदी है तो मुमकिन हैं का नारा मतदाताओं के सिर चढ़कर बोल रहा था, लेकिन यह नारा इतना कारगर होगा कि यूपी और बिहार से जातिवाद के चक्रव्यूह को ही तार तार कर देगा किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। शायद इसी जातिवाद का लाभ उठाने के लिये यूपी में सपा और बसपा बिहार में कांग्रेस और राजद ने गठबंधन कर भाजपा को हराने का ख्वाब देखा था किन्तु उनके ख्वाबों पर जागरूक मतदाताओं ने पानी फेर दिया और जातिवाद के मुद्दे को दरकिनार कर विकास और राष्ट्रवाद को प्रमुखता दी।
गौरतलब हो कि भारत के दो प्रमुख प्रदेश बिहार और उत्तरप्रदेश जाति और धर्म की राजनीति के लिए बदनाम रहे हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों में इन दोनों राज्यों में इस नीति का अंत होता दिखीयी दिया। इन दोनों राज्यों में जिस तरह से भाजपा ने जीत का डंका बजाया उससे राजनीति के पंडितों को भी सोचने के लिये मजबूर कर दिया कि अब यूपी और बिहार के मतदाता जाति और धर्म के धब्बे को मिटाकर देश के विकास और राष्ट्रवाद पर मतदान कर रहे हैं।
उत्तरप्रदेश में बसपा और सपा के गठबंधन के बाद भी 80 में से लगभग 5 दर्जन और बिहार की 40 में से 37 सीटों पर भाजपा के जीतने के अनुमान ने ये साबित कर दिया कि इस बार का चुनाव बीजेपी ने सिर्फ विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा जबकि ये दोनों दल पुराने जात-पात और धर्म के मुद्दे पर ही बने रहे। इसी का इनको नुकसान हुआ। इसके अलावा राष्ट्रवाद और विकास के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे मैदान में उतरने की भाजपा की चुनावी रणनीति सफल साबित हुई। मोदी के नेतृत्व में भाजपा और एनडीए को इस बार के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत मिला।
आजाद भारत के इतिहास में कई मायने में 2019 यह चुनाव अहम माना जाएगा। न सिर्फ 2004 की तरह सत्ता विरोधी लहर की विपक्षी नेताओं की उम्मीदें ध्वस्त हो गईं, बल्कि इसके उल्टे भाजपा मोदी के पक्ष में सुनामी खड़ा करने में सफल रही। जबकि 6 महीने पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पराजय के बाद भाजपा के लिए 2019 की राह मुश्किल बताई जा रही थी, लेकिन 6 महीने पहले भाजपा के खिलाफ इन राज्यों में चली सत्ता विरोधी लहर का परिणाम भाजपा के पक्ष में गया और मतदाताओं ने अपनी भूल को सुधारते हुये मोदी को दुबारा सत्ता के शिखर पर बैठाने में अहम भूमिका निभायी।
हालांकि चुनाव से पहले यह भी कहा जा रहा था कि मौजूदा सांसदों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर नाराजगी के साथ-साथ विपक्षी दलों के गठबंधन की मार भाजपा पर भारी पड़ेगा। लेकिन बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद मोदी को केंद्रित करते हुए राष्ट्रवाद और विकास पर आधारित चुनावी रणनीति ने विपक्ष के गणित को पूरी तरह से फेल ही कर दिया।
मतगणना के बाद आये परिणाम से चुनावी पंडितों के गणित गड़बड़ा गए। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे में गरीबों के दरवाजे तक विकास की गाड़ी पहुंचाने के साथ-साथ दुश्मन के घर में घुसकर मारने वाली मोदी के छवि को मजबूत किया। बड़े नेताओं की लंबी कतार की बात करने वाली भाजपा ने बालाकोट के बाद पूरा चुनावी अभियान मोदी केंद्रित करने का फैसला किया।
यहां तक कि खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी पोस्टरों से अपना फोटो तक हटवा दिया। मोदी केंद्रित चुनाव अभियान कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाना साधा। इससे मौजूदा सांसदों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर नाराजगी को खत्म किया गया। बल्कि इससे जातीय समीकरण को तोड़ने में भी सफलता मिली। यहां तक मोदी भी लगातार अपने चुनावी सभाओं में आडियो-विजुअल प्रचार में यह कहते रहे कि आपका वोट सीधे मोदी के खाते में जाएगा।
राष्ट्रवाद और विकास की लहर को मोदी की सुनामी में तब्दील करने में अमित शाह की अहम भूमिका रही। भाजपा को बहुमत दिलाने वाले अमित शाह ने जातीय समीकरणों पर भारी दिख रही सपा-बसपा गठबंधन की काट निकाली। सपा को सिर्फ यादवों और बसपा को जाटवों तक सीमित रखने में सफल रहे।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री द्वारा चलायी गयी उज्जवला योजना, शौचालय और आवास योजना का भी असर चुनाव पर देखा गया। जिन लाभार्थियों को इन योजनाओं का लाभ मिला था, उन्होंने भाजपा का साथ दिया ही बल्कि पीएम मोदी के उस बयान का असर भी दिखा जो उन्होने अपने भाषणों में कहा कि 2022 तक सभी गरीबों को पक्का मकान मिल जायेगा। बिना किसी भेदभाव के हुये विकास और लोगों में उठी राष्ट्रवाद की लहर ने यूपी और बिहार में जातिवाद के चक्रव्यूह को तोड़ दिया। यदि मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास के एजेण्डे में कायम रहकर काम करती रही तो जाति के नाम पर राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दलों के उपर विधानसभा चुनावों में भी संकट के बादल छाये रह सकते हैं।